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सोमवार, 23 मार्च 2015

एक खुला पत्र सरदार भगत सिंह के नाम / राजेश कश्यप

बदले नहीं हालात...इसीलिए, पांच साल बाद, एक बार फिर वही... 

एक खुला पत्र सरदार भगत सिंह के नाम / राजेश कश्यप

सरदार भगत सिंह
परम श्रद्धेय भाई सरदार भगत सिंह जी, वन्देमातरम् !!!
             आशा  ही नहीं, अपितु पूर्ण विश्वास  है कि आप जहाँ भी होंगे, बहुत दु:खी होंगे। क्योंकि आपकी आत्मा कभी स्वतंत्र  नहीं रही होगी। आपको पहले ही पता था कि इस कुर्बानी के बाद देश  तो आजाद हो जाएगा, लेकिन इसके बाद यह अपनों का गुलाम हो जाएगा। अपनों की गुलामी दूर करने के लिए उसे स्वयं दोबारा आना होगा। इस कसक और तड़प ने आपकी आत्मा को बैचेन बनाए रखा होगा। लेकिन भाई भगत, मुझे बड़ी हैरानी हो रही है कि जो लाल अपनी भारत माँ को कष्टों में देखकर जिन्दगी में एक पल भी चैन से नहीं बैठा, वही लाल छह दशक से कहाँ छिपा बैठा है?

            भाई जी...अब तो अपने वतन लौट आओ। आज देश  को फिर आपकी जरूरत है। देश  एक बार फिर गुलामी की बेड़ियों में...हाँ..हाँ...हाँ...गुलामी की बेड़ियों में जकड़ता चला जा रहा है। पहले तो सिर्फ अंग्रेजों की राजनीतिक रूप में गुलामी थी। लेकिन आज तो पता नहीं कितनी तरह की गुलामी हो गई है? हम स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस आदि राष्ट्रीय त्यौहारों एवं अन्य धार्मिक त्यौहारों को भी संगीनों के साये में मनाने को मजबूर हैं, कि कहीं कोई आतंकवादी हमला न हो जाए अथवा कहीं कोई बम बगैरह न फट जाए? आपको आ’चर्य हो रहा होगा न! एक वो दिन था जब गोलियों की बौछारों,लाठियों की मारों और तोपों की गर्जनाओं की गर्जनाओं के बीच वन्देमातरम्...भारत माता की जय...इंकलाब-जिन्दाबाद आदि के उद्घोषों  के बीच बड़े गर्व के साथ सरेआम झण्डा फहराया जाता है और आज? गणतंत्र दिवस परेड और स्वतंत्रता दिवस पर ध्वजारोहण की औपचारिकता आतंकवाद के भय के चलते भयंकर सुरक्षा बंदोबस्तों के बीच डरते हुए स्कूलों के पचास-सौ छोटे-छोटे मासूम बच्चों को पी.टी. परेड में इक्कठा करके पूरी की जाती है। कहाँ गया वो जन-सैलाब और वो समय जब देशभक्ति के नारों को उद्घोषित करता आम आदमी भी दिल्ली के लालकिले की प्राचीर पर राष्ट्रीय दिवस मनाने पहुँचता था?

            आश्चर्य में मत पड़िए भगत जी! वो आम आदमी आज भी जिन्दा है, लेकिन अपनों के खौफ के साये में कहीं किसी कोने में छुपने को मजबूर है। यहाँ पर सुरक्षा के नाम पर कपड़े तक उतार लिए जाते हैं। और तो और हमारे देश  के सर्वोच्च प्रतिनिधि भी देश -विदेश  में गाहे-बगाहे सुरक्षा के नाम पर स्वयं अपने कपड़े तक उतरवा चुके हैं और उतरवा भी रहे हैं। जब हमारे कर्णधारों का ये हाल है तो भला आम आदमी की क्या बिसात! उसे तो बिना किसी बात के भी सरेआम नंगा होना पड़ता है।

