विशेष सूचना एवं निवेदन:

मीडिया से जुड़े बन्धुओं सादर नमस्कार ! यदि आपको मेरी कोई भी लिखित सामग्री, लेख अथवा जानकारी पसन्द आती है और आप उसे अपने समाचार पत्र, पत्रिका, टी.वी., वेबसाईटस, रिसर्च पेपर अथवा अन्य कहीं भी इस्तेमाल करना चाहते हैं तो सम्पर्क करें :rajeshtitoli@gmail.com अथवा मोबाईल नं. 09416629889. अथवा (RAJESH KASHYAP, Freelance Journalist, H.No. 1229, Near Shiva Temple, V.& P.O. Titoli, Distt. Rohtak (Haryana)-124005) पर जरूर प्रेषित करें। धन्यवाद।

शनिवार, 3 अप्रैल 2010

चुनौतियों का शिकार : शिक्षा, शिक्षक और सरकार



 
एक अप्रैल से ६ से १४ वर्ष के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का कानून प्रभावी हो गया है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने राज्यों से इस राष्ट्रीय कोशिश में पूरा सहयोग देने की अपील की है। नए कानून के तहत राज्य सरकारें और स्थानीय निकाय यह सुनिश्चित  करेंगे कि प्रत्येक बच्चे को समीपवर्ती स्कूल में शिक्षा मिले। निश्चित तौरपर शिक्षा का कानून और प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह की अपील अत्यन्त सराहनीय है। हरियाणा के मुख्यमन्त्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने भी पूर्ण विश्वास दिलाया है कि मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा अधिकार कानून राज्य में प्रभावी रूप से क्रियान्वित होगा। सभी बच्चों के दाखिला ३० जुलाई तक सुनिश्चित किए जाएंगे। मुख्यमन्त्री का बयान बिल्कुल स्वागत योग्य है। लेकिन हरियाणा सरकार के लिए यह बयान बड़ा ही चुनौतीपूर्ण कहा जाना चाहिए। क्योंकि शिक्षा के मामले में जो समस्याएं काफी समय से मुँह फाड़े खड़ी हैं, वे निरन्तर विकराल से विकरालतम होती चली जा रही हैं।

हरियाणा सरकार के समक्ष शिक्षा के मामले में सबसे बड़ी समस्या शिक्षकों की भारी कमी है। केन्द्र सरकार द्वारा हाल ही में जारी मानक के मुताबिक स्कूलों में विद्यार्थी-शिक्षक अनुपात के अनुसार ३० बच्चों पर एक शिक्षक होना चाहिए, जबकि इस समय एक अनुमान के मुताबिक औसतन ५० बच्चों पर एक शिक्षक ही उपलब्ध है। इस समय अपग्रेड स्कूलों में शिक्षकों के ५००० पद रिक्त हैं। इस समय हरियाणा में ८८९ हैडमास्टर, २७४ प्रिसिंपल, ९६४७ जेबीटी, ६५२२ सीएंडवी, ९००९ मास्टर, ३४२० लेक्चरर के पद रिक्त हैं। यह रिक्तियाँ तब हैं जब ७३२१ जेबीटी, १६६१ सीएंडवी, ४३६४ मास्टर, २१६३ लेक्चरर पदों पर अतिथि-अध्यापक (गेस्ट टीचर) अपनी सेवाएं दे रहे हैं। कुल मिलाकर इस समय कुल ५०,६७१ अध्यापकों के पद रिक्त हैं। इस समस्या का समाधान अर्थात् नए शिक्षकों की भर्ती कब की जाएगी, यह अबूझ पहेली बनकर रह गई है, क्योंकि हरियाणा सरकार पिछले काफी समय से नए शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया जल्दी ही शुरू किए जाने के अपने बयान पर अटल बनी हुई है। सरकार की यह अटलता कब तक बनी रहेगी, कहना बड़ा मुश्किल है।

इसके बाद  सबसे बड़ी समस्या है नए शिक्षकों की भर्ती के मानदण्ड। हरियाणा सरकार ने शिक्षा के स्तर में निरन्तर होती गिरावट को बड़ी संजीदगी के साथ लिया था और यह तय किया था कि सरकार ‘राज्य अध्यापक पात्रता परीक्षा’ (STET) परीक्षा आयोजित किया करेगी और इस परीक्षा को उत्तीर्ण करने वाला उम्मीदवार ही शिक्षक पद के लिए आवेदन कर सकेगा। नए नियमों को लागू करने तक तत्कालीन शिक्षकों की कमी की भरपाई के लिए सरकार ने ‘अतिथि-अध्यापक’ की नियुक्ति कीं। यहाँ तक तो सब समझ में आया, लेकिन आगे यह समस्या समझ से बाहर हो गई। हर छह माह बाद ‘राज्य अध्यापक पात्रता परीक्षा’ आयोजित हुई और पात्रता परीक्षा पास करने वालों की कतार बढ़ने लग गई। संभावनाएं जताईं जानें लगीं कि अब योग्य अध्यापकों की भर्ती शुरू हो जाएगी। इसी इंतजार में हरियाणा विधानसभा चुनाव आ गए। फिर उम्मीदें जताईं गईं कि यह सरकार सत्ता में लौटेगी और इस महत्वपूर्ण योजना को सिरे चढ़ाएगी। कांगे्रस सरकार दोबारा सत्ता में लौट तो आई लेकिन योग्य शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया जस की तस बनी रही। इस शिथिलता ने पात्र अध्यापकों की संख्या को ५० हजार के पार पहुँचा दिया।

