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बुधवार, 31 मार्च 2010

(विशेष लेख)

सन्दर्भ : ‘राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम’


ग्रामीण श्रमिकों को रोजगार की सौगात

-राजेश कश्यप



बेकारी, बेरोजगारी, भूखमरी, गरीबी आदि सब मानवीय जीवन के लिए किसी भयंकर अभिशाप के समान हैं। ये सब कुपोषण, आत्महत्या, अस्वस्थता, अशिक्षा, अंधविश्वास आदि न जाने कितनी अन्य समस्याओं के ग्राफ को निरन्तर बढ़ाने वाले मूल कारक हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात देश की सबसे बड़ी गंभीर समस्या गरीबी और भूखमरी ही थी। इसी के मद्देनजर राजनीतिक दलों ने देश से गरीबी व भूखमरी का नामोनिशान मिटाने का झण्डा बुलन्द करना और इस गंंभीर मुद्दे को अपने वोट बैंक का आधार बनाना शुरू किया। इस सन्दर्भ में कृषि एवं शिक्षा के विकास को बढ़ावा दिया गया और पंचवर्षीय जैसी कल्याणकारी योजनाओं के अलावा गरीबी उन्मूलन के अनेक कार्यक्रम लागू किए गए।

गरीबी एवं बेरोजगारी से निपटने के लिए सरकार द्वारा कार्य के बदले अनाज योजना, जवाहर रोजगार योजना, जवाहर ग्राम समृद्धि योजना, सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना जैसी अनेक योजनाएं समय-समय पर लागू की गईं। इन सब योजनाओं का प्रमुख उद्देश्य ग्रामीणों को रोजगार देने का रहा। लेकिन दुर्भाग्यवश किसी न किसी खामी (कमी) का ये योजनाएं निरन्तर शिकार होती चलीं गईं और गरीबी एवं बेरोजगारी का दंश ज्यों का त्यों बना रहा। विपक्षियों द्वारा सरकारों के खिलाफ चलाए गए गरीबी एवं बेरोजगारी उन्मूलन आन्दोलनों ने जनता के हृदय में घी में आग का काम किया और अंतत: जनता-जर्नादन ने सरकार के समक्ष रोजगार की गारंटी देने की अहम  माँग कर डाली। रोजगार गारंटी की इस माँग ने एक समय सरकार की नींव तक हिलाकर रख दी थी।

रोजगार गांरटी योजना के लिए एक लंबे समय तक भयंकर संघर्ष चला और अंतत: जनता के अथक एवं अटूट संघर्षमयी आन्दोलनों की जीत हुई। सरकार ने पिछली रोजगार योजनाओं की खामियों को दूर करते हुए ‘राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारन्टी अधिनियम, २००५’ को मूर्त  रूप दे दिया। इस अधिनियम को फरवरी, २००६ में सर्वसम्मति से संसद में ध्वनिमत से पारित कर दिया गया।

भारत सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारन्टी अधिनियम, २००५ को तीन मुख्य चरणों में बांटकर लागू कर दिया। पहले चरण के अन्तर्गत देश के २०० जिलों में प्रायोगिक तौरपर योजना लागू की गईं। इस प्रथम चरण में वर्ष २००७-०८ के दौरान ३ करोड़ ३० लाख लोगों को रोजगार हासिल हुआ। कुछ खामियों को छोड़कर इस योजना को सफलता की श्रेणी में शामिल किया गया। योजना की सफलता से उत्साहित सरकार ने दूसरे चरण के अन्तर्गत अप्रैल, २००७ से देश के अन्य १३० जिलों में भी लागू कर दिया गया। अपेक्षानुरूप अच्छे परिणाम देखते हुए सरकार ने गत १ अपै्रल, २००८ से तीसरे चरण के अन्तर्गत देश के सभी जिलों में भी लागू कर दिया। इस तरह आज पूरे भारत में ‘राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम’ लागू है।

योजना के प्रमुख उद्देश्य

इस योजना का प्रमुख उद्देश्य ग्रामीण परिवारों को एक वित्तीय वर्ष अर्थात् १ अप्रैल से ३१ मार्च के दौरान कम से कम १०० दिन का अकुशल शारीरिक रोजगार उपलब्ध करवाने का है। इस योजना के अन्तर्गत गाँव से बेरोजगारी एवं गरीबी को दूर करने, ग्रामीणों का शहरों में पलायन को रोकने, महिलाओं को सशक्त करने एवं गाँव की सामुदायिक, आर्थिक व सामाजिक परिसम्पतियों के निर्माण करने जैसे लक्ष्य रखे गए हैं।

योजना के लिए पात्रता एवं पंजीकरण

यह योजना परिवार एवं माँग पर आधारित है। गाँव का कोई भी वयस्क सदस्य जो १८ या उससे अधिक आयु का है, वह अपनी ग्राम पंचायत को लिखित में आवेदन देकर काम हासिल कर सकता है। इस योजना का लाभ उठाने के लिए सबसे पहले रोजगार के इच्छुक परिवार को अपने गाँव के सरपंच के पास अपना पंजीकरण करवा लेना चाहिए क्योंकि बिना पंजीकरण करवाए रोजगार के लिए आवेदन नहीं किया जा सकेगा। यह पंजीकरण पाँच वर्ष के लिए मान्य होगा। पंजीकरण सादे कागज पर अथवा सरपंच के पास उपलब्ध छपे हुए फार्म पर नाम, पता, आय ु, लिंग, जाति, परिवार के वयस्क सदस्यों के फोटो आदि विवरण दर्ज करवाया जाना बहुत जरूरी है।

रोजगार की प्रक्रिया

रोजगार के इच्छुक परिवार को ग्राम पंचायत द्वारा पंजीकरण के उपरांत एक रोजगार कार्ड (जॉब कार्ड) १५ दिन के अन्दर उपलब्ध करवाया जाता है। इसी जॉब कार्ड में रोजगार पाने वाले परिवार द्वारा किए गए काम के दिनों एवं प्राप्त की गई मजदूरी व बेरोजगारी भत्ता आदि का विवरण दर्ज किया जाता है। यह जॉब कार्ड रोजगार परिवार के पास ही रहता है और इसकी एक डुपलीकेट प्रति ग्राम पंचायत के पास स ुरक्षित रहती है। परिवार की सूचना पर जॉब कार्ड में वयस्क सदस्यों के नाम जोड़े अथवा काटे जा सकते हैं। जॉब कार्ड एकदम मुफ्त मिलता है। यदि किसी परिवार का जॉब कार्ड खो जाता है तो वह पंचायत को प्रार्थना-पत्र देकर उसकी डुप्लीकेट कॉपी हासिल की जा सकती है। इस सन्दर्भ में किसी भी तरह की शिकायत खण्ड विकास कार्यक्रम अधिकारी (बी.डी.पी.ओ.) अथवा जिला उपायुक्त (डी.सी.) को की जा सकती है।

जॉब कार्ड धारक को जब काम करने की जरूरत हो तो वह ग्राम पंचायत से काम देने के लिए लिखित या मौखिक माँग करनी चाहिए और माँग की रसीद हासिल करनी चाहिए। पंचायत को एक बार में कम से कम १४ दिन काम करने के लिए प्रार्थना-पत्र देना जरूरी होता है। इस दौरान मजदूर को सप्ताह में ६ दिन कार्य करना पड़ता है। एक विकलांग व्यक्ति भी काम के लिए आवेदन कर सकता है। पंचायत द्वारा उसकी शारीरिक क्षमता के अनुसार काम देगी। जॉब कार्ड धारक द्वारा लिखित में काम माँगने के १५ दिन के अन्दर पंचायत को उसे ५ किलोमीटर के दायरे में काम देना होगा। यदि ५ किलोमीटर से अधिक दूरी पर काम दिया गया तो मजदूर को १० प्रतिशत अतिरिक्त मजदूरी दी जाएगी।

बेरोजगारी भत्ता

यदि किसी मजदूर को पंचायत १५ दिनों के अन्दर काम नहीं दे पाती है तो उस मजदूर को पहले ३० दिनों के लिए न्यूनतम मजदूरी का चौथा हिस्सा और शेष दिनों के लिए मजदूरी का आधा हिस्सा बेरोजगारी भत्ते के रूप में दिया जाएगा। यदि काम माँगने वाला व्यक्ति दिए गए काम के लिए बताए गए स्थान पर नहीं पहुंचता है अथवा बेरोजगारी भत्ता पाने वाले व्यक्ति को काम दे दिया जाता है तो ऐसी परिस्थितियों में बेरोजगारी भत्ता नहीं मिलेगा।

कार्य की प्रकृति

ग्राम पंचायत या खण्ड विकास कार्यक्रम अधिकारी द्वारा तय किए गए कार्य ही मजदूरों को करने होते हें। मजदूर अपनी मर्जी से काम का चुनाव नहीं कर सकते हैं। यदि मजदूर चाहें तो ग्राम सभा में कार्यों के चयन के समय अपने सुझाव जरूर दे सकते हैं। इस योजना के अन्तर्गत जल संरक्षण, जल एकत्रण, वन रोपण, लघू व सूक्ष्म सिंचाई के नालों का निर्माण, अनुसूचित जाति@अनुसूचित जनजाति तथा भूमि सुधार कार्यक्रम, इन्दिरा आवास योजना के लिए निर्माण, जल निकासी, बाढ़ नियन्त्रण व संरक्षण और केन्द्र सरकार से परामर्श कर राज्य सरकार द्वारा निर्देशित अन्य कार्य करवाए जाते हैं।

मजदूरों को सुविधाएं

पंचायतों को कार्यस्थल पर मजदूरों के लिए स्वच्छ पीने का पानी, विश्राम व बच्चों के लिए छाया का प्रबन्ध, आपातकालीन उपचार, प्राथमिक चिकित्सा सुविधाओं के लिए प्राथमिक उपचार बॉक्स, पालनागृह@शिशुशाला जैसी सुविधाएं हर हालत में उपलब्ध करवाई जाएंगी। यदि किसी कार्यस्थल पर ६ वर्ष से कम आयु के पाँच या इससे अधिक बच्चे आते हैं तो पंचायत को महिला श्रमिकों अथवा विकलांग श्रमिक में से किसी एक की जिम्मेदारी उन बच्चों की देखभाल के लिए लगानी होगी। बच्चों की देखभाल करने वाले श्रमिक को अन्य श्रमिकों के बराबर ही न्यूनतम मजदूरी का भूगतान किया जाएगा। महिलाओं को रोजगार अवसरों के एक तिहाई भागीदारी देनी बहुत जरूरी है। इस योजना के तहत महिलाओं को पुरूषों के बराबर ही मजदूरी देने के प्रावधान किया गया है।

