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मंगलवार, 21 जुलाई 2015

दिल्ली महिला आयोग की नई अध्यक्ष के सिर सजा कांटों भरा ताज!

चर्चित व्यक्तित्व / स्वाति मालीवाल


स्वाति मालीवाल

निष्ठा, नीयत और नीति की परीक्षा होनी तय!

-राजेश कश्यप

       राजनीतिक आरोपों, आलोचनाओं, सवालों और सुखियों के बीच अंतत: 'आप' पार्टी एवं 'इंडिया अंगेस्ट करप्शन' सामाजिक संस्था की सक्रिय कार्यकर्ता स्वाति मालीवाल ने गत 20 जुलाई को दिल्ली महिला आयोग का अध्यक्ष पद संभाल लिया। 17 जुलाई को बरखा सिंह का कार्यकाल पूरा होने के बाद नई अध्यक्ष के रूप में स्वाति का आयोग की अध्यक्ष बनना लगभग तय हो चुका था। जैसे ही दिल्ली की केजरीवाल सरकार की तरफ से स्वाति को आयोग की अध्यक्ष बनाने के संकेत मिले, राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई। विपक्षी दलों ने स्वाति के बहाने मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल पर एक तीर से कई निशाने साधते हुए उनपर राजनीतिक नियुक्ति व परिवारवाद जैसे अनेक गम्भीर आरोप लगाये। स्वाति को अरविन्द केजरीवाल का रिश्तेदार (मौसेरी बहन) बताया गया, जिसे स्वाति एवं अरविन्द ने सिरे से नकार दिया। लेकिन, इसके बावजूद आरोपों का सिलसिला नहीं रूका तो केजरीवाल ने तंज कसते हुये कहना पड़ा कि 'वो मेरे चाचा की साली की जीजा की भतीजे की साली के भाई की बेटी है।' इसके साथ ही, यह भी आरोप लगाये गये कि स्वाति हरियाणा प्रदेश से आप पार्टी के नेता नवीन जयहिन्द की पत्नी हैं। स्वाति को दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष बनाना नवीन की मेहनत का इनाम बताया गया। नि:वर्तमान अध्यक्ष बरखा ने आरोप लगाया कि स्वाति दिल्ली के सीएम की बहन हैं, इसीलिए उन्हें यह पद दिया गया। 'आप' पार्टी के पूर्व नेता प्रशांत भूषण ने भी इस नियुक्ति का पुरजोर विरोध दर्ज कराया। लेकिन, केजरीवाल सरकार अपने निर्णय से टस से मस तक नहीं हुई और स्वाति मालीवाल ही दिल्ली महिला आयोग की नई अध्यक्ष बना दी गईं। 
      कहने की आवश्यकता नहीं कि स्वाति मालीवाल समाजसेवा के क्षेत्र में लंबे समय से कार्यरत हैं। 'इंडिया अंगेस्ट करप्सन' संस्था की कार्यकर्ता के रूप में उन्होंने महत्ती भूमिका निभाई है और अण्णा हजारे आन्दोलन में भी वे अपने पति नवीन जयहिन्द के साथ बेहद सक्रिय रहीं। स्वाति के जज्बे व जुनून को देखते हुए ही अरविन्द केजरीवाल ने उन्हें पहले अपनी सलाहकार (शिकायत निवारण) बनाया और उसके कुछ समय ही बाद उन्हें दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पद पर बैठाया। माना जा रहा है कि स्वाति आगे चलकर हरियाणा की राजनीति में आप पार्टी का सितारा बुलन्द कर सकती हैं। खैर! जो भी हो, यह सब अनुमान तो भविष्य के गर्भ में है। लेकिन, वर्तमान में स्वाति के लिए महिला आयोग अध्यक्ष का ताज कांटों भरा दिखाई पड़ रहा है। कदम-कदम पर उनकीं निष्ठा, नीयत और नीति की परीक्षा होनी तय है। इस समय महिलाओं के प्रति बढ़ रहे अपराधों पर अंकुश लगाने के साथ-साथ अपने लोगों पर लगे गम्भीर आरोपों से पार पाना, निश्चित तौरपर स्वाति के लिए टेढ़ी खीर साबित होता दिखाई दे रहा है। 
