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शनिवार, 21 मार्च 2015

देहात-रत्न : चौधरी मातूराम

 देहात-रत्न : चौधरी मातूराम
-राजेश कश्यप
चौधरी मातूराम
         हरियाणा के रोहतक जिले में बसा साँघी गाँव एक ऐतिहासिक गाँव है। साँघी गाँव में कई महान शख्सियतों ने जन्म लिया है। जैलदार चौधरी बख्तावर सिंह का कुल इसी गाँव से जुड़ा हुआ है। जैलदार बख्तावर सिंह के घर श्रीमती मामकौर की कोख से देहात-रत्न चौधरी मातूराम का जन्म हुआ। चौधरी मातूराम बेहद संघर्षशील व्यक्तित्व के धनी थे। पिता चौधरी बख्तावर सिंह का अकस्मात्  स्वर्गवास हो जाने के पश्चात् अल्पायु में ही चौधरी मातूराम ने पारिवारिक एवं सामाजिक दायित्वों को कुशलतापूर्वक निभाया। वे अपनी काबिलयत के बल पर अपने पिता स्व. चौधरी बख्तावर सिंह की भांति नंबरदार से जैलदार जैसे प्रतिष्ठित पद तक पहुँचे । उन्हें पहले 1.12.1991 को  नम्बरदार, फिर 16.06.1892 को आला नम्बरदार और इसके बाद 6.11.1894 को सांघी जैल का जैलदार बनाया गया।
          राष्ट्रीय स्वतंत्रता की अमिट कसक रखने वाले चौधरी मातूराम ने 23 वर्ष की युवावस्था से ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कार्यक्रमों, जलसों, सभाओं एवं आन्दोलनों में सक्रिय भागीदारी करने लगे थे। वे तत्कालीन पंजाब के ऐसे अग्रणीय देहाती नेता थे, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम की ज्वाला को गाँव के हर चूल्हे तक पहुँचाने का अद्भूत पराक्रम कर दिखाया था।
          लाला लाजपतराय, लाला मुरलीधर, सरदार अजीत सिंह (शहीदे-आज़म भगत सिंह के चाचा), खान अब्दूल गफ्फार खाँ, चौधरी छोटूराम, पंडित मोती लाल नेहरू, ठाकूर भार्गवदास, स्वामी श्रद्धानंद जैसे अनेक जुझारू स्वतंत्रता सेनानियों के साथ चौधरी मातूराम के मैत्री एवं पारिवारिक घनिष्ठ संबंध स्थापित हो गये थे। उनके राष्ट्रीय नेताओं के साथ बने प्रगाढ़ संबंधों का सहज अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब भी कोई नेता रोहतक आता तो वह साँघी गाँव में आपके साथ जरूर ठहरता। सन् 1905-07 की समयावधि में जुझारू किसान आन्दोलन चलाकर 'काले पानी' की सजा पाने वाले महान् क्रांतिकारी लाला लाजपत राय एवं सरदार अजीत सिंह रोहतक आए तो वे भी आपके साथ गाँव साँघी में ही ठहरे।
          स्वतंत्रता संग्राम की सभी गतिविधियों में चौधरी मातूराम की सशक्त एवं सक्रिय भागीदारी ने अंग्रेजी सरकार को अत्यन्त भयभीत करके रख दिया। परिणामस्वरूप सरकार ने उन्हें 4.05.1907  को (लगभग 11 साल बाद) जैलदारी के पाद से हटाकर अपनी ख़ीज निकाली। केवल इतना ही नहीं उनकी सक्रिय क्रांतिकारी गतिविधियों से घबराकर सन् 1914 में तत्कालीन ले.गर्वनर इबटसन ने उन्हें 'काला-पानी' (अण्डेमान जेल) भेजने की संस्तुति की। लेकिन, इससे जनता में उठने वाले संभावित आक्रोश को भांपकर अंग्रेजी सरकार को अपने इस कदम को वापिस हटाने के लिए बाध्य होना पड़ा। इसका उनपर तनिक भी असर नहीं पड़ा, उलटे आप स्वतंत्रता आन्दोलन में और भी उग्र होते चले गये।
          चौधरी मातूराम ने जब आर्य समाज के मूल प्रकाश-पुुुंज 'सत्यार्थ-प्रकाश' का गहन अध्ययन किया तो उसी के ज्ञान-सागर में स्वयं को स्थापित कर लिया और उन्होंने समाज में व्याप्त कुटिल रूढिय़ों एवं अंधविष्वासों को ध्वस्त करते हुये 'जनेऊ' (यज्ञोपवित) धारण किया। रूढि़वादी एवं अंधविश्वासी असामाजिक तत्वों ने अपने ओछेपन का प्रदर्शन करते हुए काशी के पुरोहित को बुलाया और पंचायत बैठाई। जब पंचायत में काशी के पुरोहित ने जाटों को शुद्र बताते हुए व चौधरी साहब के 'जनेऊ' ग्रहण करने को अधर्म की संज्ञा देते हुए उसे उतारने का फरमान सुनाया तो नौजवान मातूराम का खून खौल उठा और दो टूक जवाब दिया, 'जनेऊ किसी कीकर के