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मंगलवार, 16 दिसंबर 2014

हरियाणा की राजनीति के चाणक्य थे चौधरी सुलतान सिंह

स्मरण/श्रद्धांजलि
हरियाणा की राजनीति के चाणक्य थे चौधरी सुलतान सिंह
- राजेश कश्यप

            हरियाणा की राजनीति के चाणक्य तथा राजनीति के भीष्म पितामह कहलाने वाले चौधरी सुलतान सिंह अपनी सांसारिक यात्रा पूरी कर गए। उन्होंने 16 दिसम्बर, मंगलवार को सुबह 6 बजकर 10 मिनट पर दिल्ली के राम मनोहर लोहिया हॉस्पिटल में अंतिम सांस ली। वे लंबे समय गदूद के कैंसर से पीडि़त थे। अपनी जिन्दादिली के बलबूते कभी अपनी पीड़ा झलकने नहीं दी। चौधरी सुलतान सिंह हरियाणा प्रदेश की राजनीति ऐसी बेमिसाल शख्सियत थे, जिनका मागदर्शन बड़े-बड़े राजनीतिक धुरंधरों ने भी लिया। यहां तक कि केन्द्र में प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी व राजीव गाँधी आदि भी समय-समय पर उनसे देश व प्रदेश की जटिल समस्याओं व अनसुलझे पहलूओं पर सलाह-मशविरा लेते रहे।
       चौधरी सुलतान सिंह का जन्म 19 सितम्बर, 1923 ई. को गाँव माजरा (फरमाना) में पुराने रोहतक व वर्तमान सोनीपत जिले के एक सम्पन्न किसान परिवार में हुआ। उनके दादा का नाम चौधरी रामजस और पिता का नाम चौधरी टेकचन्द था।  वे चौधरी टेकचन्द व माता दानों देवी की इकलौती सन्तान थे। चौधरी सुलतान सिंह बचपन से ही प्रतिभावान और कुशाग्र बुद्धि के थे। उनकीं प्रारंभिक शिक्षा गाँव के ही सरकारी स्कूल में हुई। स्कूली पढ़ाई के दौरान ही वे फौज में भर्ती हो गये। उनकी तैनाती स्टोर कीपर के रूप् में बर्मा में हुई। उन्होंने देश के स्वतंत्रता आन्दोलन के आखिरी दौर को खूब अच्छी तरह देखा और परखा था। उनके अन्दर देशप्रेम की प्रबल भावना हिलोरे लेती रहती थी। इसी के चलते वे फौज में रहते हुए अंगे्रजी सरकार के खिलाफ  गुप्त गतिविधियों में संलिप्त रहते थे। उन्होंने देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए एक सच्चे क्रांतिकारी की भूमिका निभाई। चौधरी साहब के इस पहलू को बहुत कम लोग जानते हैं। एकबार उन्होंने फौज में रहते हुए अंग्रेजी सरकार द्वारा प्रतिबंधित साहित्य स्वतंत्रता सेनानी पं. श्री राम शर्मा के पास डाक से भेज दिया। यह साहित्य रास्ते में गुप्तचर एजेंसी द्वारा पकड़ा गया। इससे पहले की उन्हें गिरफ्तार किया जाता, वे अपनी ड्यूटी छोडक़र भूमिगत हो गए। उनका सैनिक जीवन डेढ़-दो साल ही रहा।
स्वतंत्रता आन्दोलन से जुड़ी यादें सांझा करते हुए चौधरी सुलतान सिंह
