विशेष सूचना एवं निवेदन:

मीडिया से जुड़े बन्धुओं सादर नमस्कार ! यदि आपको मेरी कोई भी लिखित सामग्री, लेख अथवा जानकारी पसन्द आती है और आप उसे अपने समाचार पत्र, पत्रिका, टी.वी., वेबसाईटस, रिसर्च पेपर अथवा अन्य कहीं भी इस्तेमाल करना चाहते हैं तो सम्पर्क करें :rajeshtitoli@gmail.com अथवा मोबाईल नं. 09416629889. अथवा (RAJESH KASHYAP, Freelance Journalist, H.No. 1229, Near Shiva Temple, V.& P.O. Titoli, Distt. Rohtak (Haryana)-124005) पर जरूर प्रेषित करें। धन्यवाद।

बुधवार, 25 नवंबर 2015

स्व. चौधरी रणबीर सिंह जी को उनकीं 103वीं जयन्ती पर कोटि-कोटि नमन।

स्व. चौधरी रणबीर सिंह जी - 103वीं जयन्ती, 



स्वतंत्रता सेनानी, संविधान निर्मात्री सभा के सदस्य एवं गांधीवादी स्व. चौधरी रणबीर सिंह जी को उनकीं 103वीं जयन्ती पर कोटि-कोटि नमन।

-राजेश कश्यप,
शोध सहायक,
चौधरी रणबीर सिंह शोधपीठ,
महर्षि दयानदं विश्वविद्यालय रोहतक।
मोबाईल नं.: 9416629889

मंगलवार, 24 नवंबर 2015

Membership

Information for Membership of Haryana Kashyap Rajpoot Sabha

आदरणीय मित्रो ! समाजहित में इस जानकारी को सोशल मीडिया व वाट्स अप ग्रूप में अधिक से अधिक शेयर करने का कष्ट करें। आपका तहेदिल से आभार एवं धन्यवाद होगा।
-राजेश कश्यप,
प्रदेश मीडिया प्रभारी, प्रवक्ता एवं सूचना अधिकारी,
हरियाणा कश्यप राजपूत सभा (रजि. 184)
मोबाईल नं. 9416629889

सोमवार, 23 नवंबर 2015

सदस्य बनें और बनाएं ! समाज को आगे बढ़ाएं !!!

सदस्य बनें और बनाएं ! समाज को आगे बढ़ाएं !!!
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आदरणीय मित्रो! हरियाणा कश्यप राजपूत सभा (रजि. 184) का सदस्यता अभियान शुरू हो चुका है। इसकी शुरूआत गत 11 नवम्बर, 2015 को मुख्य प्रशासनिक कमेटी के अध्यक्ष श्री बलजीत सिंह मतौरिया जी ने कश्यप राजपूत धर्मशाला कुरूक्षेत्र से की।

सभा की सदस्यता वर्ष 2019 तक के लिए मात्र 10 रूपये की सहयोग राशि में दी जा रही है।
सभा की सदस्यता हासिल करने वाले व्यक्तियों को ही सभा के आगामी चुनावों में मतदान करने, चुनाव लड़ने और समाज के वैधानिक मसलों में भागीदारी करने का मौका मिलेगा।

इस सदस्यता अभियान से कोई भी व्यक्ति जुड़ सकता है और अपने गाँव, ब्लॉक अथवा जिले में सदस्यता अभियान के अन्तर्गत सदस्यता रसीद काट सकता है।

सदस्यता रसीद कश्यप राजपूत धर्मशाला कुरूक्षेत्र के मैनेजर से जारी करवाई जा सकती हैं।
यदि आप अपने गाँव अथवा जिले में ही सदस्यता रसीद हासिल करना चाहते हैं अथवा अधिक जानकारी हासिल करना चाहते हैं तो प्रदेश मीडिया प्रभारी, प्रवक्ता एवं सूचना अधिकारी राजेश कश्यप को मोबाईल नंबर 9416629889, ई-मेल: rajeshtitoli@gmail.com फेसबुक www.facebook.com/rkk100, वाट्स अप नंबर : 9416629889 ब्लॉग : www.kashyapsamaj.blogspot.in पर अपना पूरा नाम व पता भेजें और साथ ही यह भी बताएं कि उन्हें कितनी रसीदें चाहिए।

प्रदेश के सभी जिलों में जल्द से जल्द रसीदें उपलब्ध करवाई जा रही हैं। इस समय प्रदेश के पाँच जिलों में रसीदें उपलब्ध हो चुकी हैं, जिसका पूर्ण विवरण निम्नलिखित है:-
1. रोहतक : श्री राजेश कश्यप (मोबाईल नं.: 9416629889)
2. पानीपत : श्री लखमीचन्द कश्यप (मोबाईल नं.: 9466029685)
3. यमुनानगर : श्री महेश कश्यप (मोबाईल नं.: 93553935)
4. जीन्द : श्री वीरभान आर्य (मोबाईल नं.: 9466475970)
5. करनाल : श्री राम सिंह (मोबाईल नं.: 9466789192)
इन जिलों के लोग सभा की सदस्यता प्राप्त करने अथवा सदस्यता रसीदें प्राप्त करने के लिए सम्पर्क कर सकते हैं।

-राजेश कश्यप
प्रदेश मीडिया प्रभारी, प्रवक्ता एवं सूचना अधिकारी।
Mob. No.: 9416629889,
e-mail : rajeshtitoli@gmail.com
Facebook : www.facebook.com/rkk100,
Whats App No : 9416629889


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शनिवार, 7 नवंबर 2015

देखिये विजेन्दर सिंह की प्रोफेशनल कैरियर की दूसरी शानदार जीत

देखिये विजेन्दर सिंह की प्रोफेशनल कैरियर की दूसरी शानदार जीत
-  राजेश  कश्यप 
भारत की शान और हरियाणा की पहचान विजेन्द्र सिंह ने प्रोफेशनल कैरियर की दूसरी फाईट को पहली फाईट से भी शानदार तरीके से जीत ली है। उन्होंने शनिवार की रात को डबलिन में मात्र तीन मिनट में ब्रिटेन के दमदार मुक्केबाज डीन गिलेन को पहले ही राउण्ड में धराशायी कर दिया। विजेन्द्र पर पूरा इण्डिया गर्व करता है। हरियाणा की आन-बान और शान को कोटि-कोटि सलाम है। इस शानदार जीत के लिए विजेन्द्र सिंह और उनके तमाम प्रशंसकों को ढ़ेरों हार्दिक बधाईयां। 
अगर आप उनकीं फाईट को देखने से चूक गए हैं तो इस लिंक को क्लिक करके देखिए विजेन्द्र सिंह का फौलादी और तूफानी प्रदर्शन
(राजेश कश्यप)
देखिए विजेन्द्र सिंह का फौलादी और तूफानी प्रदर्शन




मंगलवार, 3 नवंबर 2015

हरियाणा की एक बेटी का प्रेरणादायी गीत

 
हरियाणवी कवि-कवयित्रि
गत 1 नवम्बर, 2015 को 50वें ‘हरियाणा-दिवस’ के पावन अवसर पर महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक में एक शानदार ‘हरियाणवी कवि सम्मेलन’ आयोजित किया गया था। सभी कवि एक से बढ़कर एक थे। लेकिन, एकमात्र युवा कवयित्रि के एकमात्र गीत ने बेहद प्रभावित किया। मेरी प्रबल इच्छा है कि एक बार आप भी इस प्रेरणादायी हरियाणवी गीत - ‘बेटी पढ़ाओ तुम-बेटी बचाओ तुम’ - जरूर सुनें। मेरा पूरा विश्वास है कि आप भी इस गीत को सुनेंगे तो नतमस्तक हो जाएंगे।

इस गीत को सुनने के लिये इस लिंक को क्लिक करने का कष्ट करें: 


                             


शनिवार, 31 अक्तूबर 2015

हरियाणा की वर्तमान परिस्थितियां एवं भविष्य की चुनौतियां

‘स्वर्ण जयन्ती वर्ष 2015 / 
1 नवम्बर - स्थापना दिवस विशेष
हरियाणा की वर्तमान परिस्थितियां एवं भविष्य की चुनौतियां 
-राजेश कश्यप
स्वर्ण जयन्ती वर्ष 2015 : लेखक द्वारा तैयार मौलिक लोगो 

 50वें हरियाणा स्थापना दिवस की पावन वेला पर आप सबको हार्दिक बधाईयाँ और शुभकामनाएं!!!
-राजेश कश्यप 