मजदूरी की दर एवं वितरण

राज्य सरकार द्वारा निर्धारित कृषि संबंधी न्यूनतम मजदूरी की दर ही योजना के अन्तर्गत मजदूरी की दर है। उदाहरण के तौरपर हरियाणा सरकार द्वारा १ जुलाई, २००७ से अकुशल श्रेणी की न्यूनतम मजदूरी दर १३५ रूपये प्रतिदिन निर्धारित की गई है। योजना के अन्तर्गत मजदूरी समय दर (टाईम रेट) के आधार पर हो अथवा ईकाई-दर (काम@पीस रेट) के आधार पर हो, लेकिन हर सूरत में मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी दर से भुगतान हर सप्ताह या अधिक से अधिक काम करने के १५ दिन के अन्दर करना बहुत जरूरी होता है। राज्य सरकार चाहे तो मजदूरों को उनके वेतन का एक भाग प्रतिदिन नगदी के रूप में दिलवा सकती है। यदि निर्धारित समय सीमा में मजदूरी का भुगतान नहीं होता है तो श्रमिक मजदूरी भुगतान अधिनियम, १९७२ के अन्तर्गत मुआवजा पाने का अधिकारी होगा। श्रमिकों के बचत खाते ग्रामीण बैंको अथवा गाँव के डाकघरों में मुफ्त में खोलने की सुविधा की गई है। श्रमिकों की न्यूनतम मजदूरी इन्ही बचत खातों में नियमित रूप से जमा की जाती है, जिसे श्रमिक जब चाहे निकलवा सकता है

मुआवजा सुविधाएं

इस योजना के अन्तर्गत किसी श्रमिक को काम करते हुए किसी भी तरह की चोट लग जाती है तो उसे नि:शुल्क चिकित्सा सुविधाएं दी जाती हैं। यदि श्रमिक को चोट के ईलाज के लिए अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है तो उसका प्रबन्ध राज्य सरकार करती है। श्रमिक जब तक अस्पताल में रहता है, तबतक उसे आधी मजदूरी भत्ते के रूप में प्रतिदिन दी जाती है। यदि दुर्भाग्यवश काम करते हुए कोई श्रमिक दुर्घटना का का शिकार हो जाता है और स्थायी रूप से अपंग हो जाता है तो राज्य सरकार उसे क्षतिपूर्ति के रूप में अर्थात् मुआवजे के तौरपर २५ हजार रूपये की राशि दी जाती है। यदि दुर्घटना में श्रमिक की मृत्यु हो जाती है तो यह राशि उसके कानूनी उत्तराधिकारियों को दी जाती है।

कुल मिलाकर राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारन्टी योजना अकुशल मजदूरों के लिए एक वरदान के समान है। इस योजना के तहत कम से कम कोई व्यक्ति रोजगार का अभाव तो नहीं झेल पाएगा। यदि मजदूर इस योजना के अन्तर्गत अपनी ग्राम पंचायत के पास जाकर अपना पंजीकरण करवाएं और उनसे काम माँगे तो उनकी शत-प्रतिशत बेरोजगारी एवं बेकारी की समस्या का समाधान हो जाएगा। यदि योजना के कानूनी प्रावधानों का लाभ उठाते हुए मजदूर पूरी ईमानदारी, लगन, मेहनत एवं निष्ठा से काम करें तो गरीबी, भूखमरी, बेरोजगारी और बेकारी जैसी लाईलाज हो चुकी सामाजिक समस्याओं का समाधान पिछले ६० वर्षों में लागू हुई योजनाओं से संभव नहीं हो पाया, वह इस योजना में सौ प्रतिशत संभव हो सकता है। इसके बाद हर घर में खुशहाली होगी और हर गाँव में समृद्धि का आलम होगा। फिर देश में कोई भी व्यक्ति भूखे पेट नहीं सोएगा और हमारा प्रदेश व देश प्रगति एवं समृद्धि का एक नया इतिहास लिखने में सक्षम होगा। इन सब उपलब्धियों के लिए प्रत्येक श्रमिक को अपने काम का हक हासिल करना ही होगा।


(राजेश कश्यप)

स्वतंत्र पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक


मंगलवार, 30 मार्च 2010

उदारीकरण ने गरीबों का किस हद तक भला किया है?

                                     उदारीकरण ने गरीबों का किस हद तक भला किया है?


पूरी दुनिया उदारीकरण के गुण गा रही है। उदारीकरण के चलते ये हो गया है और वो हो गया है। न जाने कितने तर्क-वितर्क उदारीकरण के पक्ष में दिए जा रहे हैं। लेकिन वास्तविकता क्या है? यदि निष्पक्षता एवं ईमानदारी के साथ कहा जाए तो ‘उदारीकरण’ एक आम आदमी के लिए महाधोखा है। यदि गरीबों के दृष्टिगत देखा जाए तो उदारीकरण उनके लिए एक महाभिशाप है।

आखिर उदारीकरण ने किया क्या है? क्या उदारीकरण ने अमीरी और गरीबी के बीच की खाई को निरन्तर बढ़ाने का काम नहीं किया है? क्या उदारीकरण से बेरोजगारी, भूखमरी, बेकारी आदि न जाने कितनी ही भयंकर समस्याएं इस दुनिया को नहीं दी हैं? क्या उदारीकरण ने अमीरों को और भी अमीर और गरीबों को और भी गरीब नहीं बनाकर रख दिया है? क्या उदारीकरण ने श्रमिकों, कामगारों, दस्तकारों आदि के हाथ जड़ से नहीं उखाड़ लिये हैं? यदि इस तरह के प्रश्नों  के मद्देनजर गहन एवं व्यापक विचार-मन्थन किया जाये तो पाएंगे कि उदारीकरण विनाश का अभिप्राय बना है।

उदारीकरण ने मशीनी युग ला दिया है। मशीनों ने जहाँ श्रम एवं समय की बचत की, वहीं मजदूरों, दस्तकारों एवं अन्य कामगारों की रोजी रोटी छीन ली। एक मशीन से एक आदमी सौ से अधिक लोगों के बराबर काम कम समय एवं कम खर्च में देखते ही देखते निपटा देता है। उदाहरण के तौरपर जे.सी.बी. (पीला पंजा) मशीनों ने मजदूरों को बेकार बना दिया। कम्प्यूटर ने लाखों-करोड़ों पढ़े लिखे नौजवानों को बेरोजगार बनाकर खड़ा कर दिया। कपड़ा बनाने वाली मशीनों ने बुनकरों को, ट्रैक्टर  ने हलधरों एवं औजार बनाने वाले लुहारों को, फ्रिज  ने मटके बनाने वाले कुम्हारों को, वाशिंग मशीन ने कपड़े धोने वाले धोबियों को, कटाई-पिनाई-धुनाई आदि सब करने वाली मशीनों ने सामान्य श्रमिकों एवं खेत-विहिन लोगों को बेरोजगारी का कड़ा दंश दिया है।

उदारीकरण के चलते ही समाज की हर समस्या विकराल बनी हुई है। मात्र १० से १५ प्रतिशत लोग ही उदारीकरण का सुख भोग रहे हैं। बाकी तो उदारीकरण का शाप ही झेल रहे हैं। हमारा देश स्वतंत्रता के छह दशक पार कर चुका है, इसके बावजूद आज भी रोटी, कपड़े और मकान जैसी मूलभूत सुविधाएं देश के सभी नागरिकों को नसीब नहीं हो सकी हैं। इतना ही नहीं विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में ७० फीसदी लोग गरीबी की रेखा के नीचे जीवन यापन करने को मजबूर हैं। क्या यही उदारीकरण है?

जो उदारीकरण सभी लोगों को काम नहीं दे सकता, दो वक्त की रोटी नहीं उपलब्ध करवा सकता, तन ढांकने के लिए कपड़े का जुगाड़ नहीं कर सकता, सिर ढ़कने के लिए एक छत मुहैया नहीं करवा सकता तो आग लगे ऐसे उदारीकरण को!

हमें उदारीकरण को व्यापक अर्थों में समझना चाहिए। जो उदारीकरण समस्याओं का अंबार लगा रहा हो और विश्व को विनाश की कगार पर ले जा रहा हो तो उसका तो कम से कम आँख बन्द करके गुणगान नहीं करना चाहिए! यदि हमें अपनी मूलभूत समस्याओं से छुटकारा पाना है तो उदारीकरण का अंधानुकरण हमें रोकना ही पड़ेगा। ऐसा आज नहीं तो कल अवश्य ही करना पड़ेगा। तो क्या गलत कहा मैनें?

नाम : राजेश कश्यप
मोबाईल नंबर : ०९४१६६२९८८९
ई-मेल. mailto:र्क्क१००@रेदिफ्फ्मैल.com

डाक पता :
गाँव व डाकखाना. टिटौली
जिला व तहसील. रोहतक
हरियाणा-१२४००५
पद : शोध सहायक

संस्थान/कॉलेज का नाम : महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक।

शुक्रवार, 26 मार्च 2010

मरते हुए ग्रामोफोन को, कोई तो बचाओ !!!