            आजादी के बाद अपने ही सत्तासीन  लोग अपनी ही भारत माँ का ‘चीर-हरण’ कर रहे हैं। भय, भूख, भ्रष्टाचार, अत्याचार आदि का बोलबाला है। देश  की 80 प्रतिशत जनता मात्र 20 रूपये प्रतिदिन की आमदनी में गुजारा करने को मजबूर है। शेष 20 प्रतिशत मलाईखोर लोग हवाले-घोटाले करने में मशगूल हैं। विश्व  बैंक कहता है कि भारत में 70 प्रतिशत लोग गरीबी की रेखा के नीचे हैं और हमारे अपने लोग इसे सिर्फ25-26 प्रतिशत ही बता रही है। देश  का कई हजार खरब रूपया काले धन के रूप में विदेशी  बैंकों में जमा पड़ा है और यहाँ की अस्सी फीसदी जनता रोटी, कपड़े और मकान जैसी मूलभूत सुविधाओं के अभाव में जीने को लाचार है।

            आज किसी को देशभक्ति याद नहीं है। यदि याद है तो सिर्फ पापी पेट के लिए रोटी का जुगाड़ करना। यह जुगाड़ चाहे ईमानदारी से हो या फिर लूटमार अथवा बेईमानी से। फिरौती, लूट, हत्या, बलात्कार, डकैती, धोखाधड़ी, चोरी, मिलावट, छीना-झपटी, झूठ, फरेब, ढोंग, झूठा तमाशा, काला धन्धा....भला ऐसा क्या आपराधिक कार्य नहीं हो रहा है इस देश  में जो अपराध तंत्र से जुड़ा न हो? ‘अन्धा बाँटे-रेवड़ी, अपनों-अपनों को दे’ की तर्ज पर जिसकी सत्ता में कोई पहुँच है अथवा कोई सिफारिश  है या फिर पैसा है या फिर वोटरों की बड़ी संख्या मुठ्ठी में है...केवल उन्ही को ही नौकरी अथवा किसी तरह का कोई सत्ता-सुख का अंश नसीब हो पाता है। अंगे्रजी काल में  शिक्षा  पाकर नौजवान ‘पढ़े-लिखे क्लर्क’ बनते थे और आज शिक्षा  पाकर पढ़े-लिखे नौजवान बेरोजगार अथवा अपराधी बन रहे हैं।

            भाई भगत बहुत दु:ख की बात यह भी है कि हमारे नौजवान भी अपने पथ से भटक से गए हैं। उसे प’िचमी जगत की चकाचौंध ने पागल कर दिया है। एक वो समय था जब ‘स्वदेश’ के नाम पर सभी कीमती विदेशी चीजों की सरेआम होली जलाई गई थी, वहीं आज हर चीज विदेशी हो गई है। यहाँ तक की खाना-पीना, ओढ़ना-पहनना, घूमना-फिरना, उठना-बैठना, गाना-बजाना, खेलना-कूदना, पढ़ना-लिखना, सोचना-समझना आदि सब भी! अधिकतर लड़के-लड़कियाँ जाते हैं अपना कैरियर बनाने स्कूल या कॉलेज में और पहुँचते हैं शानदार फाईव स्टार होटलों में मौजमस्ती और अय्याशी  करने। अपने परिवार, खानदान व भविष्य के प्रति एकदम लापरवाह होकर न जाने कितने नशों  में हो रहे हैं चूर! सती, सावित्रि, सीता, अनसूइया आदि के देश  में आज कालगल्र्स, सेक्सवक्र्स आदि का ही कोई छोर नहीं है। जहाँ शिक्षार्थियों  के बस्तों में देशभक्ति से ओतप्रोत साहित्य होता था आज पोर्न (ब्लयू) फिल्मों का साहित्य व सीडियाँ जमा पड़ा है। टी.वी. व सिनेमा सरेआम सैक्स एवं अश्लीलता  घर-घर परोस रहा है। गलत राह पर चल कर जवान अपनी जवानी पानी की तरह बहा रहे हैं और आधे से अधिक सेना की भर्ती के लिए होने वाली दौड़ में ही बाहर हो रहे हैं। भगत जी...परेशान मत होइये!! ये तो सिर्फ समस्या की बानगी भर है!!!