‘हरि’ का ‘हरियाला’ प्रदेश हरियाणा अपनी स्थापना के पचासवें वर्ष में प्रवेश कर चुका है। हरियाणा की सरकार ने इस गौरवमयी वर्ष को ‘स्वर्ण जयन्ति वर्ष’ के रूप में मनाने का निर्णय लेते हुए वर्ष भर विभिन्न गतिविधियां एवं कार्यक्रम आयोजित करने की घोषणा की है। ऐसे में प्रदेश के अतीत का स्मरण, वर्तमान परिस्थितियों पर मन्थन और भविष्य की संभावित चुनौतियों पर गहन चिन्तन करने का सुनहरी अवसर स्वत: मिल गया है। 
सर्वविद्यित है कि ‘हरि’ की क्रीड़ा स्थली, परम तपस्वियों, साधकों, सन्तों, ऋषियों, मुनियों, विद्वानों, शूरवीर योद्धाओं और महान विभूतियों की जन्म स्थली तथा ‘गीता ज्ञान’ के उद्भव का साक्षी हरियाणा अपनी प्राचीनता, पावनताा एवं प्रगतिशीलता का पर्याय है। इस प्रदेश की गौरवमयी संस्कृति का साक्षी पौराणिक एवं पुरातात्विक इतिहास प्रचूर मात्रा में विद्यमान है। इस पावन धरा पर ब्रह्मऋषियों द्वारा किए गए वैदिक ऋचाओं के उद्घोष, दर्शन-शास्त्र-पुराण एवं स्मृतियों के निर्माण और भारतीय संस्कृति के ताने-बाने का सृजन एवं विकास की अमिट दास्तां वेद, उपनिषद एवं पुरातात्विक अभिलेखों में अंकित है। 
भाषायी आधार पर चले लम्बे राजनीतिक संघर्ष के बाद हरियाणा प्रदेश संविधान के सातवें संशोधन द्वारा भारतवर्ष के सत्रहवें राज्य के रूप में मंगलवार, 1 नवम्बर 1966 को भौगोलिक मानचित्र पर उदित हुआ। संयुक्त पंजाब से अलग होने के बाद हरियाणा प्रदेश ने अनेक जटिल चुनौतियों एवं विकट परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। इसके साथ ही स्थापना के इन पचास वर्षों के अनूठे सफर में अनेक गौरवमयी उपलब्धियों को हासिल करने एवं नित नए कीर्तिमान स्थापित करने के अवसर भी मिले। कुल मिलाकर, आज हरियाणा प्रदेश राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक आदि हर क्षेत्र में सुदृढ़ है। 
यद्यपि हरियाणा प्रदेश की झोली में अनेक गौरवमयी उपलब्धियां शोभायमान हैं, तथापि कुछ जटिल एवं विकट चुनौतियां भी चिढ़ाने वाली मौजूद हैं। मसलन, दलित-दबंग प्रकरण, जाट आरक्षण समीकरण, बढ़ता अपराधिकरण, कन्या-भू्रण हत्या, नैतिक मूल्यों का अवमूल्यन, नशा, शिक्षा का गिरता स्तर, गहराता कृषि संकट, ऑनर किलिंग, संकीर्ण व साम्प्रदायिक सियासत आदि ऐसे प्रमुख मुद्दे हैं, जो हरियाणा प्रदेश की स्वर्णिम आभा और स्वर्ण जयन्ती वर्ष की खुशियों को फीका करने वाले हैं। इन सबके साथ ही प्रदेश की राजधानी, एसवाईएल का पानी, निरन्तर बढ़ता कर्ज आदि हरियाणा प्रदेश के लिये बेहद विकट चुनौतियां नित नये कीर्तिमानों पर भारी पड़ रहे हैं। ऐसे में यदि इन सब मुद्दों का समय रहते निराकरण नहीं होता है, तो इनके दूरगामी और घातक परिणाम सिद्ध हो सकते हैं। 
हरियाणा के गत पचास वर्षों में अधिकतर तीन लालों चौधरी देवीलाल, चौधरी भजन लाल व चौधरी बंसीलाल का राजनीतिक प्रभुत्व रहा है, जिसमें, ‘आया राम गया राम’ की राजनीति भी बखूबी हावी रही। लालों की इस तिकड़ी को तोडऩे में चौधरी भूपेन्द्र सिंह हुड्डा को कामयाबी मिली और वे वर्ष 2005-14 के दौरान सत्तारूढ़ रहे। हुड्डा के एकछत्र स्थापित राज को ध्वस्त करके एक वर्ष पूर्व भाजपा के मनोहर लाल खट्टर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में एक नया इतिहास कायम करने में कामयाब हुए। इस समय सत्ता पक्ष एवं विपक्ष में अभूतपूर्व टकराव देखने को मिल रहा है। पक्ष-विपक्ष की यह राजनीतिक खींचातानी प्रदेश के स्वर्ण जयन्ती वर्ष को औपचारिकता की दलदल में न धकेल दे, इस डर का सहज अहसास हो रहा है। 
पिछले कुछ समय से दलित-दबंग प्रकरणों ने प्रदेश की छवि को बुरी तरह धुमिल किया हुआ है। मिर्चपुर काण्ड, गोहाना काण्ड, सूनपेड काण्ड जैसे ज्वलंत दलित-प्रकरण प्रदेश के स्वर्ण जयन्ती स्थापना वर्ष के रंगोत्सव को कहीं न कहीं प्रभावित करने वाले हैं। जिस तरह से छोटी-छोटी घटनाएं देखते ही देखते साम्प्रदायिक एवं जातीय बवण्डर का विकराल रूप धारण करने लगी हैं, वह हरियाणा प्रदेश के भविष्य के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं। 
हरियाणा प्रदेश की सामाजिक एकता एवं सौहार्द भावना सदियों से एक मिसाल रही है। ‘कृषि क्रांति’ की अपार सफलता और सहकारिता के उद्भव में हरियाणा प्रदेश का सामाजिक सौहार्द मुख्य आधार रहा है। विडम्बना का विषय है कि इसी सामाजिक सौहार्द में जातीय आरक्षण के रूप में खतरनाक सेंध लग चुकी है। एक तरफ जाट बिदादरी पिछड़ा वर्ग में शामिल होने के लिए किसी भी हद को पार करने के लिए सिर पर कफन बांधे हुए है तो दूसरी तरफ पिछड़ी जातियां अपने सत्ताईस प्रतिशत आरक्षण से किसी भी तरह की छेड़छाड़ को रोकने के लिए कोई भी कुर्बानी देने के लिए कमर कसे हुए हैं। इस जातिगत प्रतिस्पद्र्धा के चलते एक तरफ जहां, सशस्त्र जाट सेना बनाने जैसी भावनाओं का उद्भव हुआ है, वहीं दूसरी तरफ पिछड़ा वर्ग ब्रिगेड की बुनियाद रखी जा चुकी है। यदि प्रदेश के सामाजिक सौहार्द में लगी आरक्षण की लगी सेंध का समय रहते समुचित समाधान नहीं किया गया तो स्वर्ण जयन्ती स्थापना वर्ष के रंग में भंग पड़ सकता है। 
हरियाणा की प्राचीनता एवं पावनता बेहद प्रचलित रही है। लेकिन, जिस तरह से गर्भ में ही बड़े पैमाने पर मासूम व निर्दोष कन्याओं की निर्मम हत्याएं बेहिचक की जा रही हैं, जिस तरह से लड़कियों व महिलाओं की अस्मत से खुलेआम खिलवाड़ करने के मामले प्रकाश में आ रहे हैं और जिस तेजी से अपहरण, लूट, हत्या और बलात्कार के मामलों के ग्राफ में दिनोंदिन बढ़ौतरी दर्ज की जा रही है, वह प्रदेश की प्राचीनता व पावनता पर गहरी कालिख लगा रही है। 
‘ऑनर किलिंग’ और खाप पंचायतों के कथित तुगलकी फरमानों ने भी प्रदेश की गौरवमयी छवि को काफी हद तक नुकसान पहुंचाया है। गाँव-गौत्र-गोहाण्ड की परंपरागत मान-मर्यादा की अक्षुण्ता बनाये रखने के मिशन में जुटी खाप पंचायतें संवैधानिक नजरिये से खलनायकी के खांचे में सिमटती दिखाई दे रही हैं, जोकि प्रदेश की सामाजिक संस्कृति का क्षरण ही कहा जायेगा। पुरानी और नई पीढ़ी के बीच यह वैचारिक टकराव अनेक युवा व युवतियों की जिन्दगियों को लील चुका है। पिछलेे डेढ़-दो दशक से ‘ऑनर किलिंग’ की शर्मनाक घटनाएं व खानों की खतरनाक छवि राष्ट्रीय पटल पर सुर्खियां बटोर रही हैं। यह सब प्रदेश की स्वर्ण जयन्ती स्थापना वर्ष की उपलब्धियों व कीर्तिमानों की स्वर्णिम आभा को मन्द करने वाली हैं। 
यह निर्विवादित सत्य है कि ‘कल्चर’ के नाम पर ‘एग्रीकल्चर’ की पहचान रखने वाले हरियाणा प्रदेश ने अनेक सांस्कृतिक आयाम स्थापित किये हैं। लेकिन, कुछ ऐसे नकारात्मक पहलू भी हैं, जो इन पर पानी फेरने वाले हैं। ‘जड़ै दूध दही का खाणा-वो मेरा हरियाणा’ के मूलमंत्र का साक्षी हरियाणा न केवल अपने मूल खान-पान बल्कि, रहन-सहन, गीत-संगीत, ओढऩा-पहनना, रीति-रिवाज आदि सब बदल चुका है। यहां की अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर संरक्षण का मोहताज बन गई हैं। प्रदेश की नई व आधुनिक युवा पीढ़ी की स्मार्ट सोच व सपने अपनी अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर को इतिहास के पन्नों में दफन करने पर तुली है। यह सब स्वर्ण जयन्ती स्थापना वर्ष मना रहे हरियाणा प्रदेश के लिए काफी टीस देने वाला विषय कहा जा सकता है। लेकिन, इस टीस का अहसास करना, प्रदेश की विशाल एवं गौरवमयी संस्कृति के हित के लिए बेहद जरूरी है। 
कुल मिलाकर, स्वर्ण जयन्ती स्थापना वर्ष के दौरान हरियाणा प्रदेश की गौरवमयी उपलब्धियों व कीर्तिमानों का यशोगान करने के साथ-साथ यदि वर्तमान परिस्थितियों व भविष्य की संभावित चुनौतियों पर भी गहन चिन्तन-मन्थन करने पर जोर दिया जाये तो बेहद सार्थक परिणाम प्राप्त होंगे। यदि हर प्रदेशवासी संकीर्ण व निजी स्वार्थ भावनाओं से ऊपर उठकर पूरी ईमानदारी एवं निष्ठा के साथ प्रदेश की उन्नति एवं समृद्धि में अपना योगदान सुनिश्चित करने का संकल्प लें तो निश्चित तौरपर हम अपनी हर विकट परिस्थितियों एवं जटिल चुनौतियों से सहजता से पार पाने में सक्षम होंगे और एक नये हरियाणा के नवनिर्माण की राह प्रशस्त करने में कामयाब होंगे।  