डाहले पर नहीं टंगा है, जिसे कोई भी उतार ले। मेरी गर्दन पर है, भाईयों के सामने गर्दन हाजिर है, इसे काट दो, जनेऊ अपने आप उतर जायेगा।' इस जवाब से चकराये पुरोहित ने पैंतरा बदलते हुये कहा, 'इनको जाति से बाहर करके हुक्का-पानी बंद कर दो।' इसके जवाब में  चौधरी मातूराम ने कहा, 'मैं तो किसी के घर बिना बुलाये जाता ही नहीं हूँ, उन्हीं के घर जाता हूँ जो घोड़ी की लगाम पकडक़र घोड़ी से उतरने के लिये कहते हैं और स्वागत करते हैं।' इसपर खिडवाली की पंचायत बिखर गई। चौधरी मातूराम जी के आर्य समाजी हाने के अटल व दृढ़ निश्चय ने न केवल ढ़ोंगी व पोगा-पंथियों को सबक सिखाया, अपितु समाज-सुधार आन्दोलन को एक नई दिशा प्रदान की।
          आर्य समाज को ग्रहण करने के बाद चौधरी मातूराम ने समाज में व्याप्त जाति-पाति, ऊंच-नीच, छुआछूत आदि बुराईयों को दूर करने व शिक्षा का अलौकिक प्रकाश फैलाने का ऐसा जोरदार अभियान चलाया कि लोगों ने उन्हें सहज भाव से ही 'देहात-रत्न' के नाम से अलंकृत कर दिया। चौधरी मातूराम ने आर्य समाज के अछूतोद्धार का प्रारंभ गाँव धामड़, जिला रोहतक में जुलाहों के घरों में उन्हीं के हाथों बनाया हुआ खाना खाकर किया। इसके बाद तो आप सबके लिए आदर्श आर्यसमाजी बनते चले गये। 
         7 मार्च, 1911 को बरोणा, जिला रोहतक में समाज-सुधार के लिए महापंचायत हुई, जिसमें विभिन्न खापों के 50,000 प्रतिनिधि शामिल हुये। महापंचायत ने समाज सुधार के लिये 28 प्रस्ताव पास किए। इस महापंचायत के आयोजन में चौधरी मातूराम ने सक्रिय भूमिका के साथ-साथ प्रबंधन में हाथ बंटाया।
          चौधरी मातूराम एक व्यक्ति नहीं, बल्कि बहुत बड़ी संस्था थे। उन्होंने शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए अपना अनूठा योगदान दिया। उन्होंने 'जाट-एंग्लो हाई स्कूल, रोहतक' की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसके फलस्वरूप आपको संस्थापक प्रधान बनाया गया। इसके अलावा उनके गुरूकुल भैंसवालकलां के निर्माण और आर्य कन्या पाठशाला, साँघी, खरखौदा व खरैन्टी आदि के खुलवाने में दिये गये योगदान को भी कभी नहीं भुलाया जा सकता।
          चौधरी मातूराम देहाती समाज के लिये आदर्श-महापुरूष थे। उनके एक इशारे पर देहाती समाज टूट पड़ता था। स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान 16 फरवरी, 1921 को महात्मा गाँधी रोहतक पधारे तो चौधरी मातू राम की अध्यक्षता में आयोजित जनसभा में 25000 से अधिक लोगों ने भाग लिया। आपकी प्रतिष्ठित छवि को गाँधी जी ने भी सराहा।
          चौधरी मातूराम का राजनीतिक जीवन भी बड़ी उच्चकोटि का रहा। वे सिद्धान्तों एवं मूल्यों की निष्पक्ष, निर्लेप व स्वच्छ राजनीति करते थे। आप रोहतक जिले में कांग्रेस पार्टी के संस्थापकों में रहे और रोहतक जिले के प्रधान पद पर भी सुशोभित हुये। वे जिला बोर्ड के सदस्य भी बने। उन्होंने 1923 में विधान परिषद का चुनाव लड़ा, लेकिन चुनावी-धांधली के चलते हार गये। धांधली के खिलाफ  उन्होंने चुनाव-याचिका फाईल की। न्यायालय में धांधली साबित हुई। अदालत ने न केवल चुनाव रद्द किया, अपितु, जुर्माना भी किया। उन्होंने ईमानदारी एवं न्यायिक भावना का परिचय देते हुये वह जुर्माना राशि न लेने का निश्चय किया। 
         महान् स्वतंत्रता सेनानी, परम् देशभक्त, सच्चे आर्य समाजी, राष्ट्रीयता के अग्रदूत, देहात-रत्न चौधरी मातूराम आर्य ने आजीवन राजनीतिक, सामाजिक एवं शैक्षणिक आदि हर क्षेत्र में अपना अनूठा एवं अनुकरणीय योगदान दिया। 14 जुलाई, 1942 को लंबी बीमारी के बाद उनका निधन हो गया।
 
-राजेश कश्यप
स्वतंत्र पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक।
मोबाईल नं. 9416629889

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