सर्वविद्यित है कि संगीत के बिना पूरी सृष्टि ही शून्य है। संगीत से जीवन में उमंग, उत्साह, चेतना एवं जोश  का अद्भूत संचार होता है। आधुनिक युग में तो संगीत की दुनिया ही निराली है। आज संगीत बहुत बड़ा व्यवसाय बन चुका है। तकनीकी के मामले में आज संगीत अपने चरम पर है। संगीत का तकनीकी स्वरूप १९ वीं शताब्दी से शुरू हुआ था। इससे पूर्व संगीत का क्या स्वरूप था, यह सोचना ही रोमांच पैदा करता है।
दूनिया को संगीत की सौगात देने का श्रेय अमेरिकी टॉमस अल्वा एडीसन को जाता है, जिन्होने १८७७ में ग्रामोफोन का आविष्कार किया। उनके इस आविष्कार ने संगीत की दुनिया ही स्थापित कर दी। इसके बाद तो १८९० के दशक में अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, इंग्लैण्ड आदि देशों  में संगीत रिकार्ड़ करने वाली कंपनियां बाजारों में छा गईं।
इंग्लैण्ड की ग्रामोफोन कंपनी १८९८ से ही अंग्रेजी गानों के रिकार्ड़ भारत में भेजने लगी थी। इनकी अच्छी खासी माँग के चलते कंपनी ने १९०१ में भारत में ही कोलकाता में एक शाखा खोल ली। कंपनी में पहला रिकार्ड़ १९०२ में गौहर खान की आवाज में भरा। पहले जहां भारत मंे सिर्फ रिकार्डिंग ही होती थी और डविट जर्मनी से करवाई जाती थी, अब यह व्यवस्था भी भारत में ही कर दी गई। इस तरह पूरी तरह भारत में निर्मित पहला रिकार्ड++ २९ जून, १९०८ को कंपनी ने जारी किया।
अब तो ग्रामोफोन भारत में सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक बन गया था। घर-घर में रिकार्डर होता था, जो चाबी से चलता था। इसका वजन लगभग चार किलोग्राम के आसपास होता था। इस सामान्यत: दस इंच व्यास वाली ७८ आर.पी.एम. डिस्क चलती थी। इसकी एक तरफ ही गाना रिकार्ड़ किया होता था। कंपनी ने दोनों तरफ गानों के रिकार्ड़ों की शुरूआत १९०८ में की।
सन् १९२८ में ग्रामोफोन की दुनिया में इलैक्ट्रीक पद्धति आ गई और संगीत की दुनिया में नए युग का सूत्रपात हुआ। अब तकनीकी रूप में भी भारी सुधार हुआ। कंपनी ने देशभर में घूम-घूमकर शास्त्रीय गायकों से रिकार्ड़ करवाए। प्रारंभ में संभ्रांत परिवार की महिलाओं का गाना अच्छा नहीं माना जाता था। इसीलिए प्रारंभ के दो-तीन दशकों तक हिजड़ों और महफिलों की शान समझी जाने वाली औरतों के गायन ही रिकार्ड़ किए जाते थे। इस कड़ी में मलिका जान, कावेरी जान, चेतनबाई, अमीर जान, मुन्नी बाई, जोधाबाई, अंगूरबाला, जानकीबाई, इन्दुबाला, छप्पन छुरी जैसी लोकगायिकाओं के रिकार्ड़ बाजार में छाए रहे। इसके साथ ही उस्ताद झण्डे खां, उस्ताद भल्ले खां, उस्ताद अब्दुल कलीम खां, पंडित ओंकारनाथ ठाकुर जैसे गायकों के रिकार्ड़ भी खूब लोकप्रिय हुए।
संगीत की बदलती दुनिया में कई कंपनियां बाजार में उतरीं, लेकिन नवीनता के अभाव में लंबे समय तक टिक नहीं पाईं। इस तरह सिर्फ ग्रामोफोन कंपनी ही शीर्ष पर रही। हिन्दुस्तान कंपनी के रिकार्ड़ की पहली डिस्क गुरू रविन्द्र नाथ टैगोर के स्वर में रिकार्ड़ की गई थी, जिसमें एक तरफ उनका गायन था तो दुसरी तरफ उनका काव्य पाठ। मैगाफोन के पहले रिकार्ड़ में प्रख्यात गायक व संगीतकार काजी जनरूली इस्लामी का स्वर था। एक अन्य कंपनी सेलोना ने अपना पहला रिकार्ड़ आधुनिक बांग्ला गायन का निकाला था।
हिन्दुस्तान कंपनी के संस्थापक एवं कर्णधार चण्डीचरण साहा संगीत की गहरी समझ रखते थे। उन्होने ही अमर गायक सहगल की प्रतिभा को पहचाना, तराशा  और संगीत की दुनिया को एक अनमोल तोहफा दिया। उन्होने सहगल की आवाज में असंख्य रिकार्ड़ बनाए। उन्होने ही उस्ताद फैयाज खां, उस्ताद बड़े गुलाम अली खां जैसी संगीत हस्तियों को तराशा  था। इनके बाद तो ग्रामोफोन डिस्कों पर लता, मोहम्मद रफी, मुकेश, नूरजहां आदि गायक-गायिकाओं के स्वर गूंजने लगे।
आधुनिक संगीत की दुनिया में ग्रामोफोन जैसी अनूठी धरोहर आज संरक्षण की मोहताज बन गई है। आधुनिक दौर में ग्रामोफोन बनने बंद हो गए हैं। सिर्फ पुराने ग्रामोफोन व डिस्क ही अचरज का विषय बनकर रह गई हैं। हालांकि आज भी संगीत की इस प्राचीन धरोहर ग्रामोफोन के दिवानों की कोई कमी नहीं है। इन दीवानों के चलते ही आज भी ग्रामोफोन अपनी जीवन्तता बनाए हुए हैं। यदि ग्रामोफोन के दीवानों की दिवानगी जिन्दा रही तो निश्चित  तौरपर संगीत की अनूठी धरोहर एवं संरक्षण का मोहताज ग्रामोफोन इक्कीशवीं सदी में भी संगीत की दुनिया में अपनी उपस्थिति का विशेष अहसास करवाता रहेगा. लेकिन इस दीवानगी के साथ साथ यह भी जरूरी है की मरते हुए ग्रामोफोन जैसी अनमोल संगीत धरोहर  को आखिर बचाया कैसे जाये...? यही सब सोचकर अनायास ही मेरे मुंह के द्वारा दिल से चीख निकल जाती है----- अरे ! कोई तो मरते हुए ग्रामोफोन को बचाओ----!!!!
(राजेश कश्यप)

गुरुवार, 25 मार्च 2010

खाप पंचायतों के फरमान बनाम संविधान


खाप पंचायत का एक दृश्य

‘ढ़राणा-प्रकरण’, ‘वेदपाल-’हत्याकाण्ड’, ‘बलहम्बा-हत्याकाण्ड’, ‘सिवाना हत्याकाण्ड’ आदि एक के बाद एक कानून की धज्जियां उड़ाने वाली घटनाओं ने हरियाणा की खाप पंचायतों के विभत्स होते स्वरूप, स्वार्थपूर्ण राजनीतिकों की ‘वोटनीति’ और बेबस कानूनी सिपाहियों के बंधे हाथों ने २१वीं सदी के प्रबुद्ध समाज और ६३वां स्वतंत्रता दिवस मनाने वाले वि’व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश  को गहन चिन्तन करने के लिए विवश  कर दिया है। यह सब वर्जनाओं को तोड़ती आधुनिक युवापीढ़ी और कानून व न्याय प्रणाली से सर्वोपरि समझने वाली समाज की खाप पंचायतों की तानाशाही  के आपसी वैचारिक व सैद्धान्तिक टकरावों का परिणाम है।

सर्वखाप पंचायतों की लालफीताशाही  और उसे खूनी, असभ्य व गैर-कानूनी ‘तुगलकी फरमानों’ एवं ‘फतवों’ को देखते हुए यह कदापि नहीं कहा जा सकता कि हमने स्वतंत्रता के छह दशक  पार कर लिए हैं और हम २१वीं सदी के लोकतांत्रिक देश व सुसभ्य समाज के नागरिक हैं। सहज यकीन नहीं होता कि एक मासूम व निर्दोष व्यक्ति समाज के कुछ स्वयंभू ठेकेदारों की संकीर्ण, उन्मादी व बर्बर सोच का शिकार हो जाता है। किसी की जघन्य हत्या कर दी जाती है और किसी को उसके मौलिक अधिकारों से वंचित करके खानाबदोश  जिन्दगी जीने के लिए विवश  कर दिया जाता है और हमारा प्रजातांत्रिक कानून मूक-दर्शक व असहाय खड़ा नजर आता है।

सदियों से हमारे देश  में जाति-पाति, धर्म-सम्प्रदाय, छुआछूत, उंच-नीच, स्त्री-पुरूष आदि सब भेदभावों को मिटाने के लिए सदियों से जागरण अभियान चल रहे हैं। इन सब सामाजिक विकृतियों से तो हम निजात हासिल नहीं कर पाए, लेकिन ‘गोत्र-विवाद’ नामक एक और समस्या के शिकार हो गए। सर्वखाप पंचायतों की एक स्पष्ट मांग उभरकर सामने आई है कि वे गाँव एवं गुहाण्ड (पड़ौसी गाँव) के गौत्र की लड़की को अपनी बेटी मानते हैं, इसलिए उसे बहू के रूप में कदापि स्वीकार नहीं कर सकते। कुछ बुद्धिजीवी लोग अपनी इस हजारों वर्ष पुरानी परंपरा, रीति-रिवाज एवं संस्कार को जीवन्त बनाए रखने एवं कानूनी मान्यता प्राप्त करने के लिए संवैधानिक नियमों के तहत ‘हिन्दू विवाह अधिनियम’ में संशोधन करवाने की राह पर आगे बढ़ने के लिए एकजूट हो रहे हैं, जोकि स्वागत योग्य है। संवैधानिक राह पर चलते हुए अपनी बात रखना सराहनीय कदम कहलाएगा और असंवैधानिक रूप से अपने रौब व धाक प्रदर्शित करने के लिए गैर-कानूनी रूप से बेसिर-पैर के फैसले सुनाना एकदम गलत, बेतुका एवं तुगलकी फरमान अथवा फतवा ही करार दिया जाएगा।

कुछ उन्मादी लोग मीडिया जगत को ‘नौसिखिए’ और ‘बेवकूफ’ बताकर अपने गाल बजाते हैं, क्या उन्होने कभी आत्म-मन्थन किया है? क्या उन्हे ‘खाप’ अथवा ‘सर्वखाप’ की वास्तविक परिभाषा, सिद्धान्तों, मूल्यों एवं ध्येयों का भी ज्ञान है? ‘सर्वखाप’ की परिभाषा के अनुसार ‘ऐसा सामाजिक संगठन जो आकाश  की तरह सर्वोपरी हो और पानी की तरह स्वच्छ, निर्मल एवं सबके लिए उपलब्ध अर्थात न्यायकारी हो।’ क्या समाज के उन्मादी ठेकेदारों ने कभी सोचा है कि वे चौधर के अहंकार एवं नाक व मूच्छों के सवाल के नाम पर मदान्ध होकर ‘सर्वखाप’ के मूल सिद्धान्तों से कितनी कोसों दूर निकल गए हैं? सबसे बड़े आश्चर्य  का विषय तो यह है कि अधिकतर जिन लोगों की अपने घर में कोई अहमियत नहीं हैं, वे बाहर पंचायती बने बैठे हैं। हालांकि खाप पंचायतों में चन्द बुजुर्ग एवं विद्वान लोग ऐसे बचे हुए हैं, जिनका समाज में पूरा मान-सम्मान है, लेकिन उनकी आजकल कोई अहमियत ही नहीं मान रहा है। उन्मादी एवं असामाजिक तत्वों के दबाव में आकर उन्हें हाँ में हाँ मिलानी पड़ रही है। इसी के परिणास्वरूप आज खाप पंचायतों पर गहरा प्र’नचिन्ह उठ खड़ा हुआ है।

आज निश्चित  रूप से पंचायतों, गोत्र पंचायतों, खाप पंचायतों एवं सर्वखाप पंचायतों की कार्यप्रणाली व कार्यशैली  में दिनरात का अन्तर आ चुका है। पहले पंचायतें जोड़ने का काम करती थीं, आज पंचायतें तोड़ने का काम कर रही हैं। पहले लोगों को बसाने के पूरे प्रयास किए जाते थे, आज उजाड़ने के किए जाते हैं। पहले व्यक्ति की जान, माल, संपत्ति, सम्मान आदि हर तरह की सुरक्षा की जाती थी, लेकिन आज किसी तरह की कोई परवाह ही नहीं की जाती। पहले खाप पंचायतें सामाजिक समस्याओं एवं कुरीतियों के खिलाफ ऐतिहासिक निर्णय लेने बैठती थीं और अपने स्तर पर ही हर विवाद का निष्पक्ष एवं सर्वमान्य हल करके कानून की मदद किया करती थीं। लेकिन आज ये सब खाप पंचायतें विवाह-शादियों के ‘गोत्र’ संबम्धी मामलों में उलझकर केन्द्रित सी हो गई हैं और कानून को ठेंगा दिखाने व उसे अपने हाथ में लेने के के लिए गैर-कानूनी व तुगलकी फरमान सुनाने को आतुर हुई दिखाई देती हैं। पहले खाप पंचायतों में बड़े बुजुर्ग बड़ी शांति, धैर्य, संयम एवं सौहार्द भाव से निष्पक्ष निर्णय सुनाते थे, आज उन्हीं पंचायतों में ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ की तर्ज पर फैसले होते हैं और उन्मादी व असामाजिक तत्वों के लठ्ठ के जोर पर पंचायती नुमाइन्दे बेसिर-पैर के निर्णय लेते हैं।