(राजेश कश्यप)
स्वतंत्र पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक।
स्थायी सम्पर्क सूत्र:
राजेश कश्यप
स्वतंत्र पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक
म.नं. 1229, पाना नं. 8, नजदीक शिव मन्दिर,
गाँव टिटौली, जिला. रोहतक
हरियाणा-124005
मोबाईल. नं. 09416629889
e-mail : rajeshtitoli@gmail.com 

(लेखक परिचय: हिन्दी और पत्रकारिता एवं जनसंचार में द्वय स्नातकोत्तर। दो दशक से सक्रिय समाजसेवा व स्वतंत्र लेखन जारी। प्रतिष्ठित राष्ट्रीय समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में दो हजार से अधिक लेख एवं समीक्षाएं प्रकाशित। आधा दर्जन पुस्तकें प्रकाशित। दर्जनों वार्ताएं, परिसंवाद, बातचीत, नाटक एवं नाटिकाएं आकाशवाणी रोहतक केन्द्र से प्रसारित। कई विशिष्ट सम्मान एवं पुरस्कार हासिल।)

बुधवार, 23 सितंबर 2015

शौर्य गाथा हरियाणा के शूरवीरों की

23 सितम्बर/हरियाणा वीर एवं शहीदी दिवस विशेष

शौर्य गाथा हरियाणा के शूरवीरों की 
-राजेश कश्यप


       हरियाणा प्रदेश की भूमि न केवल ऋषि-मुनियों, साधु-सन्तों की पावनभूमि रही है, बल्कि यह जाबांज शूरवीरों, योद्धाओं, सूरमाओं और रणबांकुरों से भी भरी रही है। प्रदेश की माटी का कण-कण वीरत्व से जगमगाता है। यहां प्राचीनकाल से ही शौर्य, राष्ट्रप्रेम, बलिदान और वीरता की उच्च परंपराएं चिरस्थायी रही हैं। हरियाणा की इस गौरवमयी छवि का इतिहास साक्षी है। यहां की कुरूक्षेत्र की पावन भूमि महाभारत के धर्मयुद्ध में शहीद हुए शूरवीरों की अमिट कहानी को अपने अन्दर समेटे हुए है। हरियाणा की भूमि पर ही तरावड़ी, पानीपत आदि कई ऐतिहासिक लड़ाईयां लड़ीं गईं। ऐतिहासिक तथ्यों को टटोलते हैं तो पता चलता है कि जब विश्व विजयी सिकन्दर भारत पर विजय प्राप्त करने के लिए भारत के अन्य प्रदेशों को विजित करता हुआ रावी नदी के तट पर भारी सैन्यबल के साथ पहुंचा तो उसे हरियाणा के वीर सूरमाओं के अनुपम शौर्य के किस्से सुनने को मिले। हरियाणा के रणबांकुरों की शौर्य गाथा को सुनकर सिकन्दर ने वापस लौटने में ही अपनी भलाई समझी और वह सेना सहित चुपचाप वापिस लौट गया।

       आदिकाल से लेकर आधुनिक काल तक का इतिहास हरियाणा के वीर रणबांकुरों की शौर्यगाथाओं से भरा पड़ा है। हमारा देश लगभग अढ़ाई सौ वर्षों तक अंग्रेजों का गुलाम रहा। गुलामी की इन बेडिय़ों को काटने के लिए हरियाणा प्रदेश के शूरवीरों ने अपनी अह्म भूमिका निभाई। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान शहीद होने वाले देशभक्त-शहीदों की सूची में हरियाणा का नाम सर्वोपरि माना गया है। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के वीर शहीदों में हरियाणा प्रदेश के अनेक शहीदों ने अपना नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित करवाया। इन सब देशभक्त शहीदों की गौरवगाथा का बखान जितना भी किया जाए, उतना ही कम होगा।  जब 10 मई, 1857 को बैरकपुर (पश्चिम बंगाल) की सैनिक छावनी से वीर सिपाही मंगल पाण्डे की गोली से निकली चिंगारी ने प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का आगाज किया तो हरियाणा में अम्बाला छावनी की 5वीं व 7वीं पलटनें भी इस संग्राम में सिर पर कफन बांधकर कूद पड़ीं। अम्बाला के सैनिकों के विद्रोह के तीन दिन के अन्दर ही रोहतक, गुडग़ाँव, पानीपत, झज्जर, नारनौल, रेवाड़ी, हाँसी, हिसार आदि सब जगह विद्रोह की आग भडक़ उठी। 
महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी, रोहतक में स्थित क्रांति चौंक (छाया चित्र : राजेश कश्यप)
       इस विद्रोह में हरियाणा के सैनिकों ने ही नहीं, बल्कि किसानों, मजदूरों और कर्मचारियों ने भी बढ़चढक़र भाग लिया और बड़े स्तर पर ऐतिहासिक नेतृत्व भी किया। इनमें मेवात के किसान सदरूद्दीन, अहीरवाल के मुख्य सामंत तुलाराम, पलवल के किसान हरसुख राय एवं व्यापारी गफूर अली, फरीदाबाद के किसान धानू सिंह, बल्लभगढ़ के मुख्य सामन्त नाहर सिंह, फरूर्खनगर के मुख्य सामन्त अहमद अली एवं सरकारी कर्मचारी गुलाम मोहम्मद, पटौदी के मुख्य सामन्त अकबर अली, पानीपत के मौलवी इमाम अली कलन्दर, खरखौदा के किसान बिसारत अली, सांपला के किसान साबर खाँ, दुजाना के मुख्य सामन्त हसन अली, दादरी के मुख्य सामन्त बहादुर जंग, झज्जर के मुख्य सामन्त अब्दर्रहमान व उनके जनरल अब्दुस समद, भट्टू (हिसार) के सरकारी कर्मचारी मोहम्मद आजिम, हाँसी के सरकारी कर्मचारी हुकम चन्द, रानी के अपदस्थ मुख्य सामन्त नूर, लौहारू के मुख्य सामन्त अमीनुद्दीन और रोपड़ के सेवादार मोहन सिंह आदि सभी ने अपने-अपने क्षेत्र में क्रांतिकारियों का जबरदस्त नेतृत्व किया।
झज्जर नवाब अब्दुर्रहमान खां
       ‘बल्लभगढ़ के शेर’ उपनाम से प्रसिद्ध राजा नाहर सिंह को अंग्रेजी सरकार ने 9 जनवरी, 1858 को चांदनी चौक पर सरेआम फांसी पर लटका दिया था। झज्जर नवाब अब्दुर्रहमान खां को भी सुनियोजित ढ़ंग से राजद्रोह का दोषी करार देकर 23 दिसम्बर, 1857 को लालकिले के सामनेफ फांसी के तख्ते पर लटका दिया था। 
 
राजा नाहर सिंह
     एक छोटी सी रियासत फर्रूखनगर के मालिक नवाब अहमद अली गुलाम खाँ ने खुलकर अंग्रेजों के विरूद्ध युद्ध का बिगुल बजाया और अंग्रेजों के खूब छक्के छुड़ाए। बाद में क्रूर अंग्रेजों ने उन्हें भी 23 जनवरी, 1858 को राजद्रोही करार देकर चाँदनी चौक में कोतवाली के सामने फाँसी पर लटका दिया। रानियां (सिरसा) के नवाब नूर समन्द खाँ ने अंग्रेजों से डटकर लौहा लिया, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें 17 जून, 1857 को फाँसी के फंदे पर लटका दिया गया। नांगल पठानी के राव किशन गोपाल ने 13 नवम्बर, 1857 को नसीबपुर (झज्जर) में क्रांतिकारियों के साथ अंग्रेजी सेना का सीधा मुकाबला किया और वे अपने बड़े भाई राव रामपाल के साथ रणभूमि में शहीद हो गए।
हिसार स्थित लाला हुकम चाँद जैन स्मृति स्मारक 
      सरकारी कर्मचारी होने के बावजूद हाँसी के लाला हुकमचन्द जैन व मिर्जा मुनीर बेग ने अंग्रेजी शासन के विरूद्ध बढ़चढक़र योगदान दिया। अंग्रेजों ने राजद्रोह का आरोप लगाकर उन्हें 19 जनवरी, 1858 को इन्हीं के घरों के सामने फाँसी पर लटका दिया। दादरी (बहादुरगढ़) के नवाब बहादुर जंग खाँ ने अंग्रेजों के विरूद्ध क्रांतिकारियों का तन-मन-धन से साथ दिया। इन पर भी राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया, लेकिन आरोप सिद्ध न हो सके। इसके बावजूद उनकी संपत्ति को जब्त करके उन्हें लाहौर जेल भेज दिया गया। 