      स्वाति मालीवान ने पद संभालते ही मीडिया के माध्यम से दावों की बजाये इरादों को जाहिर किया है और कुछ रचनात्मक कदमों का जिक्र भी किया है, जोकि एकदम सराहनीय है। उन्होंने प्रधानमंत्री, सभी मुख्यमंत्रियों, लोकसभा, राज्यसभा व विधानसभा के अध्यक्षों के साथ-साथ नेता विपक्ष पत्र लिखकर ऐसे नियम बनाने की अपील करने का निर्णय लिया है, जिसके तहत संसद व विधानसभा के हर सत्र में एक दिन सिर्फ महिला सुरक्षा और उनके मुद्दों पर केन्द्रित हो। स्वाति ने अपनी कई प्राथमिताएं भी गिनाई हैं, जिनमें वेश्यावृति से लेकर घरेलू हिंसा तक, तिहाड़ जेल में बंद महिलाओं से लेकर सडक़ पर सोने को मजबूर महिलाओं तक और सातों दिन चौबीस घंटे महिला हेल्प लाईन शुरू करने से लेकर महिलाओं की वालंटियर एक्शन बिगे्रड बनाने तक शामिल हैं। इसके साथ ही उन्होंने पीडि़ताओं से सीधे मुलाकात करने, महिलाओं के हकों की लड़ाई लडऩे के लिए धरने-प्रदर्शन करने और पीडि़ताओं को न्याय दिलवाने के लिए किसी भी हद तक जाने जैसे कई नेक इरादे जाहिर किए हैं। उन्होंने कुमार विश्वास व सोमनाथ भारती आदि 'आप' पार्टी के बड़े नेताओं के मामलों के सन्दर्भ में स्पष्ट ऐलान किया है कि वे यहां किसी की पैरवी करने नहीं, बल्कि हर महिला को न्याय दिलाने आई हैं। स्वाति ने महिला आयोग को राजनीति का अखाड़ा न बनने देने के संकल्प से भी अवगत करवाया है। 
      प्रथम दृष्टया, दिल्ली महिला आयोग की नई अध्यक्ष स्वाति मालीवाल का हर दावा, संकल्प और जज्बा स्वागत योग्य एवं अभिनंदनीय है। लेकिन, उन्हें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि कथनी और करनी में जमीन-आसमान का अंतर होता है। कहना जितना आसान होता है, उसे अमल में लाना उतना ही मुश्किल होता है। इस तरह के तमाम दावे और संकल्प लगभग हर कोई करता आया है और संभवत: करता रहेगा। लेकिन, जमीनी स्तर पर उतरकर काम अभी तक होता दिखाई नहीं दिया है। यदि ऐसा अब से पहले हो जाता तो आज दिल्ली ही नहीं देश के किसी भी कोने में महिला अपराधों का नामोंनिशान भी नहीं होता। महिला अपराधों का ग्राफ गिरने की बजाय निरन्तर बढ़ता ही चला जा रहा है। बलात्कार, अपहरण, छेड़छाड़, छीना-झपटी, दहेज, खरीद-फरोख्त, घरेलू हिंसा आदि अनेक अपराधों में दिनोंदिन कई गुना बढ़ौतरी दर्ज की जा रही है। कानूनों की भरमार है, इसके बावजूद महिलाओं को हक व सुरक्षित माहौल की दरकार है। इन अपराधों को रोकना दिल्ली पुलिस का काम है और दिल्ली पुलिस केन्द्र की मोदी सरकार के अधीन है। जैसे राजनीतिक जुमलों अथवा दलीलों से काम चलने वाला कतई नहीं है। 
      चाहे लाख बार यह दावा किया जाये कि महिला आयोग को राजनीतिक अखाड़ा नहीं बनने दिया जायेगा, लेकिन ऐसा एक प्रतिशत भी होना संभव नहीं है। इसे राजनीतिक संकीर्णता कहिए या विडम्बना, महिला आयोग राजनीतिक हथकण्डों से अछूता ही नहीं रह पाता है। स्वाति मालीवाल के समक्ष भी अपनी पार्टी की छवि बनाये रखने की कड़ी चुनौती बनी रहेगी। अपनी पार्टी के लोगों पर लगे आरोपों पर वे निष्पक्षता एवं कानून के अनुरूप कार्य करेंगी तो पार्टी की छवि को ठेस पहुंचने का डर बना रहेगा और यदि इसके विपरीत करती हैं तो उनकीं निष्ठा, नीयत व नीति पर सवाल उठेंगे व महिलाओं के हितों के मामलों में ढ़ाक के तीन पात वाली स्थिति बनी रहेगी। यदि स्वाति मालीवाल पार्टी की छवि से बाहर निकलकर एक संघर्षशील समाजसेविका व आम महिला के रूप में अपने दायित्वों का निष्पक्षता व निडरता से कार्य करेंगी तो ही सकारात्मक परिणामों की उम्मीद की जा सकती है। 