आज जब भी कोई प्रबुद्ध व्यक्ति इन तथाकथित समाज सुधारक खाप पंचायतों को वास्तविक आईना दिखाने की कोशिश  भर करता है अथवा लोकतांत्रिक देश  में कानून के सम्मान के लिए कलम चलाता है तो समस्त खाप पंचायतों की भौहें तन जाती हैं। खाप-पंचायतों के कथित प्रतिनिधि सरेआम मंचों से कानून की सीख देने वाले बुद्धिजीवियों, पत्रकारों एवं कलमकारों को गालियां देने लगते हैं और अनर्गल प्रलाप करने लगते हैं। इसी दुर्भावना के चलते ही लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ पर किसी न किसी रूप में हमले किए जाते हैं और अपनी भड़ास निकाली जाती है। सर्वखापों  द्वारा सजाए गए ऐतिहासिक मंचों पर ही बुरी तरह से सरेआम नैतिकता, न्याय, सिद्धान्तों, मूल्यों, संस्कृति एवं संस्कारों की बुरी तरह से धज्जियां उड़ती दिखाई देती हैं और कानून व प्रशासन  मूक-दर्शक बना बेबसी के आंसू बहाने के सिवाय कुछ नहीं कर पाता है। गत ९ अगस्त २००९ को बेरी में हुई सर्वखाप पंचायत इसका ताजा उदाहरण कहा जा सकता है।

हर अति का एक अंत होता है। सर्वखाप पंचायतों के विभत्स होते स्वरूप को देखकर लगता है कि संभवत: हजारों वर्ष पुरानी खाप परंपरा अपने चरम पर पहुंच चुकी है। आज की नई पीढ़ी अपनी ही पुरानी पीढ़ी के खिलाफ बगावती तेवर अपना चुकी है। आधुनिक युवावर्ग समाज की जाति-पाति, उंच-नीच, धर्म-मजहब आदि पुरानी विकृतियों को छोड़कर एवं समाज की वर्जनाओं को तोड़ते हुए अपनी जिन्दगी के स्वयं फैसले करने लगी है और समाज के कथित ठेकेदारों को खुली चुनौती देना शुरू कर दिया है। आधुनिक युवापीढ़ी की इस पहल के पक्ष में  कानून एवं प्रबुद्ध वर्ग भी खुलकर सामने आ चुका है। केन्द्रीय गृहमंत्री पी. चिदम्बरम द्वारा ‘सम्मान’ के नाम पर हो रही हत्याओं पर रोक लगाने व उनके दोषियों को वर्तमान कानून के तहत ही सजा देने का बयान और मीडिया, बुद्धिजीवी एवं महिला संगठनों द्वारा खाप पंचायतों को गैर-कानूनी घोषित करवाने की तेज होती माँग संभवत: खाप-पंचायतों की मनमानी पर अंकुश  लगाने में कामयाब हो सके और उन्हें ‘आत्म-मन्थन’ करने के लिए विवश  कर सके।

यदि सर्वखाप प्रतिनिधि स्वविवेक, एकाग्रचित, निष्पक्ष, मानवीय, संवैधानिक एवं लोकतांत्रिक होकर ‘आत्म-मंथन’ करें तो उन्हें स्वत: ही ज्ञान हो जाएगा कि निश्चित रूप से हमारी सामाजिक एकता, सौहार्द, भाईचारे एवं सांस्कृतिक मूल्यों की प्रतीक खाप पंचायतें अपने मूल्यों को बरकरार रख पाने में कहीं न कहीं असफल रही हैं और जिसके चलते उन पर उंगलियां उठ रही हैं। खाप पंचायतों में उन्मादी, अहंकारी, न’ोड़ी, अल्पबुद्धि, संकीर्ण एवं हिंसक प्रवृति वाले व्यक्तियों की अधिक संख्या में घूसपैठ हो गई और बुजुर्ग एवं बुद्धिजीवी लोगों की निरन्तर कमी होती चली गई। इसी के चलते खाप पंचायतों द्वारा एक के बाद एक गैर-कानूनी, दोगले, बेसिर-पैर के खूनी, दहशतनुमा फैसले व फतवे सुनाए गए और सर्वखाप पंचायतें बदनाम होकर रह गईं।

कुल मिलाकर खाप पंचायतों को इस समय गहन आत्म-मंथन करने व समय की माँग को सहज व सहर्ष स्वीकार करते हुए संवैधानिक डगर पर चलने की कड़ी आवश्यकता  है। सर्वखाप पंचायतों के लिए समयानुरूप ऐतिहासिक निर्णय लेने, अपनी उदार व सामाजिक छवि को प्रकट करने, लोकतंत्र एवं कानून में आस्था जताने, भविष्य में खाप-पंचायतों के अनर्गल प्रलाप, बेसिर-पैर के तुगलकी फतवों एवं फैसलों पर रोक लगाने, उन्मादी एवं असामाजिक तत्वों द्वारा खाप पंचायतों की आड़ में अपने स्वार्थ सिद्ध करने के लिए पुख्ता पाबन्दी लगाने, सामाजिक सौहार्द के नवीनतम मूल्य स्थापित करने, सामाजिक कुरीतियों एवं रूढ़ियों के खिलाफ सामाजिक अभियान चलाने की घोषणा करने एवं मानवीय मूल्यों को स्थापित करते हुए भविष्य में होने वाले गोत्र-विवादों का आसान एवं सर्वमान्य हल निकालने एवं ‘सम्मान’ के नाम पर होने वाली हत्याओं, आजीवन गाँव निर्वासनों एवं अन्य गैर-कानूनी गतिविधियों आदि पर रोक लगाने के सशक्त कदम उठाने जैसे मुद्दों पर एकमत बनाने के लिए महत्वपूर्ण पहल करने की तत्काल आवश्यकता है.

यदि इन मुद्दों पर हम सार्थक पहल करने और उनका  समाजहित में लाभ उठाने में सफल हो जाते हैं तो निश्चित  तौरपर न केवल हजारों वर्ष पुरानी सर्वखाप पंचायतों का अस्तित्व बचाया जा सकेगा, अपितु लोगों की आस्था भी सर्वखाप पंचायतों के प्रति पुन: बहाल हो सकेगी। यदि खाप पंचायतें ऐसा करने में सफल नहीं हो सकीं तो यह उनके लिए सबसे बड़े दुर्भाग्य का विषय होगा। क्योंकि अब वो समय आ गया है, जब खाप पंचायतों को भी हर हालत में समयानुरूप बदलना ही पड़ेगा। यदि से स्वयं नहीं बदलीं तो निश्चित  तौरपर ‘समय’ का कालचक्र उन्हें स्वयं ही बदलकर रख देगा।
(राजेश कश्यप)
स्वतंत्र पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक।

मंगलवार, 23 मार्च 2010

एक खुला पत्र सरदार भगत सिंह के नाम / राजेश कश्यप

सरदार भगत सिंह
परम श्रद्धेय भाई सरदार भगत सिंह जी, वन्देमातरम् !!!
आशा  ही नहीं, अपितु पूर्ण विश्वास  है कि आप जहाँ भी होंगे, बहुत दु:खी होंगे। क्योंकि आपकी आत्मा कभी स्वतंत्र  नहीं रही होगी। आपको पहले ही पता था कि इस कुर्बानी के बाद देश  तो आजाद हो जाएगा, लेकिन इसके बाद यह अपनों का गुलाम हो जाएगा। अपनों की गुलामी दूर करने के लिए उसे स्वयं दोबारा आना होगा। इस कसक और तड़प ने आपकी आत्मा को बैचेन बनाए रखा होगा। लेकिन भाई भगत, मुझे बड़ी हैरानी हो रही है कि जो लाल अपनी भारत माँ को कष्टों में देखकर जिन्दगी में एक पल भी चैन से नहीं बैठा, वही लाल छह दशक से कहाँ छिपा बैठा है?

भाई जी...अब तो अपने वतन लौट आओ। आज देश  को फिर आपकी जरूरत है। देश  एक बार फिर गुलामी की बेड़ियों में...हाँ..हाँ...हाँ...गुलामी की बेड़ियों में जकड़ता चला जा रहा है। पहले तो सिर्फ अंग्रेजों की राजनीतिक रूप में गुलामी थी। लेकिन आज तो पता नहीं कितनी तरह की गुलामी हो गई है? हम स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस आदि राष्ट्रीय त्यौहारों एवं अन्य धार्मिक त्यौहारों को भी संगीनों के साये में मनाने को मजबूर हैं, कि कहीं कोई आतंकवादी हमला न हो जाए अथवा कहीं कोई बम बगैरह न फट जाए? आपको आ’चर्य हो रहा होगा न! एक वो दिन था जब गोलियों की बौछारों,लाठियों की मारों और तोपों की गर्जनाओं की गर्जनाओं के बीच वन्देमातरम्...भारत माता की जय...इंकलाब-जिन्दाबाद आदि के उद्घोषों  के बीच बड़े गर्व के साथ सरेआम झण्डा फहराया जाता है और आज? गणतंत्र दिवस परेड और स्वतंत्रता दिवस पर ध्वजारोहण की औपचारिकता आतंकवाद के भय के चलते भयंकर सुरक्षा बंदोबस्तों के बीच डरते हुए स्कूलों के पचास-सौ छोटे-छोटे मासूम बच्चों को पी.टी. परेड में इक्कठा करके पूरी की जाती है। कहाँ गया वो जन-सैलाब और वो समय जब देशभक्ति के नारों को उद्घोषित करता आम आदमी भी दिल्ली के लालकिले की प्राचीर पर राष्ट्रीय दिवस मनाने पहुँचता था?

