विशेष सूचना एवं निवेदन:

मीडिया से जुड़े बन्धुओं सादर नमस्कार ! यदि आपको मेरी कोई भी लिखित सामग्री, लेख अथवा जानकारी पसन्द आती है और आप उसे अपने समाचार पत्र, पत्रिका, टी.वी., वेबसाईटस, रिसर्च पेपर अथवा अन्य कहीं भी इस्तेमाल करना चाहते हैं तो सम्पर्क करें :rajeshtitoli@gmail.com अथवा मोबाईल नं. 09416629889. अथवा (RAJESH KASHYAP, Freelance Journalist, H.No. 1229, Near Shiva Temple, V.& P.O. Titoli, Distt. Rohtak (Haryana)-124005) पर जरूर प्रेषित करें। धन्यवाद।

बुधवार, 1 अप्रैल 2015

नारी अस्मिता के प्रति अमर्यादित जनप्रतिनिधि!

विडम्बना

नारी अस्मिता के प्रति अमर्यादित जनप्रतिनिधि!
-राजेश कश्यप

           इक्कीसवीं सदी में भी नारी अपनी अस्मिता एवं सम्मान को बचाने के लिए संघर्षरत है। अनेक रूढिय़ों, वर्जनाओं और भारी भेदभावों की मजबूत सामाजिक दीवारों को तोडक़र निरन्तर आगे बढ़ रही नारी सडक़ से लेकर संसद तक पहुँच चुकी है और नित नए आयाम हासिल कर रही है। लेकिन, दुनिया की आधी आबादी के प्रति आज भी पुरूष की संकीर्ण मानसिकता जस की तस बनी हुई है। सबसे बड़ी विडम्बना का विषय तो यह है कि देश के जनप्रतिनिधि भी इससे अछूते नहीं हैं। आए दिन कोई न कोई नेता नारी के प्रति अनैतिक, अव्यवहारिक और अमर्यादित टिप्पणी कर बैठता है, जिससे नारी अस्मिता को गहरी चोट पहुँचती है। ताजा मामला गोवा का सुर्खियों में आया है। अपनी मांगों को लेकर कई दिनों से हड़ताल पर बैठी नर्सों ने आरोप लगाया है कि जब वे अपनी मांगों को लेकर गोवा के मुख्यमंत्री लक्ष्मीकांत पारसेकर से मिलीं तो मुख्यमंत्री ने उन्हें कहा कि लड़कियों को धूप में बैठकर भूख हड़ताल नहीं करनी चाहिये, इससे उनका रंग काला होगा और अच्छा दूल्हा मिलने में दिक्कत आयेगी। किसी प्रदेश के मुखिया द्वारा इस तरह की टिप्पणी करना, क्या इंगित करता है, इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है।
          इससे पहले हाल ही में समाप्त हुये राज्यसभा सत्र के आदर्श सांसद का सम्मान हासिल कर चुके जेडीयू नेता शरद यादव ने दक्षिण भारत की महिलाओं के सांवलेपन पर बेतुकी एवं अमर्यादित टिप्पणी करते हुए कहा कि 'साउथ की महिला जितनी ज्यादा खूबसूरत होती है, जितना ज्यादा उसका बॉडी...जो पूरा देखने में...यानी इतना हमारे यहां नहीं होती हैं...वह नृत्य जानती हैं...।' जब यादव ने यह टिप्पणी की तो राज्यसभा में बैठे अधिकतर जनप्रतिनिधि खिलखिलाकर नारी जाति की अस्मिता का चीरहरण करने में सहयोगी बन रहे थे। जब मानव संसाधन विकास मंत्री श्रीमती स्मृति इरानी ने ऐतराज जताया तो शरद यादव दो कदम और आगे बढ़ गये और खेद जताने के बजाय उलटा तंज कस दिया कि 'मैं जानता हूँ कि आप क्या हैं!' इससे पहले भी शरद यादव इसी तरह नारी अस्मिता को अपमानित कर चुके हैं। जब संसद में पहली बार महिला आरक्षण विधेयक रखा गया था, तब उन्होंने कहा था कि 'क्या आप परकटी महिलाओं को संसद में लाना चाहते हैं?' वर्ष 2010 में महिला आरक्षण के सन्दर्भ में नारी अस्मिता से खिलवाड़ करने के मामले में सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव भी पीछे नहीं रहे थे। उन्होंने कहा था कि महिला आरक्षण बिल पास होने से संसद ऐसी महिलाओं से भर जायेगी, जिन्हें देखकर लोग सीटियां बजायेंगे। उन्होंने एक अन्य बयान में यहां तक कह डाला था कि बड़े घर की लड़कियां और महिलाएं ही ऊपर तक जा सकती हैं, क्योंकि उनमें आकर्षण होता है। इसलिए महिला आरक्षण बिल से ग्रामीण महिलाओं को कोई फायदा नहीं होगा। 