      दिल्ली महिला आयोग की नई अध्यक्ष को रचनात्मक व आक्रामक अन्दाज में अपनी पारी की शुरूआत करनी होगी। उन्हें पीडि़ताओं का संबल बनने के लिए हर संभव कदम उठाने होंगे। लड़कियों व महिलाओं में आत्मविश्वास जगाने का माहौल तैयार करने के लिए जमीनी स्तर पर काम करना पड़ेगा। उनके शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, सम्मान और न्याय के लिए कई क्रांतिकारी कदम उठाने पड़ेंगे। आयोग को घरेलू हिंसा की शिकार होने वाली आम व अनपढ़ औरतों तक अपनी पहुंच सुनिश्चित करनी होगी। अपने कानूनी अधिकारों से अनजान अनपढ़ पीडि़ताओं तक महिला आयोग को अपनी पहुँच सुनिश्चित करनी होगी और उनके लिए समुचित सहायता, सम्मान, सहयोग, मागदर्शन आदि सुलभ करवाना होगा। कन्या भू्रण हत्या व लड़कियों के प्रति सामाजिक संकीर्ण मानसिकता का माहौल बदलने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।  पीडि़त महिला को त्वरित संबल, सम्मान व न्याय मिल सके, ऐसा ढ़ांचा विकसित करना होगा। ऐसे संवेदनशील एवं अति संवेदनशील स्थानों को चिन्हित करना होगा, जहां लड़कियों एवं महिलाओं के प्रति असुरक्षित वातावरण बना हुआ है। ऐसे स्थानों को सुरक्षित बनाने के लिए समुचित व्यवस्था का प्रबन्ध करना महिला आयोग की प्राथमिक कार्य सूची में दर्ज होना चाहिए। लैंगिक भेदभाव की समाप्ति के लिए कई रचनात्मक कार्यक्रमों की शुरूआत करनी होगी। इन सब मसलों पर समाज के बुद्धिजीवियों, समाजसेवियों एवं संस्थाओं का एक ऐसा नेटवर्क खड़ा करना होगा, जो महिला सुरक्षा व सम्मान को सुनिश्चत करने में उल्लेखनीय योगदान दे सके।इसके साथ ही महिला आयोग को सिविल कोर्ट सरीखे अधिकार दिलाने के लिए भी जोरदार अभियान चलाना होगा, ताकि आयोग कानूनी रूप से मजबूत भूमिका निभा सके। ऐसे तमाम सैक्स रेकेटों पर भी अंकुश लगाना होगा, जो निर्दोष लोगों को ब्लैकमेंलिग के जरिये तबाह करने लगे हैं। इन सैक्स रैकेटों से महिलाओं की छवि को गहरा धक्का लगने लगा है। 


  (राजेश कश्यप)
(स्वतंत्र पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक)
स्थायी सम्पर्क सूत्र:
राजेश कश्यप
(स्वतंत्र पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक)
म.नं. 1229, पाना नं. 8, नजदीक शिव मन्दिर,
गाँव टिटौली, जिला. रोहतक
हरियाणा-124005
मोबाईल. नं. 09416629889
e-mail : rajeshtitoli@gmail.com

(लेखक परिचय: हिन्दी और पत्रकारिता एवं जनसंचार में द्वय स्नातकोत्तर। दो दशक से सक्रिय समाजसेवा व स्वतंत्र लेखन जारी। प्रतिष्ठित राष्ट्रीय समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में तीन हजार से अधिक लेख एवं समीक्षाएं प्रकाशित। आधा दर्जन पुस्तकें प्रकाशित। दर्जनों वार्ताएं, परिसंवाद, बातचीत, नाटक एवं नाटिकाएं आकाशवाणी रोहतक केन्द्र से प्रसारित। कई विशिष्ट सम्मान एवं पुरस्कार हासिल।)

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