रेवाड़ी के महायोद्धा राव तुलाराम

       रेवाड़ी के महायोद्धा राव तुलाराम ने अंग्रेजों से अपने पूर्वजों के इलाकों रेवाड़ी, बोहड़ा, शाहजहांपुर आदि को पुन: हासिल करके अंग्र्रेजों को दंग करके रख दिया था। सोनीपत के लिबासपुर गाँव के सामान्य किसान नम्बरदार उदमी राम ने अपनी 22 सदस्यीय क्रांतिकारियों की टोली बनाकर समीप के राष्ट्रीय राजमार्ग से गुजरने वाले अंग्रेज अधिकारियों को जमकर निशाना बनाया। एक देशद्रोही के कारण वे अंग्रेजों के शिकंजे में फंस गए। 
 
उदमी राम एवं उनकी पत्नी को कड़े मारते अंग्रेज सिपाही 

       अंग्रेजों ने उदमी राम को अत्यन्त क्रूर यातनायें देने के बाद राई के कैनाल रैस्ट हाऊस में पेड़ पर कीलों से ठोंककर लटका दिया, जहां उन्होंने 35वें दिन 28 जून, 1857 को अपने प्राण त्यागे। उनकीं पत्नी को भी पेड़ से बांध दिया गया और वे भी कुछ दिनों बाद ही शहीद हो गईं। अंग्रेजों ने शहीद उदमी राम के सभी साथियों को भयंकर यातनायें देने के बाद बहालगढ़ चौंक पर सरेआम पत्थर के कोल्हू के नीचे बुरी तरह रौंद दिया। यह खूनी पत्थर आज भी सोनीपत के देवीलाल पार्क में साक्ष्य के तौरपर मौजूद है।
खूनी पत्थर
       इस तरह 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान असंख्य जाने-अनजाने शूरवीरों ने अपनी शहादतें और कुर्बानियां दीं। बदकिस्मती से अंग्रेज इस क्रांति को विफल करने में कामयाब रहे। लेकिन, असंख्य शहीदों की कुर्बानियों और शहादतों ने देशवासियों को स्वतंत्रता की स्पष्ट राह दिखा दी। इसके बाद लगातार स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए आन्दोलन चले, जिसमें हरियाणा के जनमानस ने बखूबी बढ़चढक़र सक्रिय योगदान दिया। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नेतृत्व में चले आजादी के आन्दोलनों में यहां के लोगों ने महत्ती भूमिका निभाई। रोलेट एक्ट के विरोध में हरियाणा के लोगों ने खूब धरने, प्रदर्शन एवं जनसभाएं कीं। खिलाफत आन्दोलन (1920), असहयोग आन्दोलन (1932), साईमन कमीशन विरोध (1921), नमक सत्याग्रह आन्दोलन (1930), हैदराबाद सत्याग्रह (1939), भारत छोड़ो आन्दोलन (1942), आसौदा आन्दोलन (1942), प्रजामण्डल आन्दोलन आदि के साथ-साथ आजाद हिन्द फौज में भी हरियाणा के वीरों ने बढ़चढक़र अपना योगदान दिया। आजाद हिन्द फौज में हरियाणा के कुल 2715 जवानों ने अपनी शहादतें देश के लिए दीं, जिनमें 398 अफसर और 2317 सिपाही शामिल थे। काफी लंबे संघर्ष के बाद उन्हें पराजय स्वीकार करनी पड़ी। ऐसे ही असंख्य आने-अनजाने वीरों की कुर्बानियों और शहादतों के बल पर हमारा देश अंग्रेजों की दासता की बेडिय़ों को काटकर अंतत: 15 अगस्त, 1947 को आजाद हो गया। 
      इससे पूर्व प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्धों में भी हरियाणा के असंख्य शूरवीरों ने अपनी वीरता का लोहा मनवाया था। प्रथम विश्वयुद्ध, 1914 में पूरे भारतवर्ष से कुल एक लाख पच्चीस हजार जवानों ने भाग लिया था, जिसमें अकेले हरियाणा से 80,000 से अधिक वीर सैनिक शामिल थे। हरियाणा में रोहतक जिले के सर्वाधिक लाल शामिल थे, जिनकी संख्या 22,000 से अधिक थी। इस प्रथम विश्वयुद्ध में हरियाणा के रणबांकुरों ने अपने शौर्य के बलबूते सैन्य पदकों के मामले में आठवां स्थान हासिल किया था। उल्लेखनीय है कि इन सैन्य पदकों में हरियाणा के वीर सूरमा रिसालदार बदलूराम को मरणोपरान्त दिया गया विक्टोरिया क्रॉस भी शामिल था, जिसके लिए हरियाणा जन-जन आज भी गर्व करता है। दूसरे विश्वयुद्ध में भी हरियाणा के एक लाख तीस हजार से अधिक रणबांकुरों ने भाग लिया था और अपनी वीरता का लोहा मनवाया था। इस विश्वयुद्ध के लिए हरियाणा के वीर सैनिकों को कुल 26 पदक मिले थे, जिसमें पाँच विक्टोरिया क्रॉस शामिल थे। ये पाँच विक्टोरिया क्रॉस पलड़ा (झज्जर) के उमराव सिंह के अलावा हवलदार मेजर छैलूराम, सूबेदार रामसरूप, सूबेदार रिछपाल और जमादार अब्दुल हाफिज को मरणोपरान्त दिए गए थे।
महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी, रोहतक में शहीद स्मृति स्मारक (छाया चित्र : राजेश कश्यप)
      इतिहास साक्षी है कि हरियाणा के वीर सूरमा सेनाओं में भर्ती होकर राष्ट्र की स्वतंत्रता, एकता, अखण्डता एवं उसकी अस्मिता की रक्षा के लिए हमेशा तन-मन-धन से समर्पित रहे हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत भी इस प्रदेश के रणबांकुरे सेना में भर्ती होकर देश के प्रहरी की सशक्त भूमिका निभा रहे हैं। देश की सशस्त्र सेनाओं में चाहे वह जाट रेजीमेंट हो या फिर ग्रेनेडियरर्ज, राजपुताना राईफल्स हो या कुमाऊं रेजीमेंट, राजपूत रेजीमेन्ट हो या अन्य कोई टुकड़ी, सभी जगह हरियाणा के रणबांकुरों की उपस्थिति अहम् मिलेगी। इसलिए हम गर्व से कह सकते हैं कि हरियाणा के रणबांकुरों के बिना भारतीय सेना अधूरी दिखाई देगी। अगर अभी तक के युद्धों पर नजर डालें तो पाएंगे कि हरियाणा के शूरवीर सभी युद्धों में अग्रणी रहे हैं। आंकड़े गवाह हैं कि हरियाणा देश की जनसंख्या का मात्र दो प्रतिशत है, फिर भी हरियाणा प्रदेश का सैन्य दृष्टि से योगदान कम से कम बीस प्रतिशत है। इसका अभिप्राय, देश की सेना का हर पाँचवा सिपाही हरियाणा की मिट्टी का लाला है। सैन्य पदकों के मामले में भी हरियाणा के रणबांकुरे तीसरे स्थान पर हैं। हरियाणा प्रदेश के लिए यह भी एक गौरवपूर्ण एवं ऐतिहासिक उपलब्धि है कि भिवानी जिले के गाँव बापौड़ा में जन्मे रणबांकुरे जनरल वी.के. सिंह भारतीय थल सेनाध्यक्ष के गौरवमयी पद को सुशोभित कर चुके हैं।
महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी, रोहतक में स्वतंत्रता सेनानी  स्मृति स्मारक (छाया चित्र : राजेश कश्यप)
       वर्ष 1947-48 के कश्मीर कश्मीर युद्ध पर नजर डालें तो पाएंगे कि हरियाणा के रणबांकुरे सैकिण्ड जाट के नायक शीशपाल को प्रथम महावीर चक्र (मरणोपरान्त) से सम्मानित किया गया था। इसी युद्ध के अन्य शहीद लांसनायक राम सिंह (सिक्ख रेजीमेंट), नायक सरदार सिंह (कुमाऊं रेजीमेंट), सूबेदार सार्दूल सिंह (राजपूत रेजीमेंट), सिपाही मांगेराम (थर्ड जाट रेजीमेंट) और सूबेदार थाम्बूराम व सिपाही यादराम (सैकिण्ड जाट) को मरणोपरान्त वीर चक्र से सुशोभित किया गया था। इनके अलावा इसी युद्ध में लेफ्टि. कर्नल धर्म सिंह, सिपाही हरिसिंह तथा हवलदार फतेहसिंह को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था। सिपाही अमीलाल, नायब सूबेदार अमीर सिंह, हवलदार ईश्वर सिंह, हवलदार मातादीन, सूबेदार जुगलाल, सिपाही जयपाल, सेकिण्ड लेफ्टि. ठण्डीराम, मेजर इन्द्र सिंह कालान, दफेदार लालचन्द, नायक शिवचन्द राम, हवलदार नारायण आदि को वीर चक्र से अलंकृत किया गया था। 
      सन् 1962 के भारत-चीन युद्ध में सर्वोपरि योगदान अहीर शूरवीरों का रहा, जो रिजान्गला युद्ध के नाम से इतिहास के पन्नों में अंकित है। सन् 1962 के युद्ध में रिजांगला युद्ध के सूरमाओं को हरियाणा ही नहीं, बल्कि एक ही रेजीमेंट के सबसे ज्यादा पदक प्राप्त हुए हैं, जिनमें एक महावीर चक्र नायक धर्मपाल सिंह दहिया (आर्मी मेडिकल कोर) को और नायक हुकमचन्द, लांस नायक सिंहराम, नायक गुलाब सिंह, नायब सूबेदार सूरजा को मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया। इसी युद्ध में मेजर महेन्द्र सिंह चौधरी तथा मेजर सार्दूल सिंह रंधावा को महावीर चक्र तथा नायक सरदार सिंह, सूबेदार निहाल सिंह, कैप्टन गुरचरण भाटिया तथा नायक मुन्शीराम को मरणोपरान्त वीर चक्र से सुशोभित किया गया।
      इसी युद्ध में नायक रामचन्द्र यादव व हवलदार रामकुमार यादव को भी रिजान्गला पोस्ट पर दिखाई वीरता के लिए वीर चक्र से सम्मानित किया गया। सन् 1965 के भारत-पाक युद्ध में हरियाणा के मेजर जनरल स्वरूप सिंह कालान, मेजर रणजीत सिंह दयाल तथा लेफ्टि. जनरल के.के. सिंह को महावीर चक्र से सम्मानित किया। इसी युद्ध में सूबेदार खजान सिंह स्कवार्डन लीडर तेज प्रकाश सिंह गिल, सूबेदार पाले राम, सेवादार छोटूराम तथा हवलदार लहणा सिंह को वीर चक्र से अलंकृत किया गया। भारत माँ के लिए शहादत देने के लिए एस.पी.वर्मा, नायक रामकुमार, लांस हवलदार उमराव सिंह, रायफलमैन माथन सिंह, नायक जगदीश सिंह, सूबेदार नन्दकिशोर को मरणोपरान्त वीर चक्र से सम्मानित किया गया।
      वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध में भी हरियाणा के शूरवीरों का योगदान बड़ा अहम् रहा, जिसमें दस डोगरा के कैप्टन देवेन्द्र सिंह अहलावत व इंजीनियर के मेजर विजय रत्न चौधरी को मरणोपरान्त महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। इसी युद्ध में दुश्मन से लोहा लेते हुए अपना जीवन न्यौछावर करने वाले लेफ्टि. करतार सिंह अहलावत, लेफ्टि. हवासिंह, कैप्टन कुलदीप सिंह राठी, नायब सूबेदार उमेद सिंह, मेजर हरपाल सिंह, हवलदार दयानंद राम, लांस नायक अभेराम, सी.एच.एम. किशन सिंह, नायक महेन्द्र सिंह और बी.एस.एफ. के नायक उमेद सिंह व सहायक कमांडेंट नफे सिंह दलाल को मरणोपरान्त वीर चक्र से अलंकृत किया गया। इसी युद्ध में अपने शौर्य का अद्भूत प्रदर्शन करने वाले लेफ्टि. जनरल के.के. सिंह, कमोडोर ब्रजभूषण यादव, सी.मैन चमन सिंह को महावीर चक्र से सुशोभित किया गया। इनके अलावा युद्ध में दुश्मन को छठी का दूध याद दिलाने के लिए मेजर अमरीक सिंह, ग्रेनेडियर अमृत, लेफ्टि. कमाण्डर इन्द्र सिंह, फ्लाईग ऑफिसर जय सिंह अहलावत, मेहर शेर सिंह, हवलदार खजान सिंह, स्क्वार्डन लीडर जीवा सिंह, सवार जयसिंह, गर्नर टेकराम, कमोडोर विजय सिंह शेखावत को वीर चक्र से सम्मानित किया गया।
      सन् 1999 में भारत ने कारगिल में घुसपैठ करने का दु:साहस किया तो भारत माँ के लालों ने ‘कारगिल ऑप्रेशन विजय’ के तहत पाकिस्तानी घुसपैठियों को पीठ दिखाकर भागने के लिए विवश कर दिया। भारत माँ क इन लालों में हरियाणा की पावन मिट्टी में जन्में अनेक शूरवीर शामिल थे। ‘कारगिल ऑप्रेशन विजय’ 21 मई से 14 जुलाई, 1999 तक चला। इसमें कुल 348 शूरवीरों ने शहादत दी, जिनमें हरियाणा के 80 रणबांकुरे शामिल थे। हरियाणा के रणबांकुरों ने देश की आन-बान और शान के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर करने में तनिक भी संकोच नहीं किया। इसकी पुष्टि इसी तथ्य से हो जाती है कि इस युद्ध में 17 जाट के 12 जवान तथा 18 ग्रेनेडियर के 12 जवान एक ही दिन में शहीद हुए। 
      ‘कारगिल ऑप्रेशन विजय’ में भिवानी जिले के जवानों ने सर्वाधिक शहादतें दीं। इसके बाद महेन्द्रगढ़ के दस, फरीदाबाद के बारह, रोहतक के दस, फरीदाबाद के सात, रेवाड़ी के छह, गुडग़ाँव के पाँच तथा शेष अन्य जिलों के जवानों की शहादतें दर्ज हुईं। ‘कारगिल ऑप्रेशन विजय’ में अद्भूत शौर्य प्रदर्शन करने वाले लेफ्टि. बलवान सिंह को महावीर चक्र और सूबेदार रणधीर सिंह व लांस हवलदार रामकुमार को मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया। इनके अलावा हवलदार हरिओम, नायक समुन्द्र सिंह, नायक बलवान सिंह, लांस नायक रामकुमार, सिपाही सुरेन्द्र सिंह तथा लांस हवलदार बलवान सिंह को सेना मेडल से अलंकृत किया गया। इन सब युद्धों के अलावा आतंकवाद से लोहा लेने में भी हरियाणा के वीरों की अह्म भूमिका रही है, जिसमें मुख्य रूप से सेकिण्ड लेफ्टि. राकेश सिंह व मेजर राजीव जून के नाम सर्वोपरि स्थान पर आते हैं। ये दोनों वीर योद्धा 22 ग्रेनेडियर रेजीमेंट के थे और दोनों को अशोक चक्र से मरणोपरान्त सम्मानित किया गया। ‘हरियाणा वीर एवं शहीदी दिवस’ देश पर तन-मन-धन अर्पण करने वाले और अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले सभी जाने-अनजाने वीरों, सूरमाओं, रणबांकुरों और शहीदों को कोटिश: सादर नमन।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक हैं।) 
 (राजेश कश्यप)
स्वतंत्र पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक।