आश्चर्य में मत पड़िए भगत जी! वो आम आदमी आज भी जिन्दा है, लेकिन अपनों के खौफ के साये में कहीं किसी कोने में छुपने को मजबूर है। यहाँ पर सुरक्षा के नाम पर कपड़े तक उतार लिए जाते हैं। और तो और हमारे देश  के सर्वोच्च प्रतिनिधि भी देश -विदेश  में गाहे-बगाहे सुरक्षा के नाम पर स्वयं अपने कपड़े तक उतरवा चुके हैं और उतरवा भी रहे हैं। जब हमारे कर्णधारों का ये हाल है तो भला आम आदमी की क्या बिसात! उसे तो बिना किसी बात के भी सरेआम नंगा होना पड़ता है।

आजादी के बाद अपने ही सत्तासीन  लोग अपनी ही भारत माँ का ‘चीर-हरण’ कर रहे हैं। भय, भूख, भ्रष्टाचार, अत्याचार आदि का बोलबाला है। दे’ा की ८० प्रतिशत जनता मात्र २० रूपये प्रतिदिन की आमदनी में गुजारा करने को मजबूर है। शेष २० प्रतिशत मलाईखोर लोग हवाले-घोटाले करने में मशगूल हैं। विश्व  बैंक कहता है कि भारत में ७० प्रतिशत लोग गरीबी की रेखा के नीचे हैं और हमारे अपने लोग इसे सिर्फ २५-२६ प्रतिशत ही बता रही है। देश  का कई हजार खरब रूपया काले धन के रूप में विदेशी  बैंकों में जमा पड़ा है और यहाँ की अस्सी फीसदी जनता रोटी, कपड़े और मकान जैसी मूलभूत सुविधाओं के अभाव में जीने को लाचार है।

आज किसी को देशभक्ति याद नहीं है। यदि याद है तो सिर्फ पापी पेट के लिए रोटी का जुगाड़ करना। यह जुगाड़ चाहे ईमानदारी से हो या फिर लूटमार अथवा बेईमानी से। फिरौती, लूट, हत्या, बलात्कार, डकैती, धोखाधड़ी, चोरी, मिलावट, छीना-झपटी, झूठ, फरेब, ढोंग, झूठा तमाशा, काला धन्धा....भला ऐसा क्या आपराधिक कार्य नहीं हो रहा है इस देश  में जो अपराध तंत्र से जुड़ा न हो? ‘अन्धा बाँटे-रेवड़ी, अपनों-अपनों को दे’ की तर्ज पर जिसकी सत्ता में कोई पहुँच है अथवा कोई सिफारिश  है या फिर पैसा है या फिर वोटरों की बड़ी संख्या मुठ्ठी में है...केवल उन्ही को ही नौकरी अथवा किसी तरह का कोई सत्ता-सुख का अं’ा नसीब हो पाता है। अंगे्रजी काल में  शिक्षा  पाकर नौजवान ‘पढ़े-लिखे क्लर्क’ बनते थे और आज शिक्षा  पाकर पढ़े-लिखे नौजवान बेरोजगार अथवा अपराधी बन रहे हैं।

भाई भगत बहुत दु:ख की बात यह भी है कि हमारे नौजवान भी अपने पथ से भटक से गए हैं। उसे प’िचमी जगत की चकाचौंध ने पागल कर दिया है। एक वो समय था जब ‘स्वदेश’ के नाम पर सभी कीमती विदेशी चीजों की सरेआम होली जलाई गई थी, वहीं आज हर चीज विदेशी हो गई है। यहाँ तक की खाना-पीना, ओढ़ना-पहनना, घूमना-फिरना, उठना-बैठना, गाना-बजाना, खेलना-कूदना, पढ़ना-लिखना, सोचना-समझना आदि सब भी! अधिकतर लड़के-लड़कियाँ जाते हैं अपना कैरियर बनाने स्कूल या कॉलेज में और पहँुचते हैं शानदार फाईव स्टार होटलों में मौजमस्ती और अय्याशी  करने। अपने परिवार, खानदान व भविष्य के प्रति एकदम लापरवाह होकर न जाने कितने नशों  में हो रहे हैं चूर! सती, सावित्रि, सीता, अनसूइया आदि के देश  में आज कालगल्र्स, सेक्सवक्र्स आदि का ही कोई छोर नहीं है। जहाँ शिक्षार्थियों  के बस्तों में देशभक्ति से ओतप्रोत साहित्य होता था आज पोर्न (ब्लयू) फिल्मों का साहित्य व सीडियाँ जमा पड़ा है। टी.वी. व सिनेमा सरेआम सैक्स एवं अश्लीलता  घर-घर परोस रहा है। गलत राह पर चल कर जवान अपनी जवानी पानी की तरह बहा रहे हैं और आधे से अधिक सेना की भर्ती के लिए होने वाली दौड़ में ही बाहर हो रहे हैं। भगत जी...परेशान मत होइये!! ये तो सिर्फ समस्या की बानगी भर है!!!

आप न्याय व्यवस्था की तो धज्जियाँ उड़ रही हैं। झूठे व मक्कार लोग पैसे, शोहरत, बाहुबल के दम पर कानून की देवी को अपनी कठपुतली बनाए हुए हैं। गरीब आदमी के लिए न्याय दूर की कौड़ी बन गया है। गा्रम पंचायतों में भी दंबगों और ऊँची  पहुँच वालों की ही चलती है। यदि कोई सीदा-सादा व भोला-भाला आदकी सच्चाई व न्याय की बात करे तो सबको अखरती है। आज इस देश  में सच्चाई व न्याय के रास्ते पर चलने वाले व्यक्ति को या तो मौत के घाट उतार दिया जाता है या फिर अनगिनत धाराओं के तहत झूठे मुकदमों में फंसाकर तिल-तिल मरने को मजबूर कर दिया जाता है। अपराधों, भ्रष्टाचारों में लिप्त दबंग लोग चुनाव लड़ते हैं और संसद की कुर्सियों का बोझ बनते हैं। विभिन्न पार्टियों के रूप में ये लोग बारी-बारी से आते हैं और जनता की आँखों में धूल झोंककर  पाँच साल देश  में लूट मचाकर चले जाते हैं। आज कोई भी आदर्श  नेता हमारे देश  में रहा ही नहीं है...भला इससे बढ़कर देश का क्या दुर्भाग्य होगा?

भाई भगत सिंह, मैं माफी चाहता हूँ कि इस दु:ख भरे पत्र को और भी लंबा करता ही चला जा रहा हूँ। मैं इसे और लंबा नहीं करूंगा। मैंने आपको सिर्फ इशारा  भर किया है। यदि इस पत्र के माध्यम से मेरी भावना आप तक पहुँच जाए तो मेहरबानी करके इस देश  की तरफ एक बार जरूर देखना! भाई जी नहीं...कल देखना!! क्योंकि आज तो बहुत सारे मदारी, नट, कलाकार, अभिनेता, स्वाँगी आदि लोग बड़े-बड़े चमकदारों बैनरों के साथ आपकी सहादत को सलाम करते हुए, देशभक्ति के राग अलापते हुए, चौराहों पर खड़ी जर्जर आपकी प्रतिमाओं पर हार पहनाते, आपके नाम पर रक्तदान शिविर  लगाते, चर्चा-संगोष्ठि या सेमीनार करते, झूठे पे्रस नोट जारी करते और देशभक्ति के झूठे मुखौटे लगाते हुए ही नजर आ सकते हैं। कृपा इस पत्र पर अमल करते हुए आप कल ही हिन्दुस्तान पर नजर डालना और नजर डालने के बाद अत्यन्त दु:खी हो जाओ तो मुझे गाली मत देना, कि आपको यह सब लिखकर बताने का आज ही मौका मिला है? अरे भाई जी, लिखना तो बहुत पहले चाहता था, लेकिन कहीं कोई मुझे पागल करार न दे दे, इसलिए नहीं लिखा। लेकिन आज सब चिन्ताओं एवं भ्रमों को दूर करके यह पत्र लिखने का साहस जुटा पाया हूँ। इस पत्र के बारे में कोई भी चाहे कुछ कहे, अब मुझे कोई परवाह नहीं। यह पत्र लिखने के बाद यदि मुझे एक व्यक्ति की भी शाबासी या हौंसला मिला तो भाई मैं समझूँगा कि कहीं किसी कोने में आज भी कोई भगत सिंह जिन्दा है!!! भाई जी, यदि आप अब तक इस दोबारा इस देश  में नहीं आये हो तो मेहरबानी करके जल्दी से जल्दी जरूर आ जाओ....क्योंकि ये देश  तुम्हें चीख-चीखकर पुकार रहा है। हाँ...इस बार एक रूप में मत आना! क्योंकि समस्याएँ अब एक नहीं अनेक हो गई हैं। इसलिए मेरी राय तो यह है कि आप अपनी आत्मा को आज की नौजवान पीढ़ी की आत्माओं में अंशों  के रूप में आत्मसात कर दो ताकि अनेक भगत सिंह, अनेक रूपों में, अनेक समस्याओं से लड़ सकें और अपनी भारत माता को अपनों व अपनों के दर्द को जल्द से जल्द दूर कर सकें। जब आप नौजवानों में आ जाओ तो कृपया पत्र का जवाब तो जरूर देना।

अच्छा अब जयहिन्द और नमस्ते। इन्कलाब-जिन्दाबाद।। भारत माता की जय।।।

आपका स्नेहाकांक्षी,


राजेश कश्यप

बुधवार, 17 मार्च 2010

‘कश्यप -समाज उत्थान’ की आगामी रचनात्मक गतिविधियों की रूपरेखा।

 सेवा में,

समस्त कश्यप  बन्धुओं!

विषय : ‘कश्यप -समाज उत्थान’ की आगामी रचनात्मक गतिविधियों की रूपरेखा।

आदरणीय कश्यप  जी,

सर्वप्रथम आपका अत्यन्त आभार प्रकट करता हूँ कि आप अपने कश्यप  समाज के उत्थान में अपना बहुमूल्य योगदान दे रहे हैं। मैं एक बार फिर इस उम्मीद के साथ अपने समाज की आगामी कुछ रचनात्मक गतिविधियों की रूपरेखा आपकी सेवा में प्रेषित कर रहा हूँ कि आपका पहले से भी अधिक स्नेह एवं सहयोग मिलेगा।

गतिविधि नं. १. (प्रत्येक गाँव में एक प्रधान की नियुक्ति) : जैसा कि आपको पता है कि हम सबने मिलकर निर्णय लिया था कि हम प्रत्येक गाँव में एक प्रधान की नियुक्ति करेंगे। इस सन्दर्भ में सभी ब्लॉक प्रधानों को गत १६ फरवरी को पत्र लिखे गए थे। लेकिन अभी तक यह काम अधूरा है। अत: आपसे नम्र निवेदन है कि इस अधूरे काम को पूरा करवाने में अपना योगदान अधिक से अधिक देने का कष्ट करें। ब्लॉकों के अनुसार सभी गाँवों की सूची इस पत्र के साथ संलग्न है।

गतिविधि नं. २. (बेरोजगार युवक/युवतियों के फार्म भरवाना) : इस योजना के तहत हमें अपने-अपने स्तर पर अपने समाज के बेरोजगार युवकों एवं युवतियों के फार्म भरवाने हैं, ताकि उनका पूरा रिकार्ड़ तैयार करके सरकार एवं प्रशासन  तक पहुँचाया जा सके और उनसे रोजगार-स्वरोजगार देने की सिफारिश  की जा सके। यदि बेरोजगार युवक-युवती कोई प्रशिक्षण-ट्रेनिंग  लेना चाहते हैं तो उसकी व्यवस्था-योजना तैयार की जा सके। बेरोजगार व्यक्तियों द्वारा भरवाए जाने वाले फार्म की एक प्रति इस पत्र के साथ संलग्न है। इस फार्म की फोटोकॉपी करवाकर बेरोजगार लोग भरकर आपको जमा करवाएंगे।