            आप न्याय व्यवस्था की तो धज्जियाँ उड़ रही हैं। झूठे व मक्कार लोग पैसे, शोहरत, बाहुबल के दम पर कानून की देवी को अपनी कठपुतली बनाए हुए हैं। गरीब आदमी के लिए न्याय दूर की कौड़ी बन गया है। गा्रम पंचायतों में भी दंबगों और ऊँची  पहुँच वालों की ही चलती है। यदि कोई सीदा-सादा व भोला-भाला आदकी सच्चाई व न्याय की बात करे तो सबको अखरती है। आज इस देश  में सच्चाई व न्याय के रास्ते पर चलने वाले व्यक्ति को या तो मौत के घाट उतार दिया जाता है या फिर अनगिनत धाराओं के तहत झूठे मुकदमों में फंसाकर तिल-तिल मरने को मजबूर कर दिया जाता है। अपराधों, भ्रष्टाचारों में लिप्त दबंग लोग चुनाव लड़ते हैं और संसद की कुर्सियों का बोझ बनते हैं। विभिन्न पार्टियों के रूप में ये लोग बारी-बारी से आते हैं और जनता की आँखों में धूल झोंककर  पाँच साल देश  में लूट मचाकर चले जाते हैं। आज कोई भी आदर्श  नेता हमारे देश  में रहा ही नहीं है...भला इससे बढ़कर देश का क्या दुर्भाग्य होगा?

            भाई भगत सिंह, मैं माफी चाहता हूँ कि इस दु:ख भरे पत्र को और भी लंबा करता ही चला जा रहा हूँ। मैं इसे और लंबा नहीं करूंगा। मैंने आपको सिर्फ इशारा  भर किया है। यदि इस पत्र के माध्यम से मेरी भावना आप तक पहुँच जाए तो मेहरबानी करके इस देश  की तरफ एक बार जरूर देखना! भाई जी नहीं...कल देखना!! क्योंकि आज तो बहुत सारे मदारी, नट, कलाकार, अभिनेता, स्वाँगी आदि लोग बड़े-बड़े चमकदारों बैनरों के साथ आपकी सहादत को सलाम करते हुए, देशभक्ति के राग अलापते हुए, चौराहों पर खड़ी जर्जर आपकी प्रतिमाओं पर हार पहनाते, आपके नाम पर रक्तदान शिविर  लगाते, चर्चा-संगोष्ठि या सेमीनार करते, झूठे पे्रस नोट जारी करते और देशभक्ति के झूठे मुखौटे लगाते हुए ही नजर आ सकते हैं। कृपा इस पत्र पर अमल करते हुए आप कल ही हिन्दुस्तान पर नजर डालना और नजर डालने के बाद अत्यन्त दु:खी हो जाओ तो मुझे गाली मत देना, कि आपको यह सब लिखकर बताने का आज ही मौका मिला है? अरे भाई जी, लिखना तो बहुत पहले चाहता था, लेकिन कहीं कोई मुझे पागल करार न दे दे, इसलिए नहीं लिखा। लेकिन आज सब चिन्ताओं एवं भ्रमों को दूर करके यह पत्र लिखने का साहस जुटा पाया हूँ। इस पत्र के बारे में कोई भी चाहे कुछ कहे, अब मुझे कोई परवाह नहीं। यह पत्र लिखने के बाद यदि मुझे एक व्यक्ति की भी शाबासी या हौंसला मिला तो भाई मैं समझूँगा कि कहीं किसी कोने में आज भी कोई भगत सिंह जिन्दा है!!! भाई जी, यदि आप अब तक इस दोबारा इस देश  में नहीं आये हो तो मेहरबानी करके जल्दी से जल्दी जरूर आ जाओ....क्योंकि ये देश  तुम्हें चीख-चीखकर पुकार रहा है। हाँ...इस बार एक रूप में मत आना! क्योंकि समस्याएँ अब एक नहीं अनेक हो गई हैं। इसलिए मेरी राय तो यह है कि आप अपनी आत्मा को आज की नौजवान पीढ़ी की आत्माओं में अंशों  के रूप में आत्मसात कर दो ताकि अनेक भगत सिंह, अनेक रूपों में, अनेक समस्याओं से लड़ सकें और अपनी भारत माता को अपनों व अपनों के दर्द को जल्द से जल्द दूर कर सकें। जब आप नौजवानों में आ जाओ तो कृपया पत्र का जवाब तो जरूर देना।

अच्छा अब जयहिन्द और नमस्ते। इन्कलाब-जिन्दाबाद।। भारत माता की जय।।।

आपका स्नेहाकांक्षी,

-राजेश कश्यप 

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