सम्पर्क सूत्र:
राजेश कश्यप
स्वतंत्र पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक
म.नं. 1229, पाना नं. 8, नजदीक शिव मन्दिर,
गाँव टिटौली, जिला. रोहतक
हरियाणा-124005
मोबाईल. नं. 09416629889
e-mail : rajeshtitoli@gmail.com

(लेखक परिचय: हिन्दी और पत्रकारिता एवं जनसंचार में द्वय स्नातकोत्तर। दो दशक से सक्रिय समाजसेवा व स्वतंत्र लेखन जारी। प्रतिष्ठित राष्ट्रीय समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में 3500 से अधिक लेख एवं समीक्षाएं प्रकाशित। आधा दर्जन पुस्तकें प्रकाशित। दर्जनों वार्ताएं, परिसंवाद, बातचीत, नाटक एवं नाटिकाएं आकाशवाणी रोहतक केन्द्र से प्रसारित। कई विशिष्ट सम्मान एवं पुरस्कार हासिल।)

गुरुवार, 17 सितंबर 2015

राजेश कश्यप मीडिया प्रभारी एवं सूचना अधिकारी नियुक्त

राजेश कश्यप 
राजेश कश्यप मीडिया प्रभारी एवं सूचना अधिकारी नियुक्त 

युवा समाजसेवी राजेश कश्यप को तत्काल प्रभाव से हरियाणा कश्यप राजपूत सभा (रजि.नं. 184) का प्रदेश मीडिया प्रभारी बनाया गया है। यह अधिसूचना जारी करते हुए मुख्य प्रशासनिक कमेटी हरियाणा के अध्यक्ष बलजीत सिंह मतौरिया ने बताया बताया कि भविष्य में सभा का मीडिया से सम्बंधित कार्य, दायित्व, अधिकार एवं शक्तियां प्रयोग करने का अधिकार केवल राजेश कश्यप को ही होगा। इसके साथ ही, राजेश कश्यप को सभा के प्रदेश प्रवक्ता एवं सूचना अधिकारी का अतिरिक्त दायित्व भी सौंपा गया है। श्री मतौरिया ने इस सन्दर्भ में स्पष्ट किया है कि भविष्य में राजेश कश्यप द्वारा जारी की गई सूचनाएं एवं जानकारियां ही आधिकारिक रूप से मान्य होंगी और सभा की तरफ से केवल उन्हें ही आधिकारिक बयान देने का अधिकार होगा। उल्लेखनीय है कि राजेश कश्यप लगभग डेढ़ दशक से समाजसेवा के क्षेत्र में सक्रिय हैं और गाँव टिटौली के स्थायी निवासी हैं। इससे पहले वे सभा के साहित्यिक एवं सांस्कृतिक सैल के चेयरमैन रह चुके थे और पिछले छह साल से रोहतक जिले के प्रधान बने हुए थे। उन्हें उल्लेखनीय समाजसेवा एवं रचनात्मक लेखन के लिए अब तक एक दर्जन से अधिक विशिष्ट सम्मान एवं पुरस्कार हासिल हो चुके हैं, जिनमें ‘गणतंत्र दिवस विशिष्ट सम्मान-2000’, ‘डॉ. अम्बेडकर फैलोशिप सम्मान-2003’, ‘सन्त कबीर सम्मान-2006’, ‘सीएसआर मिस्टर इंटेलेक्यूअल अवार्ड-2010’, ‘शहीद चन्द्रशेखर आजाद अवार्ड-2012’, ‘भास्कर ग्रीन आईडल अवार्ड-2012’,  ‘जागरण ब्लॉग मित्र अवार्ड-2013’, ‘सिम्मी मरवाह अवार्ड-2014’, ‘भारत मित्र मंच सम्मान अवार्ड-2014’, ‘प्रज्ञा साहित्य सम्मान-2015’ आदि प्रमुख रूप से शामिल हैं। राजेश कश्यप की नई नियुक्ति का प्रदेश के सभी समाजसेवियों ने भारी स्वागत किया है और श्री कश्यप को हार्दिक बधाईयां एवं शुभकामनाएं दी हैं। इधर, इस नियुक्ति के लिये राजेश कश्यप ने कमेटी के अध्यक्ष बलजीत सिंह मतौरिया एवं अन्य सभी समाजसेवियों का तहेदिल से आभार प्रकट किया है और उन्हें पूरा विश्वास दिलाया है कि वे अपनी जिम्मेदारी को पूर्ण निष्ठा एवं ईमानदारी के साथ निभाएंगे। 

शुक्रवार, 28 अगस्त 2015

रस्म तेरहवीं (Rashm Terahvin)


रस्म तेरहवीं 

रविवार, 23 अगस्त 2015

वरिष्ठ समाजसेवी सुरेश राठी की धर्मपत्नी का ब्रैनहेमरेज से आकस्मिक निधन


वरिष्ठ समाजसेवी सुरेश राठी की धर्मपत्नी का ब्रैनहेमरेज से आकस्मिक निधन

वरिष्ठ समाजसेवी और हरियाणा युवा शक्ति के प्रदेशाध्यक्ष सुरेश राठी की धर्मपत्नी श्रीमती मुन्नी देवी का ब्रैनहेमरेज होने के कारण आकस्मिक निधन हो गया. वे 52 वर्ष की थीं. उन्हें गत 15 अगस्त की सुबह ब्रैनहेमरेज हो गया था, जिसके बाद उन्हें पीजीआई रोहतक में दाखिल करवाया गया था. वे लगातार कोमा में चल रही थीं. काफी प्रयासों के बावजूद उन्हें बचाया नहीं जा सका. उन्होंने शनिवार  रात 8 बजे अंतिम साँस ली. उनका अंतिम संस्कार रविवार को सुबह 10 बजे शीला बाई पास स्थित शमशानघाट  में किया गया. उनके इकलौते सुपुत्र मनीष राठी ने मुखाग्नि दी. इस अवसर पर प्रदेश व देश के सैंकड़ों गणमान्य लोग उपस्थित थे , जिनमें सीबीआई दिल्ली पुलिस के उच्च अधिकारी हरिकेश, ब्रिगेडियर  सुखबीर सिंह रोहिल, एडिशनल टैक्स कमिश्नर अजित सिंह अहलावत, चौधरी रणबीर  शोधपीठ के चेयरमैन ज्ञान सिंह, भाजपा के भारतीय मजदूर संघ  उपाध्यक्ष रमेश बल्हारा, हरियाणा यूनियन ऑफ जर्नलिस्टस के अध्यक्ष राठी, हरियाणा नशाबंदी परिषद की प्रदेशाध्यक्षा डॉ. विद्या सांगवान, आकाशवाणी रोहतक के पूर्व निदेशक धर्मपाल मालिक, कैप्टन राजबीर सांगवान, निन्दाना गाँव के सरपंच जयभगवान, सेवानिर्वित न्यायाधीश महेंद्र सिंह धनखड़, आचार्य बलबीर सिंह, बेटी बचाओ अभियान की संयोजक पूनम आर्य, प्रवेश आर्य, हरियाणा कश्य राजपूत सभा रोहतक के जिला प्रधान राजेश कश्यप आदि शामिल थे. पत्नी शोक से ग्रसित वरिष्ठ समाजसेवी सुरेश राठी ने बताया कि श्रीमती मुन्नी देवी उनकी अर्धांगिनी ही नहीं, बल्कि समाजसेवी सोच की धनी थीं और लोगों की भलाई के लिए वो निरंतर प्रेरित करतीं रहती थीं. वो गाँव तालु धनाणा, जिला भिवानी की बेटी थीं. श्री राठी ने बताया की स्वर्गीया मुन्नी देवी की तेहरवीं आगामी 31 अगस्त, सोमवार को उनके निवास स्थान म.न. 131/9 सी, बसंत विहार, शीला बाईपास रोहतक पर होगी।

 

शुक्रवार, 24 जुलाई 2015

ये है अलौकिक ज्ञान गंगा !

ये है अलौकिक ज्ञान गंगा !
-राजेश कश्यप
             भक्ति-भजन की अपार महत्ता है। भक्ति-भजनों में मानव जीवन का सच्चा सार समाहित होता है। एक-एक भजन में अथाह ज्ञान का भण्डार पड़ा है। इन भजनों के सुनने मात्र से ही आत्मिक शांति का अनूठा अहसास होता है। यदि इन भजनों को नित्य एक बार तनिक गुनगुना लिया जाये तो जीवन की सार्थकता का असीम संचार होने लगता है। बड़े-बजुर्गों के पास बैठकर, उनके श्रीमुख से इन भक्ति-भजनों को सुनने का सौभाग्य पाकर देखिये, अनंत अलौकिक आनंद की वर्षा से सराबोर हो उठेंगे। मुझे ऐसा सौभाग्य कई बार मिला है। ऐसे अहसास को आपके साथ सांझा कर रहा हूँ। नीचे 15 भक्ति-भजनों का संग्रह दे रहा हूँ। हर भजन की हर पंक्ति आपके रोम-रोम में समाने वाली है। ये भजन हरियाणा प्रदेश के सोनीपत जिले के गाँव गढ़ी उजाले खां (गोहाना) के बुजुर्ग भक्त सूबे सिंह के श्रीकंठ से निकले हैं। मुझे संयोगवश इन्हें रिकार्ड़ करने व संरक्षित रखने का सुअवसर मिला। ज्ञान का यह अनमोल खजाना आपके सुपुर्द कर रहा हूँ। इन्हें सुनने के बाद, अपनी प्रतिक्रिया से जरूर अवगत करवाना। यदि भजन अच्छे लगें तो आप भी अन्य मित्रों तक पहुंचाना। अब इन भक्ति-भजनों पर बारी-बारी से क्लिक कीजिये और अलौकिक ज्ञान गंगा में डूबकी लगाईये....!!!


1. बाहण मेरी भज ले न करतार, थारा हो ज्यागा उद्धार...!

2. तेरी लीला अजब महान, कुछ भेद नहीें चलता...!

3. मनैं राम भजन मन भावै ऐ सखी, सत्संग की महिमा न्यारी...!

4. तेरा कोई न बणैगा बन्दे प्यारे, जब मारै काल आकै ललकारे...!

5. मेरा-मेरी करते-करते सारा जन्म गंवाएं क्यूं, मिट्टी में मिलाए क्यूं...!

6. दो घड़ी तूं बैठ कै बन्दे राम-नाम गुण गा..!

7. छोड़ जायेगा बन्दे एक दिन, काल का देश बेगाना...!

8. बुरी आदतें सब छूट जाती हैं, जो चलकै संगत में आता है...!

9. दुःख दूर कर हमारा, संसार के रचैया...!

10. चालो देण बधाई हे, हे नेकी घर जन्मा लाल सै...!

11. वेद सन्तों ने सारा बताये दिया, जो समझ में न आए तो मैं क्या करूं..!

12. जन्म ना कर बदनाम, बुरे काम से मन को हटा ले...!

13. सदा नाम ध्याणा रे प्यारे...!

14. ओ भाई, तेरे अन्दर खजाने भरे, क्यूं ना उसकी तलाश करे...!

15. नहीं मालूम है एक दिन, मेरी अर्थी रवां होगी...!