          देश के राष्ट्रीय समाचार चैनल एबीपी न्यूज की लाईव बहस के दौरान कांग्रेस सांसद संजय निरूपम भी नारी अस्मिता को ताक पर रख चुके हैं। वर्ष 2011 में हुए गुजरात और हिमाचल विधानसभा चुनावों के परिणामों के बाद जारी बहस के दौरान संजय निरूपम ने आपा खोते हुए भाजपा नेत्री श्रीमती स्मृति ईरानी पर अशोभनीय टिप्पणी करते हुए कह डाला कि 'कल तक टेलीविजन पर ठुमके लगा रहीं थीं, आज राजनीतिज्ञ बनकर घूम रही हैं आप! आपके संस्कार बहुत अच्छे हैं! शटअप, क्या करेक्टर है आपका?' समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने तो लोकसभा चुनावों के दौरान बलात्कारों के लिए महिलाओं को ही दोषी ठहराते हुए कह डाला था कि आज किसी के घर के जानवर को भी कोई जबरदस्ती नहीं ले जा सकता है। इसके साथ ही मुलायम ने यहां तक कह दिया कि लडक़े हैं, गलती हो जाती है। दिल्ली की निर्भया-काण्ड ने हर किसी को हिलाकर रख दिया था। राष्ट्रव्यापाी आक्रोश एवं आन्दोलन के दौरान राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के बेटे और कांगे्रस सांसद अभिजीत मुखर्जी ने विवादित बयान देते हुए कहा कि हर मुद्दे पर कैंडल मार्च करने का फैशन चल पड़ा है। लड़कियां दिन में सज धज कर कैंडल निकालती हैं और रात में डिस्को जाती हैं। इसी तरह मुंबई आतंकी हमले के बाद भाजपा नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने गैर-मर्यादित बयान देते हुए कहा कि कुछ महिलाएं लिपस्टिक पाउडर लगाकर क्या विरोध करेंगीं? 
          हरियाणा में कांगे्रस के प्रवक्ता धर्मवीर ने बलात्कार के लिए लड़कियों को ही दोषी ठहराते हुए कह दिया था कि नब्बे फीसदी मामलों में बलात्कार नहीं, बल्कि लड़कियां सहमति से संबंध बनाती हैं। तृणमूल कांगे्रस विधायक चिरंजीत भी बलात्कार मामले में विवादास्पद बयान देते हुए कह चुके हैं कि वारदात के लिए कुछ हद तक लड़कियां भी जिम्मेदार हैं, क्योंकि हर रोज उनकीं स्कर्ट छोटी हो रही हैं। बलात्कार के मामले में बेहद शर्मनाक बयान देते हुए भाजपा के वरिष्ठ नेता कैलाश विजयवर्गीय भी यहां तक कह चुके हैं कि औरतें अपनी सीमाएं लांघती हैं तो उन्हें दंड मिलना तय है। एक ही शब्द है, मर्यादा। मर्यादा का उल्लंघन होता है तो सीता हरण हो जाता है। लक्ष्मण रेखा हर व्यक्ति की खींची गई है। उस लक्ष्मण रेखा को कोई भी पार करेगा, तो रावण सामने बैठा है, वह सीता का हरण करके ले ही जायेगा। सीपीएम के वरिष्ठ नेता ने तो मर्यादा की सारी सीमाएं लांघते हुए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से यहां तक पूछ लिया था कि वह रेप के लिए कितना चार्ज लेंगी? 
          वर्ष, 2013 में कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने एक आम सभा में नारी अस्मिता को ताक पर रखकर स्वयं को राजनीति का पुराना जौहरी बताते हुए कह डाला कि मुझे पता है कि कौन फजी है और कौन सही है। इस क्षेत्र की सांसद मिनाक्षी नटराजन सौ टंच माल है। भाजपा सांसद राजपाल सैनी कह चुके हैं कि गृहणियों और स्कूली छात्राओं को मोबाइल फोन रखने की क्या जरूरत है? इससे बाहरी लोगों से उनकी जान-पहचान बढ़ती है और यौन अपराधों को बढ़ावा मिलता है। इसी तर्ज पर पिछले दिनों पांडिचेरी की सरकार ने स्कूलों में पढऩे वाली लड़कियों को आदेश दे डाला कि वो ओवरकोट पहनें। इतना हीं नहीं, सरकार ने लड़कियों को अलग स्कूल बसों में जाने के लिए भी कह दिया। छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री ननकी राम कंवर भी अजीब तरह का बयान देते हुए कह चुके हैं कि उन महिलाओं के साथ बलात्कार होता है, जिनका भाग्य खराब चल रहा है।  