       चौधरी सुलतान सिंह बर्मा में आजादी के लिए जूझ रहे आईएनए के सैनिकों और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के पास पहुंचने में कामयाब हो गए। उन्होंने सैनिकों के साथ मिलकर बगावत करने की योजना भी तैयार कर ली थी। लेकिन, कुछ समय बाद उन्होंने अपने साथियों की सलाह पर नाम बदला और छूपते हुए बर्मा से कलकत्ता की राह पकड़ ली। वे कलकत्ता से दिल्ली पहुँचे और आसफ अली से मुलाकात की और उन्हें सारी स्थिति से अवगत करवाया। उन्हें आसफ  अली ने आश्ववासन दिया कि घबराने की कोई बात नहीं है। अरूण अली भी अभी अन्डर ग्राउण्ड हैं। शीघ्र ही अन्तरिम सरकार बनने वाली है। अन्तरिम सरकार बनने पर चौधरी साहब ने खुली हवा में सांस लिया। दो वर्षों तक घर से कोई सम्पर्क न होने के कारण गाँव में युद्ध के दौरान उनके वीरगति होने का समाचार फैल चुका था। जब परिस्थितियां अनुकूल हुईं तो उन्होंने गाँव में जाने का निर्णय लिया। उन्हें जीवित देखकर गाँव के लोग भाव-विभोर हो उठे। 
       चौधरी सुलतान सिंह ने प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी गाँव सांघी, जिला रोहतक निवासी चौधरी रणबीर सिंह के साथ मिलकर वर्ष 1946 में कांग्रेस सेवादल में कार्य करना प्रारम्भ किया। अपनी मेहनत, लगन व राजनीतिक मामलों पर अच्छी पकड़ के चलते वे कांग्रेस पार्टी में एक ऐसे निर्विवाद एवं चहेते नेता के रूप में उभरते चले गए, जिन्हें प्रत्येक नेता अपना समझता था तथा उन पर सर्वाधिक विश्वास भी करता था। उन्होंने कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता ग्रहण करके गाँव-गाँव साईकिल, पैदल चलकर कांग्रेस के लिए प्रचार-प्रसार का कार्य शुरू कर दिया। इसके बाद उन्होंने फिर कभी भी पीछे मुडक़र नहीं देखा। वे निरन्तर आगे बढ़ते चले गए। कुछ ही समय बाद उन्हें सांपला मण्डल कांग्रेस का प्रधान बना दिया गया। उनके उदार व्यक्तित्व, सद्व्यवहार एवं अनूठी भाषण शैली का हर कोई कायल हो गया।  इन्हीं गुणों के कारण वे शीघ्र ही रोहतक जिला कांग्रेस कमेटी के जनरल सेक्रेटरी बना दिये गए।
       चौधरी सुलतान सिंह वर्ष 1958 में पंजाब के तत्कालीन मुख्यमन्त्री सरदार प्रताप सिंह कैरों के सम्पर्क में आए। उनके संघर्ष और सेवा के जज्बे को देखते हुए उन्हें पंजाब विधानसभा परिषद (एम.एल.ए.) बना दिया गया। वे इस पद पर वर्ष 1964 तक छह वर्ष रहे। इसके बाद उन्हें हाई कमान के निर्देश पर दोबारा पंजाब कौंसिल का सदस्य चुना गया। वे अपनी कार्य-कौशलता के कारण वे पंजाब विधानसभा की सभी कमेटियों में उच्च सदस्य के रूप में सक्रिय रहे और पूरी निष्ठा व मेहनत से कार्य किया। एक नवम्बर, 1966 को हरियाणा प्रदेश अलग बनने के कारण हरियाणा में विधान परिषद भंग किए जाने के कारण वे वर्ष 1964-66 के दौरान दो वर्ष ही पंजाब कौंसिल के सदस्य रह पाए। इसके कुछ समय बाद ही उन्हें रोहतक जिला कांग्रेस कमेटी का प्रधान चुन लिया गया। शीघ्र ही वे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की सदस्यता का चुनाव जीतने में भी कामयाब हो गए। उन्होंने हरियाणा राज्य बिजली बोर्ड, हाउसिंग बोर्ड के सदस्य, कृषि विश्वविद्यालय हिसार के सदस्य आदि अनेक जिम्मेवारियों को पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ निभाया। वे मोतीलाल इंजीनियरिंग कालेज इलाहाबाद के संस्थापक सदस्य भी रहे। 