प्रस्तुति : राजेश कश्यप, रोहतक (हरियाणा)




निषाद समाज की उत्तर प्रदेश सरकार से ये पाँच प्रमुख माँगे

        
गोरखपुर में धरनारत निषाद समाज 

            आदरणीय मित्रो! गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) में ‘राष्ट्रीय निषाद एकता परिषद’ के बैनर तले लगभग एक महीने से निम्नलिखित पाँच प्रमुख माँगों को लेकर अनवरत धरना-प्रदर्शन चल रहा है, जिसमें शामिल होने का मुझे भी मौका मिला। 


गोरखपुर में धरनारत निषाद समाज के साथ राजेश कशयप 

निषाद समाज की उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी की सरकार से ये पाँच प्रमुख माँगे हैं:-
1. निषाद मछुआ समुदाय की मझवार जाति की सभी पर्यायवाची (केवट मल्लाह माझी आदि को) अनुसूचित जाति-प्रमाण पत्र अथवा रेणुके आयोग की रिपोर्ट के अनुसार क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट से प्रभावित जातियों को 7.5 प्रतिशत का विमुक्ति जनजाति एस.टी. का आरक्षण दिया है, जिसे महाराष्ट्र, आन्ध्रा प्रदेश, कर्नाटक व उड़ीसा सरकार ने लागू कर दिया। वही केन्द्र एवं उत्तर प्रदेश में लागू होना चाहिए।2. अखिलेश निषाद को अमर शहीद का दर्जा व उसके आश्रितों को आर्थिक सहायता दी जाये।3. कसरवल के आन्दोलकारियों के ऊपर लगे मुकद्दमें को वापस लेकर बिना शर्त जेल से रिहा किया जाये।4. पुलिस प्रशासन द्वारा जलाई गई आन्दोलनकारियों के वाहनों की क्षतिपूर्ति अविलम्ब दिया जाये।5. कसरवल गोरखपुर गोलीकाण्ड में अखिलेश निषाद की हत्या की सीबीआई जांच कराकर दोषी अधिकारियों को दण्डित किया जाये।
        इन पाँच माँगों को मनवाने के लिए निषाद समाज ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ज्ञापन भेजा है। ज्ञापन की प्रति निम्नलिखित है :




-राजेश कश्यप, रोहतक (हरियाणा)

गुरुवार, 23 जुलाई 2015

जानिए क्रन्तिकारी चन्द्रशेखर आजाद की कुर्बानी को !