गतिविधि नं. ३. (‘सप्तर्षि महर्षि कश्यप सम्मान’ प्रदान करने बारे) : प्रत्येक वर्ष २४ मई को सप्तर्षि महर्षि कश्यप  के नाम से विभिन्न वर्गों में सात ‘सप्तर्षि महर्षि कश्यप सम्मान’ देने की योजना है, जिनका विवरण निम्नलिखित है:-

१. एक सम्मान उस विशिष्ट राजनीतिक नेता (मुख्यमंत्री/मंत्री/सांसद/अन्य)को को दिया जाएगा जो कश्यप समाज के उत्थान में अपना अहम् योगदान देगा।

२. एक सम्मान उस विशिष्ट प्रशासनिक  अधिकारी (डी.सी/ए.डी.सी./समाजकल्याण अधिकारी/बैंक मैनेजर/अन्य) को को दिया जाएगा जो कश्यप  समाज के उत्थान में अपना अहम् योगदान देगा।

३. एक सम्मान उस विशिष्ट पत्रकार (पत्रकार/छायाकार/फिल्मकार/संवाददाता/अन्य) को दिया जाएगा जो कश्यप  समाज के उत्थान में अपना अहम् योगदान देगा।

४. एक सम्मान उस विशिष्ट समाजसेवक (किसी भी समुदाय/वर्ग से हो) को दिया जाएगा जो कश्यप  समाज के उत्थान में अपना अहम् योगदान देगा।

५. एक सम्मान उस विशिष्ट समाजसेवक (जो कश्यप  समाज से संबंध रखता होगा) को दिया जाएगा जो कश्यप  समाज के उत्थान में अपना अहम् योगदान देगा।

६. एक सम्मान उस विशिष्ट शिक्षक  (जो रोहतक के किसी भी विद्यालय/महाविद्यालय में पढ़ाता हो) को दिया जाएगा जो कश्यप  समाज के बच्चों के शिक्षा  के उत्थान में अपना अहम् योगदान देगा।

७. एक सम्मान उस विशिष्ट शिक्षार्थी (जो रोहतक के क’यप समाज से संबंध रखता होगा) को दिया जाएगा, जो शिक्षा, कला, खेल अथवा अन्य किसी भी क्षेत्र में अपने क’यप समाज का नाम रोशन  करेगा।

उपर्युक्त सम्मानों के लिए आवेदन प्रत्येक वर्ष की ३० अप्रैल तक इस पते पर भेजने होंगे :-

राजेश  कश्यप
प्रधान,
हरियाणा कश्यप  राजपूत सभा, रोहतक
कश्यप  भवन, नजदीक शिव मन्दिर,
गाँव व डाक. टिटौली
जिला. रोहतक
हरियाणा-१२४००५
गतिविधि नं. ४. (महर्षि कश्यप ग्रन्थ लेखन) : इस योजना के तहत अपने महर्षि कश्यप जी के बारे में एक ग्रन्थ लिखा जा रहा है। यदि आप महर्षि कश्यप जी से संबंधित अथवा अपने समाज से संबंधित कोई महत्पूर्ण जानकारी देना चाहते हैं तो कृपा करके उसे जल्दी से जल्दी नीचे दिए गए पते पर भिजवाने का कष्ट करें।

(नोट : इस पत्र से सम्बंधित जानकारी एवं पत्र में वर्णित संलग्न फार्म/सूचियां इंटरनैट से भी डाउनलोड की जा सकती हैं, जिसका पता है : http://www.kashyapsamaj.blogspot.com/)
कश्यप  बन्धु,
आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास  है कि इन नई गतिविधियों एवं योजनाओं में आपकी राय पत्र मिलते ही जरूर देंगे और इनको अमल में लाने के लिए आप अपना पूरा-पूरा योगदान जरूर देंगे। इसी आशा  एवं विश्वास के साथ.....
धन्यवाद सहित,
आपका स्नेहाकांक्षी,

(राजेश कश्यप)
नोट : यह पत्र जिला रोहतक के सभी २५ पदाधिकारियों की सेवा में प्रेषित किया जा रहा है।

मंगलवार, 16 मार्च 2010

हमारे देश के समक्ष सुलगते सवाल


हमारे देश के समक्ष सुलगते सवाल
हम पूरे गर्व के साथ अपने गणतन्त्र के ६० दशक पार कर चुके हैं। इसलिए अपने राष्ट्र की स्वतंत्रता, एकता, अखण्डता एवं उसकी अस्मिता से जुडे  कुछ अति संवेदनशील पहलूओं एवं सुलगते सवालों  पर दो टूक चिंतन करना समय की प्रबल मांग है।
देश में आतंकवाद की घटनाएं बड़ी चिंता का विषय हैं। पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आंतकवाद पर भी अंकुश नहीं लग पा रहा है। हाल ही में मुम्बई में हुए आतंकवादी हमलों ने न केवल भारत को आतंकवादी के प्रति अत्यन्त गंभीरता से सोचने को विवश किया है, बल्कि पूरे विश्व  को आतंकवाद के खिलाफ सख्त रवैया अपनाने का संकेत दिया है। ल’कर-ए-तोएबा जैसे आतंकवादी संगठन की बढ़ती गतिविधियां भी राष्ट्र के लिए सबसे बड़ी चिन्ता एवं चुनौती का विषय बनती जा रही हैं। दिल्ली, जोधपुर, जयपुर, मालेगाँव आदि आतंकवादी हमलों के बाद भी आतंकवाद के प्रति सरकार का रवैया ढूलमूल रहा, जिसका खामियाजा पूरे देश ने मुम्बई आतंकवादी हमले के रूप में भुगतना पड़ा। यदि अभी भी आतंकवाद से निपटने के लिए ‘पोटा’ जैसे सख्त कानून लागू नहीं किया गया और पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद पर अंकुश नहीं लगाया गया तो हमारे राष्ट्र की राष्ट्रीय एकता,अखण्डता एवं उसकी अस्मिता निश्चित  तौरपर खतरे में पड़ सकती है।
दिनोंदिन देशभक्त शहीदों की कुर्बानियों को भुलाया जा रहा है। काफी लोगों का प्रतिदिन शहीदों को नमन करने की बजाय उन पर कीचड़ उछालकर सुर्खियों में बनना मुख्य शौक बन गया है। हाल ही में एक मुख्यमंत्री द्वारा एक शहीद के परिवार को यह कहना कि ‘यदि यह शहीद का परिवार न हुआ होता तो, उन्हें गली का कुत्ता भी नहीं पूछता’ और एक अन्य वरिष्ठ नेता द्वारा शहीद जाबांज करकरे की शहादत पर सवाल उठाना शहीदों का घोर अपमान है और घोर अपराध है। राष्ट्रीय अस्मिता से जुड़ी महान् हस्तियों पर अनावश्यक  व अभद्र टिपणियाँ करके सरेआम देशद्रोह का अपराध किया जा रहा है और किसी का कुछ नहीं बिगड़ रहा है। इतिहास की संकीर्ण राजनीति की जा रही है। राष्ट्र का आधार स्तम्भ संसद में राजनीतिक लोग अनैतिक व अव्यवहारिक प्रदर्शन करने से बाज नहीं आ रहे हैं। जाति, धर्म, मजहब के नाम पर गन्दी राजनीति करना आजकल के नेताओं का पेशा  बन गया है। कई कई अरबों-खरबों का घोटाला करने के बावजूद कानूनी ’िाकंजे से बहुत दूर रहते हैं। ये सब हालात आम जनता को आखिर कब तक सहन होंगे?
राष्ट्र से जुड़ी धरोहरों के सम्मान में कोताही बरतना बहुत बड़ा अपराध है। ऐसे अपराधों की सूची तैयार की जाए तो प्रतिदिन बहुत बड़ी सूची तैयार हो जाए। पहले जन-जन की जुबान पर ‘वन्देमातरम्’ और ‘जन-गण-मन’ की स्वर लहरियां और ‘जय जवान, जय किसान’, ‘विश्व विजयी तिरंगा प्यारा’, ‘सारे जहां से अच्छा’ जैसे उद्घोष और ‘मेरी जान-हिन्दूस्तान’ जैसे जज्बात सुनने को मिलते थे। आज कभी किसी किताब में छपे मानचित्र से क’मीर गायब मिलता है, कभी उल्टा तिरंगा फहराने की खबरें सुनने को मिलती हैं, कभी राष्ट्रगान के समय नेताओं के बैठे रहने की गुस्ताखी सुनने को मिलती है तो कभी राष्ट्र की अन्य धरोहरों से छेड़खानियों व उनके प्रति लापरवाहियों की दास्तानें सुनने को मिलती हैं। आखिर क्या है, ये सब?
लोकतंत्र के तीन प्रमुख स्तम्भ कार्यपालिका, विधानपालिका और न्यायपालिका असंख्य खामियों की केन्द्र बन गई हैं। ये तीनों स्तम्भ चन्द राजनीतिकों की कठपुतलियां बनकर रह गई हैं। अपराधिक लोग इनके स्वयंभू बन बैठे हैं। लोकतंत्र में सिर्फ सिर गिने जाने लगे हैं, इसी कारण लोकतंत्र के ये स्तम्भ जर्जर होते चले जा रहे हैं। सभी कानून सिर्फ आम आदमी के लिए बन गए हैं। हमारा कानून एक मुर्गी चोर को तो सलाखों के पीछे पहुंचा सकता है, लेकिन एक बलात्कारी, हत्यारे अथवा देशद्रोही की पैरवी करता नजर आता है।
लोकतंत्र का चौथा महत्वपूर्ण स्तम्भ कहलाने वाले मीडिया में भी दिनोंदिन खामियां हावी होती चली जा रही हैं, जोकि बेहद अफसोस की बात है। पहले पत्रकारिता एक मिशन हुआ करता था, जो सत्य, न्याय और धर्म के लिए कुर्बानी देने से भी नहीं हिचकिचाता था। लेकिन आज की पत्रकारिता व्यवसाय के रूप में तब्दील हो गई है और यह सार्वजनिक हितों के बजाय निजी हितों की अधिक चिन्ता करती प्रतीत होती है। निष्पक्ष, निर्बाध व निर्णायक भूमिका निभाने वाली कलम आज चन्द सिक्कों की खनक पर चलने लगी है। स्वार्थी लोगों द्वारा मीडिया का दुरूपयोग और व्यवसाय में तब्दील होती पत्रकारिता का भविष्य में क्या अंजाम निकलेगा, यह बतलाने की आवश्यकता  नहीं है।
निरन्तर बढ़ता भ्रष्टाचार देश के लिए ‘कैन्सर’ से भी बढ़कर घातक नासूर बन चुका है। कोई भी ऐसा विभाग नहीं बचा है, जिसमें भ्रष्टाचार न हो। कदम कदम पर घूसखोरी, कामचोरी, लापरवाही और शाही दादागिरी नजर आती है। प्रतिवर्ष अरबों-खरबों की योजनाएं बनती हैं और उनका लाभ आम आदमी तक बिल्कुल नहीं पहुंच पाता। सारा पैसा नौकरशाही और दलाल लोगों की जेब में जा रहा है। सरकारी व गैर-सरकारी सामाजिक संस्थाएं भी सरकारी पैसे का खूब दुरूपयोग कर रही हैं। आज भी आम आदमी रोटी, कपड़ा और मकान की अपनी दशकों पुरानी मूलभूत समस्याओं से जूझ रहा है और हम ‘विजन-२०२०’ का राग अलाप रहे हैं। गरीब आदमी निरन्तर गरीबी की दल-दल में समाता जा रहा है और अमीर दुगना अमीर होता जा रहा है। अमीरी और गरीबी की तेजी से बढ़ती यह खाई भविष्य में क्या गुल खिलाएगी, इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है।
देश का अन्नदाता किसान कर्ज से दबा पड़ा है और आत्महत्या करने के लिए विवश है। खारे पानी का प्रति’ात लगातार बढ़ रहा है। जल स्तर भी निरन्तर नीचे जा रहा है। जमीन की उपजाऊ  क्षमता धीरे धीरे कम होती जा रही है। किसानों को खाद, बीज व दवाईयों के मामले में कालाबाजारी का सामना अलग से करना पड़ रहा है। बाजार में खुल्ले धड़ल्ले से नकली रासायनिक खाद, बीज व कीटना’ाक किसानों को तबाह कर रहे है। कई शहरों में किसानों की फसल मण्डियों में बिखरी फिरती है, उसे उचित कीमत भी नहीं मिल पाती है। किसानों को खेती से उतना फायदा नहीं मिल पा रहा है, जितना कि उसका खर्च हो रहा है। किसानों की यह दुर्दशा आखिर किससे छुपी है?
देश का नौजवान बेकारी व बेरोजगारी के चंगुल में फंसकर अपराधिक मार्ग का अनुसरण करने के लिए विवश है। पैसे व ऊँची  पहुँच  रखने वाले लोग ही सरकारी व गैर-सरकारी नौकरियों पर काबिज हो रहे हैं। पैसे, सिफारिश, गरीबी, और भाई-भतीजावाद के चलते देश की असंख्य प्रतिभाएं दम तोड़ रही हैं। निरन्तर महंगी होती उच्च शिक्षा  गरीब परिवार के बच्चों से दूर होती चली जा रही है। आज की शिक्षा  पढ़े लिखे बेरोजगार व बेकार तथा अपराधी तैयार करने के सिवाय कुछ नहीं कर पा रही है। क्या शिक्षा   में आचूल-चूल परिवर्तन की आवश्यकता  नहीं है?
आधुनिकता की आड़ में देश का युवावर्ग भारतीय संस्कृति व सभ्यता को भुलाकर पश्चमी  संस्कृति की कठपुतली बनता जा रहा है। इसके पीछे मीडिया की अह्म भूमिका है। घर-घर में टी.वी. व रेडियो के माध्यम से अश्लीलता का समावेश हो रहा है। विदेशी चैनल निर्बाध रूप से नंगापन व भौंडापन परोस रहे हैं। युवावर्ग को भटकाने में बालीवुड भी पीछे नहीं हैं। प्रतिवर्ष ऐसी सैंकड़ों फिल्में प्रदर्शित  होती हैं, जिनमें अंग प्रदर्शन, अश्लीलता  व सैक्स की भावनाओं को भड़काने के सिवाय और कोई मसाला नहीं होता। कई समाचार-पत्र एवं पत्रिकाएं तो केवल उत्तेजक सामग्री परोसकर ही अपने व्यवसाय को दिनोंदिन फैला रहे हैं। नंगी व भद्दी सैक्सी किताबें व ब्लू फिल्में युवावर्ग की मूल जड़ को खोखला कर रही हैं।
नैतिकता, त्याग, ईमानदारी, परोपकारिता, कर्मठता व वफादारी जैसे गुण देखने दुलर्भ होते चले जा रहे हैं। छल-फरेब, आपसी ईष्र्या-द्वेष, संकीर्ण प्रतिस्पद्र्धा, कट्टरता, बेईमानी जैसे दुर्गण कुकरमुत्तों की तरह उग आए हैं। जाति-पाति, धर्म, मजहब, वर्ग विशेष  पर आज भी दंगे हो जाते हैं। मानसिक संकीर्णता हमारा पीछा ही नहीं छोड़ पा रही है।
दहेजप्रथा, कन्या-भ्रूण हत्या, नारी-प्रताड़ना, हत्या, बलात्कार जैसी सामाजिक कुरीतियां व अपराध समाज को विकृत कर रहे हैं। नशा, जुआखोरी, चोरी, डकैती, अपहरण, लूटखसोट जैसी प्रवृतियां देश की नींव को खोखला कर रही हैं। बढ़ती जनसंख्या, बढ़ता लिंगानुपात, घटते रोजगार, प्रदूषित होता पर्यावरण, पिंघलता हुआ हिमालय, गन्दे नाले बनती पवित्र नदियां आदि सब मिलकर आने वाले कैसे भविष्य की तस्वीर बनाते हैं, यह शायद बतलाने की आवश्कता  नहीं है।
इस तरह की अनेकों समस्याएं हैं जो हमारे देश के समक्ष कड़ी एवं विकट चुनौतियां बनकर खड़ी हैं। अत: जन-जन का मन से इन चुनौतियों का डटकर मुकाबला करने, इनसे निपटने की कारगर रणनीति बनाना, सार्थक चिन्तन करना और अपनी अपनी सकारात्मक भूमिका सुनिश्चित  करना ही प्रमुख ध्येय होना चाहिए। यदि हमने समय रहते यह सब कदम नहीं उठाए तो कहने की आव’यकता नहीं कि हमारा कैसा भविष्य होगा।