सरकार की इस शिथिलता ने शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया को धीरे-धीरे इतना जटिल बना दिया कि अब बीच का रास्ता भी नहीं सूझता दिखाई दे रहा। एक तरफ सभी रिक्त शिक्षक पदों पर पात्र अध्यापक अपना दावा ठोंक चुके हैं, जोकि कानूनन वाजिब भी है और दूसरी तरफ अतिथि अध्यापकों के हटाने को लेकर सरकार भारी असमंजस में है, क्योंकि अतिथि अध्यापक हटाने का सीधा मतलब है, मधुमक्खियों के छत्ते में हाथ डालना। इसी पेशोपेश में सरकार ने अतिथि अध्यापकों का अनुबंध एक वर्ष के लिए बढ़ा भी दिया है। अब पात्र अध्यापक अपना हक पाने के लिए आन्दोलनरत हैं और निरन्तर पुलिस के कोप का भाजन बन रहे हैं।

सरकार दो नावों पर सवार है। वह दोनों हाथों में लड्डू रखना चाहती है। इसीलिए अतिथि अध्यापकों के स्थान पर पात्र अध्यापकों की भर्ती के सवाल पर गोलमोल जवाब दे रही है कि कई बार तकनीकी समस्या आ जाती है। जो लगे हुए हैं, वे हैं लेकिन पात्र लोगों को उनका अधिकार जरूर मिलेगा। ऐसे में संभव दिखाई नहीं देता कि सरकार अतिथि अध्यापकों को हटाने की जहमत उठाएगी। यदि सरकार ऐसी जहमत नहीं उठाती है तो यह ‘राज्य अध्यापक पात्रता परीक्षा’ उत्तीर्ण करने वालों के लिए बड़ा भारी धोखा कहा जाएगा। एक तरफ वे अध्यापक हैं जो भाई-भतीजावाद, जोड़तोड़ एवं अपनी पहुंच का इस्तेमाल करके पिछले दरवाजे से अतिथि-अध्यापक का मौका छीनने वाले हैं और दूसरी तरफ उच्च शैक्षणिक योग्यता हासिल करने के साथ-साथ सरकार द्वारा थोपी गई ‘राज्य अध्यापक पात्रता परीक्षा’ भी उत्तीर्ण करने वाले ईमानदार, मेहनती, संघर्षशील, संयमी एवं योग्य अध्यापक हैं। निश्चित तौरपर यह पात्र अध्यापकों का तिरस्कार है। आखिर पात्र अध्यापकांे का तिरस्कार क्यों किया जा रहा है? यह उनके साथ बहुत बड़ा अन्याय है।

पात्र अध्यापकों का तिरस्कार सरकार व समाज के लिए भारी पड़ने वाला है। क्योंकि योग्य अध्यापकों के अभाव में सरकारी स्कूलों की शिक्षा का स्तर निरन्तर गिरता जा रहा है। पाँचवी पास बच्चे, दूसरी कक्षा के लायक भी नहीं हैं। यदि स्कूलों का निष्पक्ष निरीक्षण किया जाए तो चौंकाने वाले तथ्य मुँह-बाये खड़े मिलेंगे। काफी स्कूलों में तो मूलभूत सुविधाओं स्वच्छ पानी, स्वच्छ-हवादार कमरे, पेशाबघर, बैठने के लिए डैस्क अथवा टाट-पट्टियाँ आदि का भी भारी अभाव मिलेगा। इसके बाद कक्षाओं में अफरा-तफरी का माहौल मिलेगा। अधिकतर अध्यापक व कर्मचारी अपनी ड्यूटी से नदारद मिलेंगे। कुछ अध्यापक मिलेंगे तो वे बच्चों को रट्टा-पढ़ाई करवाते मिलेंगे। वे अध्यापक मूल पाठ्य-पुस्तक का अध्ययन करवाने की बजाय कुंजियों, गाईडों अथवा प्राईवेट प्रकाशनों द्वारा हल किए प्रश्नों वाली पुस्तकों में निशान लगवाकर और उसे बच्चों को रटकर लाने का हुक्म सुनाकर अपने कत्र्तव्य की इतिश्री करते मिलेंगे। ऐसे में शिक्षा का स्तर निरन्तर गिरेगा नही ंतो और क्या होगा? क्या सरकार अथवा उसके नुमायन्दों ने कभी इन तथ्यों का कभी आकलन करने की कोशिश की है? बच्चों को अतिरिक्त अंक देकर पास-प्रतिशत बढ़ाने का प्रस्ताव पारित करने वाले लोग क्या कभी बच्चों के भविष्य से हो रहे खिलवाड़ के प्रति जरा भी नहीं सोचते हैं?

यदि सरकार अपनी कथनी और करनी को एक रूप देते हुए शिक्षा के क्षेत्र में आ रही निरन्तर गिरावट को वास्तव में रोकना चाहती है तो उसे अपने बयान के मुताबिक ३० सितम्बर तक हर हाल में सभी रिक्त पदों पर पात्र अध्यापकों की भर्ती प्रक्रिया पूरी करे और स्कूलांे में मूलभूत सुविधाओं को उपलब्ध करवाए। कम से कम शिक्षा के मामले में सरकार किसी भी तरह का कोई समझौता न करे तो शिक्षा जगत् के लिए यह एक बहुत बड़ी अनूठी एवं स्वर्णिम उपलब्धि होगी।



(राजेश कश्यप)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Your Comments