23 जुलाई /108वीं जयन्ति पर विशेष
क्रन्तिकारी चन्द्रशेखर आजाद

जानिए क्रन्तिकारी चन्द्रशेखर आजाद की कुर्बानी को !
- राजेश कश्यप
       आज हम जिस गौरव और स्वाभिमान के साथ आजादी का आनंद ले रहे हैं, वह देश के असंख्य जाने-अनजाने महान देशभक्तों के त्याग, बलिदान, शौर्य और शहादतों का प्रतिफल है। काफी देशभक्त तो ऐसे थे, जिन्होंने छोटी सी उम्र में ही देश के लिए अतुलनीय त्याग और बलिदान देकर अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में में अंकित करवाया। इन्हीं महान देशभक्तों में से एक थे चन्द्रशेखर आजाद। उनका जन्म 23 जुलाई, 1906 को उत्तर प्रदेश के जिला उन्नाव के बदरका नामक गाँव में ईमानदार और स्वाभिमानी प्रवृति के पंडित सीताराम तिवारी के घर श्रीमती जगरानी देवी की कोख से हुआ। चाँद के समान गोल और कांतिवान चेहरे को देखकर ही इस नन्हें बालक का नाम चन्द्रशेखर रखा गया। पिता पंडित सीताराम पहले तो अलीरापुर रियासत में नौकरी करते रहे, लेकिन बाद में भावरा नामक गाँव में बस गए। इसी गाँव में चन्द्रशेखर आजाद का बचपन बीता। आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में बचपन बीतने के कारण वे तीरन्दाजी व निशानेबाजी में अव्वल हो गए थे।
          चन्द्रशेखर बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे। उच्च शिक्षा के लिए वे काशी जाना चाहते थे। लेकिन, इकलौती संतान होने के कारण माता-पिता ने उन्हें काशी जाने से साफ मना कर दिया। धुन के पक्के चन्द्रशेखर ने चुपचाप काशी की राह पकड़ ली और वहां जाकर अपने माता-पिता को कुशलता एवं उसकी चिन्ता न करने की सलाह भरा पत्र लिख दिया। उन दिनों काशी में कुछ धर्मात्मा पुरूषों द्वारा गरीब विद्यार्थियों के ठहरने, खाने-पीने एवं उनकी पढ़ाई का खर्च का बंदोबस्त किया गया था। चन्द्रशेखर को इन धर्मात्मा लोगों का आश्रय मिल गया और उन्होंने संस्कृत भाषा का अध्ययन मन लगाकर करना शुरू कर दिया।
         सन् 1921 में देश में गांधी जी का राष्ट्रव्यापी असहयोग आन्दोलन चल रहा था तो स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने एवं विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार करने का दृढ़ सकल्प देशभर में लिया गया। अंग्रेजी सरकार द्वारा आन्दोलकारियों पर बड़े-बड़े अत्याचार किए जाने लगे। ब्रिटिश सरकार के जुल्मों से त्रस्त जनता में राष्ट्रीयता का रंग चढ़ गया और जन-जन स्वाराज्य की पुकार करने लगा। विद्याार्थियों में भी राष्ट्रीयता की भावना का समावेश हुआ। पन्द्रह वर्षीय चन्द्रशेखर भी राष्ट्रीयता व स्वराज की भावना से अछूते न रह सके। उन्होंने स्कूल की पढ़ाई के दौरान पहली बार राष्ट्रव्यापी आन्दोलनकारी जत्थों में भाग लिया। इसके लिए उन्हें 15 बैंतों की सजा दी गई। हर बैंत पडने पर उसने श्भारत माता की जय्य और के नारे लगाए। उस समय वे मात्र पन्द्रह वर्ष के थे। सन् 1922 में गाँधी जी द्वारा चौरा-चौरी की घटना के बाद एकाएक असहयोग आन्दोलन वापिस लेने पर क्रांतिकारी चन्द्रशेखर वैचारिक तौरपर उग्र हो उठे और उन्होंने क्रांतिकारी राह चुनने का फैसला कर लिया। उसने सन् 1924 में पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल, शचीन्द्रनाथ सान्याल, योगेशचन्द्र चटर्जी आदि क्रांतिकारियों द्वारा गठित श्हिन्दुस्तान रिपब्लिकल एसोसिएशन्य (हिन्दुस्तान प्रजातांत्रिक संघ) की सदस्यता ले ली।यह सभी क्रांतिकारी भूखे-प्यासे रहकर क्रांतिकारी गतिविधियों में दिनरात लगे रहते।
         इसी दौरान क्रांतिकारियों ने बनारस के मोहल्ले में 'कल्याण आश्रम' नामक मकान में अपना अड्डा स्थापित कर लिया। उन्होंने अंग्रेजी सरकार को धोखा देने के लिए आश्रम के बाहरी हिस्से में तबला, हारमोनियम, सारंगी आदि वाद्ययंत्र लटका दिए। एक दिन रामकृष्ण खत्री नामक साधू ने बताया कि गाजीपुर में एक महन्त हैं और वे मरणासन्न हैं। उसकी बहुत बड़ी गद्दी है और उसके पास भारी संख्या में धन है। उसे किसी ऐसे योग्य शिष्य की आवश्यकता है, जो उसके पीछे गद्दी को संभाल सके। यदि तुममें से ऐसे शिष्य की भूमिका निभा दे तो तुम्हारी आर्थिक समस्या हल हो सकती है। काफी विचार-विमर्श के बाद इस काम के लिए चन्द्रशेखर आजाद को चुना गया। चन्द्रशेखर न चाहते हुए भी महन्त के शिष्य बनने के लिए गाजीपुर रवाना हो गए। चन्द्रशेखर के ओजस्वी विचारों एवं उसके तेज ने महन्त को प्रभाव में ले लिया और उन्हें अपना शिष्य बना लिया। चन्द्रशेखर मन लगाकर महन्त की सेवा करने और महन्त के स्वर्गवास की बाट जोहने लगे। लेकिन, जल्द ही आजाद किस्म की प्रवृति के चन्द्रशेखर जल्दी ही कुढ़ गए। क्योंकि उनकी सेवा से मरणासन्न महन्त पुनरू हृष्ट-पुष्ट होते चले गए। चन्द्रशेखर ने किसी तरह दो महीने काटे। उसके बाद उन्होंने अपने क्रांतिकारी साथियों को पत्र लिखकर यहां से मुक्त करवाने के लिए आग्रह किया। लेकिन, मित्रों ने उनके आग्रह को ठुकरा दिया। चन्द्रशेखर ने मन मसोसकर कुछ समय और महन्त की सेवा की और फिर धन पाने की लालसाओं और संभावनाओं पर पूर्ण विराम लगाकर एक दिन वहां से खिसक लिए।
          इसके बाद उन्होंने पुन: अंग्रेजी सरकार के खिलाफ सक्रिय भूमिका निभानी शुरू कर दी। उन्होंने एक शीर्ष संगठनकर्ता के रूप में अपनी पहचान बनाई। वे अपने क्रांतिकारी दल की नीतियों एवं उद्देश्यों का प्रचार-प्रसार के लिए पर्चे-पम्फलेट छपवाते और लोगों में बंटवाते। इसके साथ ही उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं की मदद से सार्वजनिक स्थानों पर भी अपने पर्चे व पम्पलेट चस्पा कर दिए। इससे अंग्रेजी सरकार बौखला उठी। उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर श्हिन्दुस्तान रिपब्लिकल एसोसिएशन्य के बैनर तले राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में 9 अगस्त, 1925 को काकोरी के रेलवे स्टेशन पर कलकत्ता मेल के सरकारी खजाने को लूट लिया। यह लूट अंग्रेजी सरकार को सीधे और खुली चुनौती थी। परिणामस्वरूप सरकार उनके पीछे हाथ धोकर पड़ गई। गुप्तचर विभाग क्रांतिकारियों को पकड़े के लिए सक्रिय हो उठा और 25 अगस्त तक लगभग सभी क्रांतिकारियों को पकड़ लिया गया। लेकिन, चन्द्रशेखर आजाद हाथ नहीं आए। गिरफ्तार क्रांतिकारियों पर औपचारिक मुकदमें चले। 17 दिसम्बर, 1927 को राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी और दो दिन बाद 19 दिसम्बर को पण्डित रामप्रसाद बिस्मिल, अफशफाक उल्ला खां, रोशन सिंह आदि शीर्ष क्रांतिकारियों को फांसी पर लटका दिया गया। इसके बाद सन् 1928 में चन्द्रशेखर ने 'एसोसिएश' के मुख्य सेनापति की बागडोर संभाली।