-राजेश कश्यप
स्वतंत्र लेखक, समीक्षक एवं पत्रकार,
गाँव व डाकखाना. टिटौली
जिला व तहसील. रोहतक
हरियाणा-१२४००५
मो. नं. 09416629889





छोरियां नैं बचाओ हत्यारयाँ तै !!

छोरियां नैं बचाओ  हत्यारयाँ तै !!
अर्ज करूं सूं मैं, थाम सारयाँ तैं !
छोरियां नैं बचाओ हत्यारयाँ तै !!
छोरी मारयां  तै, कोय सुख नहीं पावैगा!
वो पापी सीधा नरक-कुण्ड मं जावैगा!!
छोरी तो जग जणनी है!
ये बात सबनै समझणी है!!
घणी बरतणी है होशियारी!
कूख पै ना चलै कोए आरी!!
थारी बड़ी सै या जिम्मेदारी,
नहीं तै हर कोय पछतावैगा!!
छोरी मरवाणा मत समझो खेल!
जै पकड़े गए तै होज्यागी जेल!!
बणज्यागी मुश्किल सारयां  गेल!
छोरी बिन चलै ना बंशबेल!!
बिना होए मेल छोरी-छोरे का,
बताओ कौण सृष्टि रचावैगा!!
छोरी नैं थाम, मत समझो बोझ!
कंधे से कंधा मिलाकै, वा कमावै रोज!!
राखै मौज आगले-पाछले दोनूं घर!
बानी लावै, खूब जी भर-भर!
कर-कर कै छोरी का कत्ल कूख मं,
हर कोय भारया पाप कमावैगा!!
पढ़ लिख कै नैं, रोशन नाम करै थारा!
इंदिरा, कल्पना, किरण बेदी नैं, जाणै जग सारा!!
थारा दिमाग, क्यूँ  इतना चकरार्या सै!
छोरियां का महत्व, क्यूं नहीं समझ आ रहया सै!!
समझा रहया सै जो, राजेश कश्यप टिटौली आला,
उतना खोल कै, बता कौन समझावैगा!!
छोरी मारयां तै, कोय सुख नहीं पावैगा!
वो पापी सीधा नरक-कुण्ड मं जावैगा!!
अर्ज करूं सूं मैं, थाम सारयाँ तैं !
छोरियां नैं बचाओ हत्यारयाँ  तै !!
(-राजेश कश्यप)
स्वतंत्र पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक
टिटौली (रोहतक), हरियाणा-१२४००५
मोबाईल : 09416629889
e-mail : rkk100@rediffmail.com

मंगलवार, 9 मार्च 2010

आजादी का अर्थ/राजेश कश्यप

आजादी का अर्थ
हम आजाद हैं!
हर तरह से आजाद!!
पैरों में चप्पल-जूतों का भी बन्धन नहीं!
सिर ढ़कने वाले घर-छप्पर-भवन नहीं!!
शिक्षा के सूत्रों से एकदम मुक्त!
सरकारी कागजों से बिल्कुल लुप्त!!
सपनों का भी बोझ नहीं!
कोई ठौर-ठिकाना खोज नहीं!!
व्यंजन और मनोंरंजन का है सूनापन!
कपड़ों के भी आधीन नहीं है पूरा बदन!!
सुबह-शाम की भी कोई फिक्र नहीं!
आज यहाँ तो कल कहीं!!
दु:ख-सुख से हैं कोसों दूर!
मानस-पत्थर जो ठहरे हुजूर!!
हमारी किसी को नहीं कोई परवाह!
अजीब है आजादी, वाह भई वाह!!
हमें तो बस है एक ही दर्द!
कोई पूछने चला आया हमसे, आजादी का अर्थ!!