 त्रिपुरा के गर्वनर की शपथ लेते हुए चौधरी सुलतान सिंह
       चौधरी सुलतान सिंह की आक्रामक भाषण शैली और अटूट कर्तव्यनिष्ठा ने श्रीमती इंदिरा जी को अच्छा-खासा प्रभावित किया। वे वर्ष 1970 में पहली बार राज्यसभा के सदस्य चुने गये। वे अपनी असीम लगन व कर्मठता के बलपर लगातार तीन बार राज्यसभा के सदस्य बने। वे हरियाणा पंचायत परिषद के चेयरमैन और इंडो-सोवियत कल्चरल सोसायटी के चेयरमैन भी रहे। चौधरी साहब ने वर्ष 1978 से 1986 तक की लंबी अवधि तक हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष पद को सुशोभित किया। वर्ष 1989 में उन्हें त्रिपुरा राज्य का राज्यपाल बनाया गया। इतने ऊंचे पदों पर रहने के बावजूद उनमें अभिमान की लेश मात्र भी भावना उत्पन्न नहीं हुई। वे सादा जीवन और उच्च विचारों के धनी थे। उन्होंने सदा गाँधीवादी सिद्धान्तों का अनुसारण किया।
चौधरी सुलतान सिंह को कई बार विदेश जाने का मौका मिला। वे राज्यसभा सांसद के रूप में आपको यूरोप के अनेक देशों, जिनमें इटली, रोमानिया, फ्रांस, इंग्लैण्ड, जर्मनी और स्वीडन आदि अनेक देशों की यात्रा पर गए और देश के विकास के लिए कई महत्वपूर्ण जानकारियां जुटाकर लाए।  वे इंडो-कल्चरल सोसायटी की तरफ से भारतीय डेलीगेशन में हंगरी की राजधानी बड़ापेस्ट गये और वहां विश्व कांग्रेस में भाग लिया। इसके अलावा वे दो बार रूस के दौरे पर गये, जहां उन्होंने किवी, यूक्रेन, ताशकन्द आदि का भी भ्रमण किया। उन्होंने अफ्रीकी देशों का भी आपने दौरा किया, जिनमें जाम्बिया, केनिया, जिम्बाबे आदि देश शामिल हैं। कुल मिलाकर उन्होंने विश्व के लगभग दो-तिहाई देशों को देखा-परखा और उनकी संस्कृति, रहन-सहन, खानपान आदि को अपने देश साथ सांझा किया।
पत्राचार करते हुए स्व. चौधरी सुलतान सिंह
       चौधरी सुलतान सिंह किसी एक राजनीतिक दल से जुड़े न होकर एक सार्वजनिक व्यक्ति के रूप में आदर्श जीवन जीया। वे स्वर्गीय उप-प्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल के भी निकटतम मित्र रहे। उन्हें जननायक चौधरी देवीलाल मैमोरियल समिति का चेयरमैन बनाया गया। उन्होंने चेयरमैन के पद पर रहते हुए 'देवीलाल स्मृति ग्रन्थ' का प्रकाशन करवाया और चौधरी देवीलाल के अनछूए पहलूओं से समाज को अवगत करवाया। इसके अलावा उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में 62 सालों तक स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय चौधरी रणबीर सिंह के सहयोगी रहे। उन्होंने 'चौधरी रणबीर सिंह : जीवन, कृतित्व एवं व्यक्तित्व-कुछ अनछूए पहलू' नामक पुस्तक की रचना भी की। उन्होंने जनसाधारण पर आजीवन प्रभाव कायम रखा और हमेशा सभी राजनीतिक दलों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखे। उन्होंने जीवन के अंतिम क्षणों तक प्रादेशिक, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय गतिविधियों पर पैनी नजर रखी। वे सक्रिय राजनीति में न होने के बावजूद प्रदेश एवं देश के वरिष्ठ नेताओं को समकालीन राजनीतिक दशा एवं दिशा के सन्दर्भ में पत्राचार के जरिए अपने सुझाव प्रेषित करते रहते थे। 