           चन्द्रशेखर आजाद अपने स्वभाव के अनुसार अंग्रेजी सरकार के खिलाफ क्रांतिकारी गतिविधियों को बखूबी अंजाम देते रहे। वे अंग्रेजी सरकार के लिए बहुत बड़ी चिन्ता और चुनती बन चुके थे। अंग्रेजी सरकार किसी भी कीमत पर चन्द्रशेखर को गिरफ्तार कर लेना चाहती थी। इसके लिए पुलिस ने एड़ी चोटी का जोर लगा दिया। पुलिस के अत्यन्त आक्रमक रूख को देखते हुए और उसका ध्यान बंटाने के लिए चन्द्रशेखर आजाद झांसी के पास बुन्देलखण्ड के जंगलों में आकर रहने लगे और दिनरात निशानेबाजी का अभ्यास करने लगे। जब उनका जी भर गया तो वे पास के टिमरपुरा गाँव में ब्रह्मचारी का वेश बनाकर रहने लगे। गाँव के जमींदार को अपने प्रभाव में लेकर उन्होंने अपने साथियों को भी वहीं बुलवा लिया। भनक लगते ही पुलिस गाँव में आई तो उन्होंने अपने साथियों को तो कहीं और भेज दिया और स्वयं पुलिस को चकमा देते हुए मुम्बई पहुंच गए। वे मुम्बई आकर क्रांतिकारियों के शीर्ष नेता दामोदर वीर सावरकर से मिले और साला हाल कह सुनाया। सावरकर ने अपने ओजस्वी भाषण से चन्द्रशेखर को प्रभावित कर दिया। यहीं पर उनकी मुलाकात सरदार भगत सिंह से हुई। कुछ समय बाद वे कानपुर में क्रांतिकारियों के प्रसिद्ध नेता गणेश शंकर विद्यार्थी के यहां पहुंचे। विद्यार्थी जी ने उन तीनों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया। यहां पर भी पुलिस ने उन्हें घेरने की भरसक कोशिश की। इसके चलते चन्द्रशेखर यहां से भेष बदलकर पुलिस को चकमा देते हुए दिल्ली जा पहुंचे।
          दिल्ली पहुंचने के बाद वे मथुरा रोड़ पर स्थित पुराने किले के खण्डहरों में आयोजित युवा क्रांतिकारियों की सभा में शामिल हुए। अंग्रेज सरकार ने चन्द्रशेखर को गिरफ्तार करने के लिए विशेष तौरपर एक खुंखार व कट्टर पुलिस अधिकारी तसद्दुक हुसैन को नियुक्त कर रखा था। वह चन्द्रशेखर की तलाश में दिनरात मारा-मारा फिरता रहता था। जब उसे इस सभा में चन्द्रशेखर के शामिल होने की भनक लगी तो उसने अपना अभेद्य जाल बिछा दिया। वेश बदलने की कला में सिद्धहस्त हो चुके चन्द्रशेखर यहां भी वेश बदलकर पुलिस को चकमा देते हुए दिल्ली से कानपुर पहुंच गए। यहां पर उन्होंने भगत सिंह व राजगुरू के साथ मिलकर अंग्रेज अधिकारियों के वेश में अंग्रेजों के पिठ्ठू सेठ दलसुख राय से 25000 रूपये ऐंठे और चलते बने।
        जब 3 फरवरी, 1928 को भारतीय हितों पर कुठाराघात करके इंग्लैण्ड सरकार ने साईमन की अध्यक्षता में एक कमीशन भेजा। साईमन कमीशन यह तय करने के लिए आया था कि भारतवासियों को किस प्रकार का स्वराज्य मिलना चाहिए। इस दल में किसी भी भारतीय के न होने के कारण 'साईमन कमीशन' का लाला लाजपतराय के नेतृत्व में राष्ट्रव्यापी कड़ा विरोध किया गया। अंग्रेजी सरकार ने लाला जी सहित सभी आन्दोलनकारियों पर ताबड़तोड़ पुलिसिया कहर बरपा दिया और पुलिस की लाठियों का शिकार होकर लाला जी देश के लिए शहीद हो गए। बाद में चन्द्रशेखर आजाद, सरदार भगत सिंह व राजगुरू आदि क्रांतिकारियों ने लाला जी की मौत का उत्तरदायी साण्डर्स माना और उन्होंने उसको 17 दिसम्बर, 1928 को मौत के घाट उतारकर लाल जी की मौत का प्रतिशोध पूरा किया।
        सांडर्स की हत्या के बाद अंग्रेजी सरकार में जबरदस्त खलबली मच गई। कदम-कदम पर पुलिस का अभेद्य जाल बिछा दिया गया। इसके बावजूद चन्द्रशेखर आजाद अपने साथियों के साथ पंजाब से साहब, मेम व कुली का वेश बनाकर आसानी से निकल गए। इसके बाद इन क्रांतिकारियों ने गुंगी बहरी सरकार को जगाने के लिए असैम्बली में बम फेंकने के लिए योजना बनाई और इसके लिए काफी बहस और विचार-विमर्श के बाद सरदार भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को चुना गया। 8 अपै्रल, 1929 को असैम्बली में बम धमाके के बाद इन क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया और मुकदमें की औपचारिकता पूरी करते हुए 23 मार्च, 1931 को सरदार भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को बम काण्ड के मुख्य अपराधी करार देकर, उन्हें फांसी की सजा दे दी गई।
        इस दौरान चन्द्रशेखर आजाद ने अपने क्रांतिकारी दल का बखूबी संचालन किया। आर्थिक समस्याओं के हल के लिए भी काफी गंभीर प्रयास किए। पैसे की बचत पर भी खूब जोर दिया। इन्हीं सब प्रयासों के चलते दल की तरफ से सेठ के पास आठ हजार रूपये जमा हो चुके थे। चन्द्रशेखर ने सेठ को आगामी गतिविधियों के लिए यही पैसा लाने कि लिए इलाहाबाद के अलफ्रेड पार्क में बुलाया। इसी बीच चन्द्रशेखर के दल के सदस्य वीरभद्र तिवारी को अंग्रेज सरकार ने चन्द्रशेखर को पकड़वाने के लिए दस हजार रूपये और कई तरह के अन्य प्रलोभन देकर खरीद लिया। जब 27 फरवरी, 1931 को चन्द्रशेखर सेठ से पैसे लेने के लिए निर्धारित स्थान अलफ्रेड पार्क में पहुंचे तो विश्वासघाती वीरभद्र तिवारी की बदौलत पुलिस ने पार्क को चारों तरफ से घेर लिया। उस समय चन्द्रशेखर अपने मित्र सुखदेव राज से आगामी गतिविधियों के बारे में योजना बना रहे थे। चन्द्रशेखर ने सुखदेव राज को पुलिस की गोलियों से बचाकर वहां से भगा दिया। उसने अकेले मोर्चा संभाला और पुलिस का डटकर मुकाबला किया।
        एक तरफ अकेला शूरवीर चन्द्रशेखर आजाद था और दूसरी तरफ पुलिस कप्तान बाबर के नेतृत्व में 80 अत्याधुनिक हथियारों से लैस पुलिसकर्मी। फिर भी काफी समय तक अकेले चन्द्रशेखर ने पुलिस के छक्के छुड़ाए रखे। अंत में चन्द्रशेखर के कारतूस समाप्त हो गए। सदैव आजाद रहने की प्रवृति के चलते उन्होंने निश्चय किया कि वो पुलिस के हाथ नहीं आएगा और आजाद ही रहेगा। इसके साथ ही उन्होंने बचाकर रखे अपने आखिरी कारतूस को स्वयं ही अपनी कनपटी के पार कर दिया और भारत माँ के लिए कुर्बान होने वाले शहीदों की सूची में स्वर्णिम अक्षरों में अपना नाम अंकित कर दिया।


        इस तरह से 25 साल का यह बांका नौवान भारत माँ की आजादी की बलिवेदी पर शहीद हो गया। यह देश हमेशा उनका ऋणी रहेगा। भारत माँ के इस वीर सपूत और क्रांतिकारियों के सरताज को कोटि-कोटि नमन है।