-(राजेश कश्यप)
टिटौली (रोहतक) हरियाणा-१२४००५

गुरुवार, 4 मार्च 2010

हरियाणा कश्यप राजपूत सभा, रोहतक की नई कार्यकारिणी के सदस्य


हरियाणा कश्यप राजपूत सभा का प्रथम कार्यकारिणी - परिचय सम्मलेन २० दिसम्बर २००९ को छोटूराम धर्मशाला , रोहतक में जिले के प्रधान राजेश कश्यप की अध्यक्षता में आयोजित किया गया। सम्मलेन के मुख्य अतिथि प्रदेशाध्यक्ष देशराज कश्यप थे और विशिष्ट अतिथि सरपरस्त बलजीत सिंह मतौरिया एवं चुनाव कमेटी के चेयरमेन सुंदर सिंह कश्यप थे। सम्मलेन में तालियों की भारी गडगडाहट के बीच प्रधान राजेश कश्यप ने अपने जिले की नयी कार्यकारिणी घोषित की। नयी कार्यकारिणी में जिला स्तर पर जय भगवान कश्यप को सचिव, सत्तेवान कश्यप को खजांची , रोहताश कश्यप को वरिष्ठ उप -प्रधान, प्रदीप कश्यप को सह-सचिव, कृष्ण चन्द्र कश्यप को ऑडिटर, अन्नू कश्यप को प्रेस सचिव, सत्तेवान कश्यप-धर्मेन्द्र कश्यप एवं सूरज कश्यप को प्रचार सचिव के रूप में शामिल किया गया।

सम्मलेन में नव-निर्वाचित कार्यकारिणी के सदस्यों का परिचय करवाया गया और सभी पदाधिकारियों को परिचय-पत्र प्रदान किये गए। सम्मलेन के दौरान सभी पदाधिकारियों ने मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के ऐतिहासिक रूप से पुनः हरियाणा की बागडोर सँभालने पर अत्यंत ख़ुशी व्यक्त की गई और उन्हें बधाईयाँ दी गयीं । सभी वक्ताओं ने प्रधान राजेश कश्यप के नेत्रित्व की खूब तारीफ की और उन्हें अच्छी कर्मठ कार्यकारिणी गठित करने के लिए बधाईयाँ दी।




मुख्य अतिथि प्रदेशाध्यक्ष देशराज कश्यप ने अपने संबोधन में कहा की कश्या समाज को जागृत, संगठित एवं कर्मठ बनाने का समय आ गया है। उन्होंने आगे कहा की कश्यप समाज के उत्थान के लिए सरकार को गंभीर एवं ठोस कदम उठाते हुए उन्हें राजनीतिक भागीदारी देनी होगी। मुख्य अतिथि ने आगे कहा की कश्यप समाज के हकों को हासिल करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी जाएगी।




विशिष्ट अतिथि सरपरस्त बलजीत सिंह मतौरिया ने कहा की वर्तमान कांग्रेस सरकार से कश्यप समाज को बहुत उम्मीदें हैं। उन्होंने घोषणा करते हुए कहा की मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा को निकट भविष्य में समस्त कश्यप समाज की तरफ से सम्मानित किया जायेगा।




दुसरे विशिष्ट अतिथि सुंदर सिंह कश्यप ने अपने संबोधन में कहा की कश्यप समाज को अपने हकों के लिए आरपार की लड़ाई लड़नी होगी। उन्होंने आगामी ३ जनवरी को कश्यप राजपूत धर्मशाला , कुरुक्षेत्र में होने वाले हरियाणा कश्यप राजपूत सभा के नए प्रदेशाध्यक्ष के चुनावों में सभी पदाधिकारियों को आमंत्रित किया और उनसे अपनी सूझ-बुझ से अच्छे प्रदेशाध्यक्ष का चुनाव करने के लिए अपील की।




सम्मलेन के अध्यक्ष एवं रोहतक जिले के प्रधान राजेश कश्यप ने अपने संबोधन में कहा की कश्यप समाज के संघर्ष को बड़ी तेजी से आगे बढाया जायेगा। उन्होंने आगे कहा की अगली कड़ी में प्रत्येक गाँव में कश्यप समाज का एक प्रधान नियुक्त किया जायेगा और कश्यप समाज के हर घर तक जाकर उनके सुख-दुःख का पता लगाया जायेगा। श्री कश्यप ने आगे कहा की कश्यप समाज अपनी जायज मांगों को मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के सामने रखेगा।




सम्मलेन में कार्यकरिणी के सभी सदस्यों ने कश्यप समाज को आगे बढ़ने एवं तन-मन-धन से समाज के प्रति समर्पित रहने की शपथ ली। सम्मलेन को पानीपत इकाई के प्रधान लखमी चंद कश्यप , सोनीपत इकाई के प्रधान जय भगवान कश्यप, अजमेर कश्यप आदि कई वक्ताओं ने भी संबोधित किया।
सृष्टि के सृजक महर्षि कश्यप


मुनिराज महर्षि कश्यप के मानस-पुत्र और मरीची ऋषि के महातेजस्वी पुत्र थे। इन्हें अनिष्टनेमी के नाम से भी जाना जाता है। महर्षि कश्यप की माता का नाम कला था, जो कि कर्दम ऋषि की पुत्री और कपिल देव की बहन थी। महर्षि कश्यप ऋषि-मुनियों में श्रेष्ठ माने जाते हैं। सुर-असुरों के मूल पुरुष मुनिराज कश्यप का आश्रम मेरू पर्वत के शिखर पर था, जहाँ वे परब्रह्म परमात्मा के ध्यान में मग्न रहते थे। पौराणिक संदर्भों के अनुसार सृष्टि की रचना करने के लिए ब्रह्माण्ड में सर्वप्रथम भगवान ब्रह्मा जी प्रकट हुए। ब्रह्मा जी के दायें अंगूठे से दक्ष प्रजापति हुए। ब्रह्मा जी के अनुनय-विनय पर दक्ष प्रजापति ने अपनी पत्नी असिक्नी के गर्भ से 66 कन्याएँ पैदा कीं। इन कन्याओं में से 13 कन्याएँ महर्षि कश्यप की पत्नियां बनीं। मुख्यत इन्हीं कन्याओं से सृष्टि का सृजन हुआ और महर्षि कश्यप सृष्टि के सृजक बने। महर्षि कश्यप सप्तऋषियों में प्रमुख माने गये हैं। सप्तऋषियों की पुष्टि श्री विष्णु पुराण में इस प्रकार होती है -वसिष्ठ काश्यपो यात्रिर्जमदग्निस्सगौत। विश्वामित्रभरद्वाजौ सप्त सप्तर्षयोभवन्।। (अर्थात् सातवें मन्वन्तर में सप्तऋषि इस प्रकार हैं - वसिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भारद्वाज)। श्रीमद्भागवत के छठे अध्याय के अनुसार दक्ष प्रजापति ने अपनी साठ कन्याओं में से दस कन्याओं का विवाह धर्म के साथ, तेरह कन्याओं का विवाह महर्षि कश्यप के साथ, सत्ताईस कन्याओं का विवाह चंद्रमा के साथ, दो कन्याओं का विवाह भूत के साथ, दो कन्याओं का विवाह अंगीरा के साथ, दो कन्याओं का विवाह कृशाश्व के साथ और शेष चार कन्याओं का विवाह भी कश्यप के साथ ही किया। इस प्रकार महर्षि कश्यप की अदिति, दिति, दनु, काष्ठा, अरिष्टा, सुरसा, इला, मुनि, क्रोधवशा, ताम्रा, सुरभि, सुरसा, तिमि, विनता, कद्रू, पतांगी और यामिनी आदि पत्नियां बनीं। महर्षि कश्यप ने अपनी पत्नी अदिति के गर्भ से बारह आदित्य पैदा किये, जिनमें सर्वव्यापक देवाधिदेव नारायण का वामन अवतार भी शामिल था। पौराणिक संदर्भों के अनुसार चाक्षुष मन्वन्तर में तुषित नामक बारह श्रेष्ठगणों ने बारह आदित्यों के रूप में महर्षि कश्यप की पत्नी अदिति के गर्भ से जन्म लिया, जो कि इस प्रकार थे - विवस्वान्, अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरुण, मित्र, इंद्र और त्रिविक्रम (भगवान वामन)। महर्षि कश्यप के पुत्र विस्वान से मनु का जन्म हुआ। महाराज मनु को इक्ष्वाकु, नृग, धृष्ट, शर्याति, नरिष्यन्त, प्रान्शु, नाभाग, दिष्ट, करूष और पृषध्र नामक दस श्रेष्ठ पुत्रों की प्राप्ति हुई। महर्षि कश्यप ने दिति के गर्भ से परम् दुर्जय हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष नामक दो पुत्र एवं सिंहिका नामक एक पुत्री पैदा की। श्रीमद्भागवत् के अनुसार इन तीन संतानों के अलावा दिति के गर्भ से कश्यप के 49 अन्य पुत्रों का जन्म भी हुआ, जो कि मरून्दण कहलाए। कश्यप के ये पुत्र निसंतान रहे। देवराज इन्द्र ने इन्हें अपने समान ही देवता बना लिया। जबकि हिरण्यकश्यप को चार पुत्रों अनुहल्लाद, हल्लाद, परम भक्त प्रह्लाद, संहल्लाद आदि की प्राप्ति हुई। महर्षि कश्यप को उनकी पत्नी दनु के गर्भ से द्विमुर्धा, शम्बर, अरिष्ट, हयग्रीव, विभावसु, अरूण, अनुतापन, धूम्रकेश, विरूपाक्ष, दुर्जय, अयोमुख, शंकुशिरा, कपिल, शंकर, एकचक्र, महाबाहु, तारक, महाबल, स्वर्भानु, वृषपर्वा, महाबली पुलोम और विप्रचिति आदि 61 महान् पुत्रों की प्राप्ति हुई। रानी काष्ठा से घोड़े आदि एक खुर वाले पशु उत्पन्न हुए। पत्नी अरिष्टा से गंधर्व पैदा हुए। सुरसा नामक रानी की कोख से यातुधान (राक्षस) उत्पन्न हुए। इला से वृक्ष, लता आदि पृथ्वी पर उत्पन्न होने वाली वनस्पतियों का जन्म हुआ। मुनि के गर्भ से अप्सराएँ जन्मीं। कश्यप की क्रोधवशा नामक रानी ने सांप, बिच्छु आदि विषैले जन्तु पैदा किये। ताम्रा ने बाज, गिद्ध आदि शिकारी पक्षियों को अपनी संतान के रूप में जन्म दिया। सुरभि ने भैंस, गाय तथा दो खुर वाले पशुओं की उत्पत्ति की। रानी सरसा ने बाघ आदि हिंसक जीवों को पैदा किया। तिमि ने जलचर जन्तुओं को अपनी संतान के रूप में उत्पन्न किया। महर्षि कश्यप ने रानी विनता के गर्भ से गरुड़ (भगवान विष्णु का वाहन) और वरुण (सूर्य का सारथि) पैदा किये। कद्रू की कोख से अनेक नागों का जन्म हुआ। रानी पतंगी से पक्षियों का जन्म हुआ। यामिनी के गर्भ से शलभों (पतंगों) का जन्म हुआ। ब्रह्मा जी की आज्ञा से प्रजापति कश्यप ने वैश्वानर की दो पुत्रियों पुलोमा और कालका के साथ भी विवाह किया। उनसे पौलोम और कालकेय नाम के साठ हजार रणवीर दानवों का जन्म हुआ जो कि कालान्तर में निवातकवच के नाम से विख्यात हुए। मुनिराज कश्यप नीतिप्रिय थे और वे स्वयं भी धर्म-नीति के अनुसार चलते थे और दूसरों को भी इसी नीति का पालन करने का उपदेश देते थे। उन्होंने अधर्म का पक्ष कभी नहीं लिया, चाहे इसमें उनके पुत्र ही क्यों न शामिल हों। महर्षि कश्यप राग-द्वेष रहित, परोपकारी, चरित्रवान और प्रजापालक थे। वे निर्भीक एवं निर्लोभी थे। कश्यप मुनि निरंतर धर्मोपदेश करते थे, जिसके कारण उन्हें श्रेष्ठतम उपाधि हासिल हुई। समस्त देव, दानव एवं मानव उनकी आज्ञा का अक्षरश पालन करते थे। महर्षि कश्यप ने `स्मृति-ग्रंथ' जैसे महान् ग्रंथ की रचना की। उन्हीं की कृपा से राजा नरवाहनदत्त चक्रवर्ती राजा की श्रेष्ठ पदवी प्राप्त कर सका।