चौधरी सुलतान सिंह का हाथ थामे हुए लेखक राजेश कश्यप
     चौधरी सुलतान सिंह पिछले कुछ वर्षों से निम्रस्तरीय राजनीति एवं वर्तमान सामाजिक दशा से बेहद आहत थे। वे जब भी मौका मिलता, अपनी पीड़ा से अवगत करवाए बिना नहीं रहते थे। उनका स्पष्ट मानना था कि ''आज राजनीति निम्नतम स्तर पर जा पहुंची है, जिससे उनका दिल बेहद पीडि़त रहता है। वे कहते थे कि जब तक समाज में आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक समानता स्थापित नहीं होगी, तब तक गरीबों और देहातियों का भला होने वाला नहीं है। चौधरी सुलतान सिंह का राजनीतिक नेताओं से यही अंतिम आह्वान था कि ''वे नैतिक, सात्विक और परोपकारी राजनीति करें, ताकि गरीबों, मजदूरों और असहायों का ज्यादा से ज्यादा भला हो सके।"
       चौधरी रणबीर सिंह डेरों के ड्रामों पर भी गहरा कटाक्ष करते थे। वे कहते थे कि ''साधुओं ने भी आज दुकानें खोल लीं। आप किसी भी शहर में जाइए। चार-चार, पाँच-पाँच, छह-छह एकड़ जमीन में डेरे मिलेंगे। जिस जमीन में धान पैदा होता था और गेहूँ पैदा होता था, आज वहां डेरे बने हुए हैं। सत्संग से तो रोटी मिलेगी नहीं। पेट तो भरेगा गेहूँ से, धान से। दो लाख रूपये एकड़ ली गई जमीन, दस साल बाद पचास लाख रूपये एकड़ हो जाएगी। इस देश में ऐसे लोगों की पूजा हो, उस देश का क्या हाल होगा?" चौधरी सुलतान सिंह वर्तमान पीढ़ी को जोर देते हुए कहते थे कि ''इस व्यवस्था को बदलो। इस व्यवस्था को बदल सके तो आने वाले बच्चे कहेंगे कि हमारे बुजुर्ग समझदार थे। इस व्यवस्था को बदलने के लिए, मैं तो चाहूंगा कि शांतिप्रिय तरीके अपनाए जाएं।"
       चौधरी सुलतान सिंह बच्चों की दुर्दशा को देखकर बेहद दु:खी रहते थे। वे कहते थे कि ''पाँच-पाँच साल और चार-चार साल के बच्चे राष्ट्रपति भवन के सामने कागज चुगकर (कूड़ा बीनकर) रोटी खाते हैं। बारह-बारह साल की लड़कियां लालबत्ती पर हमारी गाड़ी रूकते ही भीख मांगना शुरू कर देती हैं। अनाथों को कोई भी उठाकर ले जाते हैं और फिर वहीं छोड़ जाते हैं। जहां राष्ट्रपति बैठता है, जहां प्रधानमंत्री बैठता है, जहां भारत की सीट ऑफ  पॉवर है, वहां भी यह सब हो रहा है। क्या हम सच में सोशलिस्ट हैं? सेक्युलर हैं?" चौधरी सुलतान सिंह आजीवन आम आदमी बनकर रहे और आम आदमी के  दु:ख-दर्द को दिल से महसूस किया। इस महान आत्मा को कोटि-कोटि प्रणाम और सादर श्रद्धांजलि।

लेखक राजेश कश्यप के कैमरे की नजर से 
चौधरी सुलतान सिंह की अंतिम यात्रा