          सबसे बड़ी विडम्बना का विषय तो यह है कि केवल पुरूष जनप्रतिनिधि ही नहीं एक महिला जनप्रतिनिधि भी नारी अस्मिता को ताक पर रखकर बयानबाजी करती रहती हैं। कभी कभी एक जिम्मेदार महिला ही नारी अस्मिता को ताक पर रखकर गैर-जिम्मेदाराना टिप्पणी कर बैठती हैं। पिछले दिनों छत्तीसगढ़ महिला आयोग की अध्यक्ष विभा राव ने कहा कि महिलाओं के खिलाफ हो रहे क्राइम के लिए वह खुद भी जिम्मेदार हैं। महिलाएं वेस्टर्न कल्चर को अपनाकर पुरूषों को गलत संदेश दे रही हैं। उनके कपड़े, उनके व्यवहार से पुरूषों को गलत सिग्नल मिलते हैं। वर्ष 2008 में युवा टीवी पत्रकार सौम्या विश्वनाथन की हत्या के बाद दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित ने बेहद चौंकाने वाला बयान दिया कि इतना अडवेंचरस नहीं होना चाहिए। वह एक ऐसे शहर में सुबह के तीन बजे अकेली गाड़ी चलाकर जा रही थी, जहां रात के अंधेेरे में महिलाओं का निकलना सुरक्षित नहीं माना जाता। मुझे लगता है कि थोड़ा ऐतिहात बरतना चाहिए। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने तो यह कहकर कि लडक़े-लड़कियों को माता-पिता द्वारा दी गई आजादी से ही बलात्कार जैसी घटनाएं हो रही हैं, दो कदम आगे बढ़ गईं। इसी तरह राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की महिला नेत्री आशा मिर्जे भी अमर्यादित बयान देते हुए कह चुकी हैं कि महिलाएं ही एक हद तक बलात्कार के लिए जिम्मेदार हैं और उनके कपड़े एवं व्यवहार भी इसमें एक भूमिका अदा करते हैं। 
          जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दला का यह सारगर्भित बयान पूरे देश व समाज के लिए सीख देने वाला रहा कि ''नेताओं द्वारा दिए गए बयान महिलाओं की आजादी और उनके संवैधानिक अधिकारों का हनन करते हैं। महिलाओं का पहनावा, उनके साथ होने वाले यौन शौषण या बलात्कार के लिए कतई जिम्मेदार नहीं हैं। यदि ऐसा होता तो छोटी बच्चियों और सूट-सलवार या साड़ी पहनने वाली महिलाओं के साथ बलात्कार क्यों होता? इस तरह के बयान देने से पहले नेता यह क्यों भूल जाते हैं कि वे हमारे समाज के जनप्रतिनिधि हैं और जब प्रतिनिधि ही महिलाओं पर इस तरह की टिप्पणी करकेंगे तो बाकी समाज से उम्मीद ही क्या की जा सकती है?" नि:सन्देह, महिला अस्मिता की अक्षुण्ता बनाए रखने के लिए जन-प्रतिनिधियों को अमर्यादित एवं गैर-जिम्मेदाराना बयान नहीं देने चाहिए और साथ ही अपनी महिलाओं के प्रति अपनी मानसिक संकीर्णताओं को बदल लेना चाहिए। उन्हें यह भी याद रखना चाहिए कि महिलाओं को अलग-अलग संज्ञा देना, उनकी शारीरिक संरचना, रंग-रूप और पहनावे पर किसी भी तरह की अमर्यादित टिप्पणी करना, नारी अस्मिता के साथ सरेआम खिलवाड़ है और यौन अपराधों से किसी भी मायने में कम नहीं है। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Your Comments